इबोला के टीके के साथ अफ्रीकी शहर फिर रचेगा इतिहास
लैम्बारिनी, अफ्रीकी देश गाबोन का एक छोटा सा शहर है, जो नोबेल पुरस्कार विजेता डॉक्टर अल्बर्ट श्वाइत्सर अस्पताल के लिए मशहूर है. इबोला के टीके पर यहां चल रही रिसर्च एक बार फिर इसे मेडिकल साइंस के नक्शे में उभार सकती है.
मछुआरों का उनींदा सा शहर
लैम्बारिनी पश्चिमी अफ्रीका के गाबोन देश का एक शहर है, जहां रहने वाले कुल 25,000 निवासियों में से ज्यादातर का गुजारा मछली पकड़ने के काम से ही होता है. यह अपने अल्बर्ट श्वाइत्सर अस्पताल के कारण प्रसिद्ध है.
सीमित बजट
जर्मन नागरिक श्वाइत्सर बाद में उन्होंने फ्रेंच नागरिकता ले ली. वह एक दार्शनिक, धर्मशास्त्री और संगीत के विद्वान तो थे ही, आगे चलकर उन्होंने मेडिकल डिग्री भी ली और फिर 1913 में लैम्बारिनी में अस्पताल शुरू किया. 1952 में उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. यह अस्पताल आज भी है लेकिन मेडिकल उपकरण जर्जर हालत में हैं.
श्वाइत्सर को भूलते लोग
अस्पताल के निदेशक हंसयॉर्ग फोटूरी बताते हैं, "आधुनिकीकरण के लिए पर्याप्त धन नहीं है. हाल के सालों में दानराशि काफी कम हो गई है. अब श्वाइत्सर को व्यक्तिगत तौर पर जानने वाले बहुत कम ही लोग बचे हैं." फोटूरी परंपरागत और पश्चिमी मेडिसिन के बीच आपसी संवाद को बढ़ावा देने के मकसद से एक केन्द्र की स्थापना करना चाहते हैं.
मेडिकल रिसर्च से इबोला का मुकाबला
अस्पताल के पास ही एक नया रिसर्च सेंटर है जहां अफ्रीकी और यूरोपीय वैज्ञानिक मिलकर इबोला का टीका विकसित करने के लिए काम कर रहे हैं. यह असल में एक कमजोर, जेनेटिकली मॉडिफाइड वायरस है, जिस पर इबोला वायरस की सतह पर पाया जाने वाला एक प्रोटीन जोड़ा गया है. रिसर्चरों को उम्मीद है कि शरीर का प्रतिरोधी तंत्र इस मॉडिफाइड वायरस से प्रतिक्रिया कर इबोला वायरस के लड़ने वाले एंटीबॉडी बनाएगा.
जर्मनी से गाबोन
डॉक्टर जोसे फर्नान्डिस इस पूरी ट्रायल प्रक्रिया की देखरेख कर रहे हैं. इबोला का टीका बनाने के इस परीक्षण में कुल 60 स्वस्थ स्वयंसेवियों को लिया गया है. इसके पहले चरण में परखा जा रहा है कि यह पदार्थ सुरक्षित है कि नहीं. फर्नान्डिस ने जर्मनी में अपना शोध बीच में छोड़कर गाबोन आकर इबोला का इलाज ढूंढने का निर्णय लिया.
साहसी वॉलंटियर्स
22 साल के एंटोइने मगांगा मांबो इस प्रकिया में वॉलंटियर हैं और हर महीने कम से कम एक बार आकर अपने रक्त का परीक्षण करवाते हैं. मांबो बिना किसी साइड इफेक्ट से डरे खुद आगे बढ़े हैं और कहते हैं, "मैं इस तरह प्रभावित इलाकों के लोगों की मदद कर सकता हूं."
टीका तैयार होने की तारीख
जल्द ही इबोला प्रभावित पश्चिमी अफ्रीकी देशों में फेज 2 ट्रायल शुरू होंगे. इसमें बड़ी संख्या में वॉलंटियरों पर टीके के असर को परखा जाएगा. लैम्बारिनी में प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर बेट्राम लेल अभी टीके को रेगुलेटरी सहमति मिलने और इसके लोगों के लिए उपलब्ध होने की कोई तारीख देने की स्थिति में नहीं हैं. मगर आशावादी है, "जिन चीजों में सालों लग जाते थे अब वह काम महीनों में होने लगा है."