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उपजाऊ जमीन के दुश्मन शहर

२७ दिसम्बर २०१२

दुनिया की आबादी बढ़ती जा रही है और गांव से शहरों की ओर पलायन हो रहा है. ऐसे में हर साल करीब 24 अरब टन उपजाऊ मिट्टी औद्योगीकरण और शहरीकरण की भेंट चढ़ रही है. जानकार इसे रोकने की कोशिश कर रहे हैं.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

करीब 200 साल पहले जब औद्योगीकरण की शुरुआत हुई तब यूरोप में लोग गांव से शहरों में विस्थापित होने लगे. लोगों को उम्मीद थी कि शहरों में बसने से उनके जीवन का स्तर बेहतर हो सकेगा और वे गरीबी से निजात पा सकेंगे. आज भी इन्हीं उम्मीदों के साथ लोग विस्थापित हो रहे हैं, खास तौर से एशिया के विकासशील देशों में, जहां शहरीकरण काफी बाद में शुरू हुआ. आज दुनिया की करीब आधी आबादी शहरों में रहती है.

जर्मनी में इंस्टीट्यूट फॉर एडवांस्ड सस्टेनेबिलिटी के क्लाउस लोरेंत्स का कहना है, "जब शहरीकरण होता है तब करीब पचास फीसदी जमीन को कंक्रीट या डामर से ढक दिया जाता है." इस तरह से हर साल यूरोप में 1000 वर्ग किलोमीटर तक जमीन बेकार हो जाती है. यह ऐसा नुकसान है जिसकी भरपाई भी नहीं की जा सकती है. आधारभूत संरचना की बुनियाद डल जाने के बाद उसे दोबारा हटाया नहीं जा सकता. लोरेंत्स का कहना है कि इस से जमीन की गुणवत्ता पर भारी असर पड़ता है और वह उपजाऊ नहीं रहती, "दिक्कत यह है कि शहर उपजाऊ जमीन पर बस रहे हैं. लोग शुरुआत में वहां आ कर इसीलिए बसे थे क्योंकि वहां वह अपने लिए अन्न उपजा सकते थे."

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तस्वीर: DW/C. Nippard

मेक्सिको में भूकंप

समस्या जितनी दिखती है उस से काफी ज्यादा बड़ी है. लोरेंत्स मेक्सिको की तरफ ध्यान दिलाते हुए बताते हैं कि शहरीकरण के कारण वहां भूकंप का खतरा बढ़ गया है. उनका कहना है की इस से निपटने का एक तरीका यह हो सकता है कि शहरों में जमीन को बेहतर ढंग से इस्तेमाल किया जाए. उनकी सलाह है कि शहरों के बीच भी फल सब्जियां उगाई जाएं ताकि जमीन उपजाऊ बनी रहे, "हालांकि इस पर बहुत ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है, कई बार जमीन में जहरीले पदार्थ मिल चुके होते हैं."

चीन में जहरीली जमीन

जर्मनी में लंबे समय से जमीन की अम्लीयता के बढ़ने पर चर्चा चलती आ रही है. अब चीन में भी इस पर बहस शुरू हो गयी है. चीन के तीसरे सबसे बड़ा शहर गांगजू ने तेजी से विकास किया है. शहर में फैक्ट्रियों के कारण कचरा फैला है जिसने जमीन की अम्लीयता को बढ़ा दिया है. अब कोशिश की जा रही है कि कम से कम ऐसी जगहों को साफ कर दिया जाए जहां अब फैक्ट्रियां बंद हो चुकी हैं. लोरेंत्स का कहना है कि यह एक बेहद मुश्किल काम है क्योंकि अब तक जमीन को साफ करने के कोई लिए कोई मानदंड ही तैयार नहीं किए गए हैं.

ब्राजील में खिसकती जमीन

ब्राजील भी इसी तरह की समस्या से जूझ रहा है. वहां शहरीकरण के कारण भूस्खलन और भूक्षरण की समस्या आने लगी है. बारिश के पानी के साथ सूखी जमीन कट जाती है. 2011 में रियो दे जेनेरो के पास हुए भूस्खलन में कई लोगों की जान चली गयी. फेडरल यूनिवर्सिटी ऑफ पेरनामबूको के क्लिस्तेंस नाशिमेंतो का कहना है कि ब्राजील में शहरीकरण को ले कर योजना की कमी है. ऐसे में इसे समझना जरूरी है कि लोग शहरों में किस तरह से जमीन का इस्तेमाल करते हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि ब्राजील में लोग अब तक यह समझ नहीं पाए हैं कि जमीन का सीमित इस्तेमाल ही किया जा सकता है.

क्लाउस लोरेंत्स भी मानते हैं कि लोगों में जागरूकता फैलाने की जरूरत है, "जब हम मेज पर खाने की थाली ले कर बैठते हैं तो यह सोचते ही नहीं कि इस खाने को उपजाने के लिए जमीन की जरूरत है. हम यह भूल जाते हैं कि जमीन को फैक्टरी में तैयार नहीं किया जा सकता है. उपजाऊ जमीन एक बार खत्म हो गयी.. तो बस खत्म हो गयी."

रिपोर्टः जेनिफर फ्रासेक/आईबी

संपादनः एन रंजन

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