1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

उत्तर कोरिया को हराने के लिए गुब्बारों से जंग

२३ अगस्त २०१७

भारी मिसाइलों के धमाकों से दुनिया को बेचैन करता उत्तर कोरिया क्या चिड़िया के पंख से भी हल्के गुब्बारों पर लिखे संदेशों की भाषा समझेगा जो बादलों पर सवार हो कर हवाओं के साथ वहां जाते हैं.

https://p.dw.com/p/2ihnD
Südkorea Luftballon Aktivismus
तस्वीर: picture-alliance/AP/A. Young-joon

प्लास्टिक के पर्चे, गुब्बारे पर लिखे संदेश, मेमोरी चिप में भरे दक्षिण कोरियाई सॉप ओपेरा या दक्षिण कोरियाई कारोबारी घरानों की भारी संपत्तियों का ब्यौरा और कभी अमेरिकी डॉलर का नया नोट, कुछ लोग उत्तर कोरिया को ये समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि दक्षिण कोरिया में जिंदगी कितनी खुशहाल है. इन चीजों में कभी कभी मीट सॉस में पके नूडल्स या फिर खाने पीने की दूसरी चीजों के खाली रैपर भी होते हैं.

ये उत्तर कोरिया के साथ एक खामोश जंग में शामिल स्वघोषित योद्धा हैं जो दुनिया के सबसे अलग थलग देश को लोकतंत्र की भाषा में समझाने पर अमादा हैं. इनका सबसे बड़ा हथियार हैं गर्म हवा वाले गुब्बारे. शायद इन लोगों ने सुन रखा है, 'जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो.'

दक्षिण कोरिया में ही इनके आलोचक भी हैं जो इन्हें बेकार का अभियान चलाने वाला कहते हैं. कुछ उससे आगे जाकर इन्हें ध्यान बटोरने वाले सनकी कह देते हैं. इन लोगों की नजर में ये लोग बस गाली गलौज करने वाले हैं. हालांकि ये कार्यकर्ता सीमा के पार जा कर उस देश को देखते हैं जो उनके लिहाज से बदल रहा है. उत्तर कोरिया के एक शरणार्थी पार्क सांग हक कहते हैं, "इस सत्ता को जल्दी से हटाने का यही तरीका है कि लोगों का मन बदला जाए." पार्क सोल के अपने छोटे से ऑफिस से एक संगठन चला रहे हैं जिसका नाम है फाइटर्स फॉर फ्री नॉर्थ कोरिया. संगठन से जुड़े लोग हर साल दसियों हजार प्लास्टिक के पर्चे सीमा पार भेज देते है. जवाब में उत्तर कोरिया कहीं उनका नुकसान ना कर दे इस डर से वह पुलिस अंगरक्षकों को साथ लिए बगैर कहीं नहीं जाते.

पार्क कहते हैं, "लोग पहले से ही वहां अपनी जिंदगी को लेकर चिंता में हैं," हम तो उन्हें बाहर की दुनिया के बारे में बताना चाहते हैं कि चीन और दक्षिण कोरिया में जीवन कितना आसान है.

ये कार्यकर्ता ज्यादातर व्यंग्य वाले कार्टून या फिर रुलाने वाले सॉप ओपेरा भेजते हैं जिनमें अपनों से बिछड़ने, तकलीफों और भूल जाने जैसी कहानियां होती हैं. ये ऊपर से देखने में बिल्कुल भी खतरनाक नहीं लगते. हालांकि जानकार और उत्तर कोरिया के शरणार्थी कहते हैं कि बाहर से आई सूचनाओं ने वहां बदलावों को न्यौता दिया है. लोगों के बोलचाल की भाषा के साथ ही फैशन और उपभोक्ता सामानों की मांग में इजाफा हो रहा है. वहां का बाजार बड़ा हो रहा है.

