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आस्था

इस्लाम के शांति योद्धाओं को पश्चिम क्यों नहीं जानता?

१५ फ़रवरी २०१९

ओसामा बिन लादेन से अनीस आमरी तक मुस्लिम आतंकवादियों को सारा जग जानता है, लेकिन इस्लाम जगत के शांति योद्धाओं को पश्चिम में जाना ही नहीं जाता. उनके अपने देशों में भी उन्हें भुलाया जा रहा है.

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Österreich Imame unterzeichnen eine Deklaration gegen Extremismus
तस्वीर: Imago/photonews.at

आधुनिक काल के मुस्लिम शांति योद्धाओं में सबसे बड़ा नाम है खान अब्दुल गफ्फार खान का. वे आजाद भारत के लिए लड़े, महात्मा गांधी की तरह अहिंसा की वकालत की और शांति के लिए अपनी गतिविधियों के कारण सालों जेल में रहे. सीमांत गांधी कहे जाने वाले खान अब्दुल गफ्फार खान ने अपने दसियों हजार अनुयायियों के साथ भारत के विभाजन को रोकने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहे.

जर्मनी के प्रसिद्ध मुइंस्टर यूनिवर्सिटी के इस्लाम शास्त्री मुहन्नद खोरचीदे कहते हैं, "खुद मुसलमानों को भी अनगिनत इस्लामी शांति आंदोलनों का पता नहीं है." बहुत से मुसलमान इस्लामी हलकों में शांति के लिए चल रही बहस में शामिल नहीं हैं, इसलिए आमतौर पर उन्हें इनके बारे में बहुत कम जानकारी है, भले ही वे खुद कितने भी शांतिप्रिय क्यों न हों.

जिन समाजों में मुस्लिम अल्पमत में हैं वहां बहुमत समाज के लिए महत्वपूर्ण वे बातें हैं जो रोजमर्रा में देखने या सुनने को मिलती हैं. मुहन्नद खोरचीदे कहते हैं, "यदि मुस्लिम मौलवी कट्टरपंथी आईएस के खिलाफ हस्ताक्षर अभियान चलाते हैं तो ये अमूर्त होता है. लेकिन मुसलमानों और गैर मुसलमानों के बीच रोजमर्रा में या मीडिया में दिखने वाला अंतर लोग महसूस करते हैं."

Deutschland Verschleierungsverbot l Gesichtsschleier - Niqab
तस्वीर: picture alliance/dpa/P. Endig

जर्मनी के विख्यात बैर्टेल्समन फाउंडेशन की धर्म पर 2015 की एक स्टडी के अनुसार जर्मनी के आधे लोग इस्लाम को खतरा मानते हैं. करीब दो तिहाई लोगों का मानना है कि इस्लाम पश्चिमी दुनिया में फिट नहीं बैठता. आप्रवासन पर शोध करने वाले बर्लिन के एक इंस्टीट्यूट के सर्वे के नतीजे दिखाते हैं कि बहुत से लोग मुसलमानों को आक्रामक समझते हैं. सवाल पूछे गए 25 फीसदी लोगों का विचार था कि उनके मुकाबले मुसलमान ज्यादा आक्रामक हैं.

मुइंस्टर यूनिवर्सिटी के धर्म समाजविज्ञानी डेटलेफ पोलाक का कहना है कि लोगों को धर्म के प्रति खुला और ईमानदार होना चाहिए लेकिन अक्सर ऐसा नहीं होता. किसी और धर्म के साथ इतनी नकारात्मक बातें नहीं जुड़ीं जितनी इस्लाम के साथ जुड़ी हैं. लोग इस्लाम को कट्टरपंथ, हिंसा और महिलाओं के दमन से जोड़ कर देखते हैं. खासकर पश्चिमी देशों के उन इलाकों में जहां मुसलमानों की तादाद कम है, खोरचीदे के अनुसार इस्लाम से डर भी ज्यादा है.

जिन लोगों का मुसलमान नागरिकों से कोई संपर्क नहीं है वे खास तौर पर इस्लाम की नकारात्मक छवि से प्रभावित होते हैं. समाजशास्त्री पोलाक इसकी पुष्टि करते हैं, "सीधे संपर्क पूर्वाग्रहों को कम करने में मदद करते हैं." स्कूलों में शिक्षा पर इस पर असर डाल सकती है. मुहन्नद खोरचीदे चाहते हैं कि स्कूलों में दुनिया को इस्लाम के योगदानों के बारे में ज्यादा बताया जाना चाहिए.

एमजे/एनआर (ईपीडी)