इतिहास में आजः 10 अगस्त
१० अगस्त २०१४पेशे से वकील रहे विष्णु नारायण भातखंडे ने संगीत को आधुनिक स्वरूप दिया. इसे ही आज भी पूरे भारत में इस्तेमाल किया जाता है. इतना ही नहीं उन्होंने दशकों से मौखिक परंपरा में चल रहे भारतीय संगीत को एक लिखित स्वरूप भी दिया.
पहले रागों को राग, रागिनी और पुत्र यानि बच्चे, ऐसा बांटा जाता था. लेकिन उन्होंने पाया कि संस्कृत में दिए गए विवरण से राग मेल नहीं खाता. उन्होंने आम जनता को समझ में आने वाली भाषा में राग समझाए और ऐसी कई बंदिशों की रचना की जिससे राग का पूरा विवरण मिल जाता. इसके लिए उन्होंने कर्नाटक संगीत के लक्षण गीत अपनाए. और ठाठ पद्धति का विकास किया.
1887 में पढ़ाई बाद के बाद कराची हाईकोर्ट में वकील के तौर पर काम करने वाले भातखंडे ने पत्नी और बेटी की मौत के बाद नौकरी छोड़ दी. और अपना पूरा समय भारतीय संगीत को समझने और एक नई पद्धति बनाने में बिताया. इस दौरान उन्होंने संगीत के गढ़ रहे बरोडा, ग्वालियर और रामपुर की यात्रा की.
संगीत के बारे में उन्होंने स्वर मलिका नाम की किताब छापी जिसमें रागों की सारी जानकारी थी. उनकी किताब हिंदुस्तानी संगीत पद्धति आज भी काम में आती है और संगीत सीखने वाले छात्रों का मार्गदर्शन करती है. उनका नोटेशन सिस्टम मानक बना रहा हालांकि बाद में उसमें पंडित डीवी पलूस्कर, विनायक नारायण पटवर्धन और पंडित ओंकार नाथ ठाकुर ने कुछ बदलाव किए.