इस सवाल का कोई जवाब नहीं
३१ मई २०१४करीब दो साल पहले तक आम विदेशी यात्री की भारत के बारे में समझ कुछ ऐसी थी. एक ऐसा देश जहां कुछ लोग बहुत गरीब हैं, लेकिन प्रतिभाशाली हैं, वे विनम्रता से पेश आते हैं, योग करते हैं और जनसंख्या को देखा जाए तो कामसूत्र भी पढ़ते होंगे. जर्मनी में भारत की यात्रा करके आए दोस्तों से यह बातें सुन कर हंसी आती थी, लेकिन निर्भया कांड के बाद सब कुछ बदल गया. वह पूछते हैं, कामसूत्र जिस देश में लिखा गया, वहां बलात्कार कैसे हो सकता है. यह सवाल सोचने पर मजबूर कर देता है.
शायद एक वजह यह है कि हमारे घरों, परिवारों और स्कूलों में यौन शिक्षा नहीं होती. यौन शिक्षा तो दूर, लड़कियों और लड़कों को अकसर बताया नहीं जाता कि उन्हें एक दूसरे से कैसे पेश आना चाहिए, किस तरह के लोगों पर विश्वास करना चाहिए. शायद किसी जानकार या भरोसे वाले व्यक्ति की सलाह के अभाव और कुंठा में आकर युवक बलात्कार जैसा काम कर बैठते हैं. लेकिन क्या सिर्फ कुंठा ऐसी दरिंदगी की वजह हो सकती है?
वर्चस्व दिखाने की कोशिश
बदायूं के मामले को लीजिए. 14 और 15 साल की लड़कियों की इज्जत लूटना काफी नहीं था, वे दोनों दलित बच्चियों को पेड़ पर लटकाकर शायद ताकत का प्रदर्शन करना चाहते थे. शायद वह दलितों को उनकी जगह दिखाना चाहते थे. रोमन सभ्यता से लेकर किसी भी कौम पर वर्चस्व हासिल करने का एक तरीका उस मुल्क की महिलाओं का बलात्कार रहा है. इससे तथाकथित निचली जाति या कौम या नस्ल को बताया जा सकता है कि उनकी महिलाओं के गर्भाशय पर अब शासक का अधिकार हो गया है.
कार्ल मार्क्स के करीबी दोस्त फ्रीडरिष एंगल्स ने अपनी किताब, द ओरिजिन ऑफ फैमिली, प्राइवेट प्रॉपर्टी एंड द स्टेट में लिखा है कि किसी भी सभ्यता में जमीनी संपत्ति पर स्वामित्व को सुरक्षित करने का एक तरीका है महिलाओं को सुरक्षित करना. उससे पुरुष आश्वस्त रहेगा कि बच्चे उसी के हैं और केवल उसका खानदान उसकी संपत्ति का हकदार होगा. इस तर्क से देखा जाए तो हमला करके संपत्ति को जब्त करने और अपनी ताकत दिखाने का तरीका है कत्ल और बलात्कार.
बदायूं वाले मामले में ताकत और वर्चस्व बलात्कारियों के दिमाग में कहीं चल रहा होगा. इन बच्चियों का दोहरा नुकसान हुआ- एक, लड़की होने की हैसियत से और दूसरा दलित होने की वजह से. और कुछ जिम्मेदारी भारतीय प्रशासन की भी है जो अब तक दलित समुदाय के लाखों सदस्यों को और गरीबों को उनकी बुरी हालत से निकाल नहीं पाई है. अब भी कई समुदाय अनपढ़ हैं, उनके पास पैसे कमाने का जरिया नहीं है, स्वास्थ्य सेवाएं नहीं हैं और जहां तक बदायूं की बात है, इन बच्चियों के घर में निजी टॉयलेट न होने की वजह से उन्हें बाहर जाना पडा और वह इस दरिंदगी का शिकार बनीं.
सम्मान का सवाल
जाति को लेकर विवाद के मामले पर एक सहेली की अनपढ़ मां ने कभी कहा था, "दुनिया में देश या जात कुछ नहीं होता है, होता है तो सिर्फ औरत और मर्द में फर्क," या दूसरी तरह से कहें, तो औरत और मर्द में सम्मान का फर्क. इसलिए लाहौर में गर्भवती फरजाना परवीन के परिवारजनों ने अदालत के सामने पत्थर मार कर उसकी हत्या कर दी. परवीन का कसूर, उसने घरवालों की मर्जी के खिलाफ अपने प्रेमी से निकाह. वैसे तो मौत की सजा परवीन के पति को मिलनी चाहिए थी क्योंकि उसने परवीन से शादी करने के लिए अपनी पहली पत्नी की हत्या की.
यह तो न्याय नहीं, अमेरिका में गन कल्चर जैसा है, जहां आप औरों की बंदूकों से बचने के लिए खुद बंदूक रखते हैं. हमारे यहां आदमी से बचने के लिए हमें आदमी के साथ रहना होता है. भारत और पूरे उप महाद्वीप में, अफगानिस्तान को छोड़कर, लोकतंत्र का बिगुल बजाया जाता है. लेकिन हालात क्या तालिबान जैसे नहीं? अगर आपको बाहर जाना हो, तो आप किसी पुरुष के साथ जाएं, आपको बुर्का पहनना होगा, आप स्कूल या कॉलेज नहीं जाएंगी लेकिन घर पर आप सुरक्षित रह सकती हैं.
और भारत? भारत में टीवी पर आइटम नंबर आते हैं, दुनिया के सबसे बड़े चुनाव होते हैं. लेकिन नई सरकार की नीतियों की जगह सामूहिक बलात्कार कांड अंतरराष्ट्रीय सुर्खी बनती है. हम फिर भी लोकतंत्र और आजादी के गीत गाते हैं. आजकल हर वीकेंड पर दोस्तों से बहस होती है, भारत में बलात्कार डेढ़ साल से मुद्दा बना हुआ है.
ब्लॉगः मानसी गोपालकृष्णन
संपादनः अनवर जे अशरफ