Südkorea Luftballon Aktivismus
तस्वीर: picture-alliance/Zuma/S. Il Ryu

कार्यकर्ताओं में इसे लेकर अकसर विवाद रहता है कि उत्तर में क्या भेजा जाए. कुछ कार्टून भेजना चाहते हैं तो कुछ डॉक्यूमेंट्री और कुछ उत्तर कोरियाई सरकार की झूठ के बारे में राजनीतिक पर्चे लेकिन खुद को सभी योद्धा मानते हैं जो बदलाव के लिए धक्का लगा रहे हैं. ली मिन बोक को 30 साल पहले अपना घर छोड़ कर भागना पड़ा क्योंकि तब उन्होंने उत्तर कोरिया में पर्चे बांटे थे. वो 15 साल से उत्तर कोरिया में पर्चे भेज रहे हैं. ली कहते हैं, "उत्तर कोरिया बाहरी सूचनाओं को रोक कर नियंत्रण करता है. इसे शांति से खत्म करने के लिए जानकारियों की बौछार जरूरी है."

उत्तर कोरिया इन कार्यकर्ताओं से नफरत करता है. उत्तर कोरिया बाहरी जानकारियों को "पीली हवा" कहता है हालांकि ये देश खुद हजारों पर्चे हर साल दक्षिण कोरिया भेजता है. उत्तर कोरिया की राजानी प्योंगयांग में क्लास एजुकेशन सेंटर के गाइड किम सोंग हुई कहते हैं, "वे लोग हमेशा हम पर, हमारी सीमा के पास पर्चे गिराते है लेकिन गांवों के लोग जानते है कि इन्हें सुरक्षा अधिकारियों के हवाले करना है."

इन कार्यकर्ताओं को कितना असर है ये साफ नहीं है, खासतौर से इसलिए क्योंकि कुछ तस्कर दक्षिण कोरियाई टीवी कार्यक्रमों और अमेरिकी फिल्मों को चोरी छिपे उत्तर में कई सालों से बेचते आ रहे हैं. ये तस्कर बिना इन कार्यकर्ताओं की मदद लिए ही ये काम करते हैं. दक्षिण कोरिया के सेजोंग इंस्टीट्यूट से जुड़े विश्लेषक चेओंग सेओंग चांग कहते हैं, "बाहरी सूचनाओं के प्रवाह से शासन नहीं हिलेगा. यह छोटे बदलाव ला सकता है. उदाहरण के लिए कुछ लोगों को विद्रोह के लिए उकसा सकता है लेकिन मुझे संदेह है कि ये ज्यादा कुछ कर सकेगा."

गुब्बारा अभियान चलाने में खतरा बहुत है. उत्तर कोरिया अगर राजनीतिक पर्चे या फिर फ्लैश ड्राइव के साथ किसी को पकड़ लें तो उसे कड़ी सजा देते हैं. इसके अलावा गुब्बारा भेजने से दोनों देशों के राजनयिक संबंधों में और तनाव भी आ सकता है. दक्षिण कोरिया ने इन्हीं वजहों से कई साल पहले गुब्बारे भेजने बंद कर दिये थे इसकी एक वजह ये भी थी कि तनाव को कम किया जाए. दक्षिण कोरिया के उदार राष्ट्रपति उत्तर कोरिया के साथ बातचीत करने के इच्छुक हैं और सरकार के प्रवक्ता का कहना है कि इन पर्चों से गैरजरूरी सैन्य तनाव बढ़ सकता है. यहां तक कि कुछ कार्यकर्ताओं ने भी पर्चे भेजने बंद कर दिये थे.

हालांकि इसके बाद भी अभी कार्यकर्ता हर साल हजारों पर्चे सीमा पार भेजते हैं. इसके अलावा हजारों डीवीडी और थंब ड्राइव जिनमें बाइबल से लेकर, अमेरिकी टीवी सीरियल और दक्षिण कोरियाई ऐतिहासिक नाटक तक सब कुछ भरा होता है इनमें से तो कुछ तस्करों के जरिए चीन के रास्ते भेजा जाता है. कुछ को पानी के बोतलों में भर कर उत्तर कोरियाई समुद्री किनारों की ओर बहा दिया जाता है. हालांकि ज्यादातर गर्महवा के गुब्बारों की मदद से भेजा जाता है.

एनआर/ओएसजे (एपी)