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रुचि जगाने के लिए साइंस म्यूजियम

१९ अप्रैल २०१६

उत्तरी जर्मनी के वोल्फ्सबुर्ग शहर का फेनो साइंस म्यूजियम देश का सबसे बड़ा साइंस म्यूजियम है. ईरानी आर्किटेक्ट जाहा हदीद द्वारा बनाया गया नौ हजार वर्गमीटर में फैला ये म्यूजियम विज्ञान का मक्का माना जाता है.

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Physikshow für Kinder an der Universität Bonn
तस्वीर: picture alliance / JOKER

विज्ञान को रूखा विषय माना जाता है जिसमें बच्चों की शायद ही रुचि होती है. उन्हें विज्ञान से रूबरू करना बहुत बड़ी चुनौती है. फेनो साइंस म्यूजियम इसमें महत्वपूर्ण योगदान दे रहा है. म्यूजियम का मकसद है युवा पीढ़ियों के लिए विज्ञान को रोमांचक बनाना. आस पास के इलाकों के अलावा दूरदराज के स्कूली छात्र नियमित रूप से साइंस म्यूजियम फेनो देखने जाते हैं. और गिजेला क्राउजे बैरथेल जैसी म्यूजियम गाइडों की जिम्मेदारी है कि बच्चों को उत्सुरकता कैसे जगाई जाए. "आप में से कुछ पहली बार यहां आए हैं. आज बहुत मजा आने वाला है."

हर साल दो लाख सत्तर हजार लोग फेनो पहुंचते हैं. इसमें स्कूली छात्रों की बड़ी संख्या होती है. स्टूडेंट यहां आकर सबसे पहले स्टैटिक्स के नियम सीखते हैं. मसलन लाल ब्लॉकों की मदद से बड़ा सा पुल बनाने की कोशिश. लेकिन ये प्रयोग तब ही काम करता है अगर हर कोई साथ दे. अपने आकार के कारण ये ब्लॉक एक दूसरे को सहारा देते हैं और खुदबखुद एक आर्क बना लेते हैं. कुछ देर के लिए ही सही. गिजेला क्राउजे बैरथेल इसके बारे में बताती हैं, "ये ऐसे बना है कि बच्चों को तकनीकी और वैज्ञानिक गतिविधियों को समझने में मजा आए. और वे खुद तय कर सकें कि वे कौन सा प्रयोग करना चाहते हैं, वे कुछ सीख सकें और वह भी बिना बहुत ज्यादा ध्यान दिए."

सिद्धांत ये है कि सैद्धांतिक ज्ञान के बदले व्यावहारिक ज्ञान दिया जाए. जब बच्चे खुद कुछ करते हैं और किसी समस्या का समाधान निकाल लेते हैं, तो वह जानकारी उनके दिमाग में काफी अच्छी तरह से बैठ जाती है. बच्चे खुद विज्ञान को अनुभव करते हैं और साथ ही इसमें उन्हें मजा भी आता है. बिजली के करंट से उनके बाल खड़े हो जाते हैं और उन्हें समझ में आता है कि करंट क्या है. वे महसूस कर सकते हैं कि कैसे उनका वजन कीलों के भरे बिस्तर पर फैल जाता है. खुद अपने ही प्रयासों से उन्हें समझ में आता है कि मकड़ी किस हुनर के साथ अपना जाल बुनती है.

फेनो साइंस म्यूजियम के क्रिस्टॉफ बोएर्नर जानते हैं कि बच्चों को किस बात में मजा आता है. 76 मीटर लंबी एक घुमावदार पाइप में वे एक सिरे से रंग बिरंगे कपड़े घुसाते हैं जो दूसरे सिरे से बाहर निकलते हैं और बच्चे हवा के दबाव को महसूस कर पाते हैं और समझ पाते हैं कि कपड़े किस तरह निकल रहे हैं. वे बताते हैं, "प्रदर्शनी की हर वस्तु ऐसी है कि बच्चों को देखते ही समझ आ जाए कि उन्हें इसके साथ करना क्या है."

म्यूजियम की एक प्रयोगशाला में मिट्टी पर वर्कशॉप हो रही है. बच्चों को पहले से काफी कुछ मालूम है, जैसे कि वे जानते हैं कि मिट्टी में मिलने वाले केंचुए अपनी त्वचा के जरिये सांस लेते हैं. उन्हें ये भी पता है कि वे चलते कैसे हैं. गाइड गिजेला क्राउजे बैरथेल उन्हें बताती हैं, "यह खुद को पूरी तरह खींच कर लंबा कर लेता है, फिर दोबारा सिकुड़ जाता है. अगले हिस्से को खींचता है, फिर पिछले हिस्से को. इस तरह के कीड़े के पास बहुत सारी मांसपेशियां होती हैं." यहां बच्चों को ये भी पता चलता है कि पीने का पानी कैसे तैयार किया जाता है? और पानी को साफ करने वाला संयंत्र कैसे काम करता है? बच्चे यहां खुद जान सकते हैं कि धरती किस तरह से गंदे पानी को साफ करती है. रेत और बजरी से वे पानी को फिल्टर करते हैं.

सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में भी ठीक इसी तरह से ही काम होता है. लेकिन इसके बाद वहां पानी को और भी ज्यादा साफ किया जाता है, ताकि वह पीने लायक बन सके. फेनो का मकसद है खूब सारी मौज मस्ती के साथ बच्चों में उत्सुकता जगाना. स्कूली पढ़ाई में इसका फायदा मिल सकता है. अगर इस तरह के अभ्यास से बच्चों की रुचि जगाई जाए, तो बड़े हो कर वे खुद भी विज्ञान के क्षेत्र में अपना योगदान से सकेंगे.

एमजे/आईबी