इतिहास बनाया दीपा ने
दीपा कर्मकार रियो में ओलंपिक पदक तो नहीं जीत पाईं लेकिन करोड़ों दिलों को जीतने में कामयाब रहीं. वह भारत की पहली महिला जिम्नास्ट हैं जिन्होंने ओलंपिक खेलों में भाग लिया और मात्र 0.1 पॉइंट के अंतर से कांस्य पदक से चूक गईं.
छोटे शहर की चैंपियन
दीपा कर्मकार का खेल जीवन सुदूर भारत के त्रिपुरा में संवरा. वहीं से उन्होंने जीत का वो सिलसिला शुरू किया जिसकी मौजूदा पराकाष्ठा रियो ओलंपिक का मंच था. कुछ ही अंतर से वे पदक पाने में चूकीं.
वॉल्ट ऑफ डेथ से दोस्ती
दीपा प्रोडुनोवा वॉल्ट पर जिम्नास्टिक की कलाबाजियां करने वालीं विश्व की पांच महिला खिलाड़ियों में से एक हैं. यह वॉल्ट इतना मुश्किल और खतरनाक होता है कि इसे "वॉल्ट ऑफ डेथ" भी कहा जाता है.
तस्वीरों की जबानी
दीपा ने मात्र छह वर्ष की आयु में ही जिम्नास्टिक का अभ्यास आरम्भ कर दिया था. पर भारत के तीसरे सबसे छोटे राज्य त्रिपुरा की राजधानी अगरतला की इस निवासी को सुविधाओं के अभाव में एक पुराने स्कूटर के कलपुर्जे से बनाये गए "वॉल्ट" पर अभ्यास करना पड़ता था. एक विवाह स्थल उसका जिम था.
खेलरत्न पुरस्कार
दीपा को हाल ही में राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से नवाजा गया है. पहले उनका नाम सूची में नहीं था पर रियो ओलंपिक में उनके शानदार प्रदर्शन को देखते हुए यकायक उनका चयन किया गया. उनके ड्रॉईंग रूम में देश विदेश के 77 पुरस्कार भरे पड़े हैं जिनमें 67 तो स्वर्ण हैं.
घर पर स्वागत
दीपा जब रियो ओलंपिक से वापस लौटीं तो उनके गृहनगर अगरतला में उनका एक नायक की तरह स्वागत किया गया. उनके स्वागत में स्कूल-कॉलेजों में छुट्टी रखी गई और पूरे शहर को बधाई के बैनरों और पोस्टरों से पाट दिया गया.
ट्रेनर पिता
पिता दुलाल कर्मकार पेशेवर वेट लिफ्टिंग कोच हैं. दीपा के जन्म के समय ही उन्होंने तय कर लिया था कि वे उसे खिलाड़ी बनाएंगे. दीपा की शारीरिक संरचना के चलते उन्होंने उसे वेटलिफ्टर की जगह जिम्नास्ट बनाने का फैसला किया.
समर्थकों का शुक्रिया
दीपा एक महत्वपूर्ण मुकाम भले ही हासिल न कर पाई हों, लेकिन उन्होंने एक नया मुकाम हासिल जरूर किया. रियो में उन्होंने दिखाया कि एक भारतीय जिमनास्ट भी ओलंपिक पदक के सपने देख सकते हैं. समर्थकों के लिए उनका ये कार्ड.