इबोला के खिलाफ कोई बीमा नहीं
२० अक्टूबर २०१४इबोला पर्यावरण परिवर्तन जैसा है. वह बांग्लादेश और ऑस्ट्रेलिया जैसी जगहों पर बाढ़ और सूखे के रूप में प्रहार कर रहा है जिनमें हजारों लोग मारे जा रहे हैं, लेकिन जर्मनी में घबराहट का अहसास है. दूसरे देशों में जो सचमुच हो रहा है वह हमारे डर को हवा दे रहा है. अफ्रीका या एशिया में आने वाली आपदा हमारी रगों को छूती है. हमारे अस्तित्व का डर, जर्मन आंग्स्ट. हम दूसरों के हाल पर दुखी होते हैं, और खुद के हाल पर बुरी तरह चिंता करते हैं, क्योंकि हम चीज पर नियंत्रण चाहते हैं. उसके लिए हम सब कुछ करते हैं. जर्मनों के पास हर चीज के लिए बीमा है, उनकी आयु बढ़ रही है, वे जल्दी रिटायर होते हैं और अपनी जिंदगी संवारते हैं. हमारी चले तो इबोला मौत के खिलाफ भी बीमा करा लें. है न पागलपन.
अमेरिका को भी एक नया खतरा मिल गया है. इबोला के खिलाफ वे भी असहाय है. असीमित संभावनाओं वाले देश के अलास्का में हर ड्रग स्टोर में सांप के जहर के खिलाफ दवा होती है. लेकिन महामारी के खिलाफ अमेरिकी नौकरशाही अपेक्षाकृत बेबस है. स्वास्थ्य सेवा सीडीसी की चेतावनी के बावजूद डलास क्लीनिक ने बुखार में तप रहे लाइबेरियाई को घर भेज दिया. उसने एक नर्स को संक्रमित कर दिया था. एक दूसरे मामले में इबोला संक्रमित एक व्यक्ति को 132 यात्रियों के साथ क्लीवलैंड से डलास की यात्रा करने दी गई. घातक महामारियों के मामले में पेशेवर बर्ताव अलग दिखता है. कोई आश्चर्य नहीं कि एक चौथाई से ज्यादा अमेरिकियों को इबोला का डर सता रहा है.
स्वाभाविक रूप से विकसित देशों में डर की तर्कसंगत वजहें हैं. इबोला पीड़ित मरीज की हवाई यात्रा की परिस्थितियां अमेरिका में वही कर सकती है जिससे 1976 से ज्ञात यह वाइरस अफ्रीका में आपदा बना है. इबोला पीड़ित के साथ यात्रा करने वाले 132 यात्री संक्रमण का शिकार हो सकते हैं. अगर वे सिर्फ तीन या पांच भी हों और इबोला से संक्रमित हों तो अगले केवल तीन हफ्तों में घर, दफ्तर या बाजार में अपने आसपास के सभी लोगों को संक्रमित कर सकते हैं.
ऐसी स्थिति नहीं आनी चाहिए. डॉक्टर बताते हैं कि इबोला के खिलाफ सबसे बड़ा हथियार साफ सफाई, संक्रमण वाली बीमारियों के बारे में जानकारी, सुरक्षा वाले कपड़े और मानवीय समझ है. ये सारी बातें पश्चिमी देशों में मौजूद हैं. सारी तैयारी है लेकिन इनका कोई फायदा नहीं यदि डर तर्कसंगत न हो. साल दर साल विकसित जर्मनी में हजारों लोग इंफ्लुएंजा से मरते हैं क्योंकि वे उसके खिलाफ टीका नहीं लेते. यहां तक की कई वयस्क लोग मम्प्स, खसरा या रुबेला जैसी भूली बिसरी बीमारियों से टीका नहीं लेने के कारण मर रहे हैं. दिल की बीमारी, पक्षाघात या नशेबाजी का भी लोगों को डर नहीं सताता, क्योंकि वे हमारे लाइफस्टाइल की ही बीमारियां हैं जिन्हें हम छोड़ना नहीं चाहते.
लेकिन इबोला चौंकाता है, क्योंकि उसका उद्गम अफ्रीका है. वह महादेश जिसे पहली दुनिया के लोग युद्ध, बीमारी और आपदा की वजह से जानते हैं.किसी के दिमाग में नहीं आता कि बीमारी के खिलाफ संघर्ष में राहत संगठनों को चंदा देकर अफ्रीका की मदद की जानी चाहिए. अपने डर को बनाए रखना और घबराते रहना ज्यादा आसान है. लेकिन अफ्रीका में जो कुछ हो रहा है उसे देखते हुए ऐसा करना बहुत ही स्वार्थी रवैया होगा.