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इको सिस्टम चरमराने का संकेत है जीवों का विस्थापन

६ दिसम्बर २०१९

जीव जंतुओं की करीब 2,000 प्रजातियां अपना घर छोड़ कहीं और जाने पर मजबूर हैं. यह इको सिस्टम के चरमराने की शुरुआत है. जल्द ही इंसान भी इसकी कीमत चुकाएगा.

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Wandernde Tierarten unter dem Schutz von United Nations CMS Flash-Galerie
तस्वीर: UNEP/CMS UNEP/AEWA

जलवायु परिवर्तन जीवों को मौसमी बदलावों के मुताबिक ढलने या नया बसेरा खोजने पर मजबूर कर रहा है. बिल्कुल यही हाल समुद्री जीवों का भी है, जैसे मूंगे. पानी का तापमान और प्रदूषण बढ़ने से मूंगे भारी खतरे में हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर समुद्री जल का तापमान दो डिग्री सेल्सियस और बढ़ा तो ज्यादा कोरल जिंदा नहीं बचेंगे. उनकी मौत का मतलब होगा, मछलियों और समुद्री वनस्पतियों की कई प्रजातियों का खात्मा. 

सारस और अन्य प्रवासी पंछी अभी से खुद को ढालने लगे हैं. पहले वे सर्दियां अफ्रीका में बिताया करते थे, वहां अथाह मात्रा में भोजन में भी मिलता था. लेकिन अब ये पंछी अपने घरों में रहने लगे हैं. इसका असर अफ्रीका के इकोसिस्टम पर पड़ सकता है. कम पंछियों का मतलब है, उन शिकारियों की संख्या कम होना जो टिड्डी जैसे कीटों को खाते हैं.

पेड़ की छाल में रहने वाले झींगुर जैसे परजीवियों को जलवायु परिवर्तन का फायदा होगा. ज्यादा गर्मी और कम बारिश की वजह से पेड़ों की खुराक प्रभावित होगी और उनका आत्मरक्षा तंत्र कमजोर पड़ेगा. चीड़ की एक प्रजाति स्प्रूस का सारा जंगल इस परजीवियों से उजड़ने लगा है.

बढ़ता तापमान अफ्रीकी देश तंजानिया के सेरेंगेटी इलाके के इकोसिस्टम में दखल देने लगा है. इन घास के मैदानों में जेब्रा और नीलगाय हमेशा वर्षा के साथ इलाका बदलते थे. लेकिन बार बार लौटते और लंबे होते सूखे की वजह से अब ये जानवर कहीं और पानी खोजने पर मजबूर हो रहे हैं. पानी के चक्कर में वे रास्ता भटक कर इंसानी रिहाइश वाले बड़े इलाकों की तरफ बढ़ रहे हैं.

फिर वे खेती के लिए भी खतरा बनते हैं और आसानी से शिकारियों का शिकार भी बनते हैं. जलवायु परिवर्तन और प्रजातियों के लुप्त होने के बीच अटूट संबंध है. वैज्ञानिक दोहरे संकट की चेतावनी दे रहे हैं. इसके मुताबिक आने वाले दशकों में 10 लाख प्रजातियों के लुप्त होने का खतरा पैदा हो जाएगा.

 रिपोर्ट: वोल्फ गेबहार्ट, टाबेया मैर्गेनथालर/ओएसजे

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