इबोला पर सरकार की संजीदगी सराहनीय
१९ नवम्बर २०१४कभी मलेरिया, कभी डेंगू तो कभी चिकनगुनिया जैसे बुखारों से जूझते रहने वाले भारतीयों के लिए वैसे तो इबोला बस इस सीजन का एक नया बुखार है. पर लोग जानते हैं कि यह केवल जानलेवा बीमारी ही नहीं, महामारी भी है. यही वजह है कि लोगों की कुछ इस तरह की प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं.
पश्चिम अफ्रीका में करीब 45,000 भारतीय रहते हैं. इसलिए ऐसा नहीं है कि देश के स्वास्थ्य मंत्रालय को खतरे की भनक नहीं थी. बल्कि लाइबेरिया से लाए गए व्यक्ति की जिस तरह से जांच की गयी है, वह दिखाता है कि भारत सरकार इबोला को कतई हल्के में नहीं ले रही. 26 साल के इस व्यक्ति के पास सर्टिफिकेट था जिस पर साफ लिखा था कि उसका इलाज किया जा चुका है और सारे टेस्ट निगेटिव रहे हैं. औपचारिकता पूरी करने के लिए तो यह सर्टिफिकेट काफी था पर इस व्यक्ति को रोका गया, उसके दोबारा टेस्ट किए गए. जिस तरह से एयरपोर्ट पर इस मामले को संजीदगी से लिया गया, वह सराहनीय है.
जेपी नड्डा ने हाल ही में स्वास्थ्य मंत्रालय का भार संभाला है लेकिन पूर्व स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने पहले ही तैयारियां शुरू कर दी थीं. उनके रहते ही हवाई अड्डों पर लोगों की स्क्रीनिंग शुरू कर दी गयी थी. अगस्त में उन्होंने विश्वास दिलाया था कि कोई चूक नहीं होगी. उन्होंने कहा था कि वे जानते हैं कि इबोला के चलते लोग पश्चिम अफ्रीका से लौटने लगेंगे और ऐसे में एहतियात बेहद जरूरी है.
हवाई अड्डों पर अब तक क्या हुआ, क्या नहीं, यह कहना तो मुश्किल है. केवल उम्मीद ही की जा सकती है कि जिस तरह 26 वर्षीय इस व्यक्ति को संजीदगी से लिया गया, ऐसा ही अब तक पश्चिम अफ्रीका से लौटे हर व्यक्ति के साथ किया गया हो. भारत जैसे देश में, जहां टॉयलेट का भारी अभाव है और जहां जगह जगह सड़कों किनारे पुरुष पेशाब करते नजर आ जाते हैं, इबोला को ले कर संजीदगी बेहद जरूरी है. क्योंकि जैसा कि इस मामले में देखा गया, खून से वायरस के पूरी तरह मिट जाने पर भी, वीर्य और मूत्र में इबोला का वायरस छिपा रह सकता है और महामारी को जन्म दे सकता है.