इंग्लैंड का गोल न दिए जाने पर विवाद
२८ जून २०१०कई जर्मन अखबार इसे 1966 के वर्ल्डकप के फाईनल में जर्मनी को नहीं दिए गऐ गोल का संतुलनकारी न्याय मान रहे हैं जिसके बाद इंग्लैंड वर्ल्ड चैंपियन बना था.प्रश्न यह है कि यदि विडीयो प्रूफ जैसी तकनीकों का इस्तेमाल होता तो इस बार क्या एक ऐसे गलत फैसले से बचा जा सकता था?. लंदन में मैच देख रहे इस फुटबॉल प्रेमी का कहना है कि यह बहुत ही बेफकूफी भरा फैसला है कि आज तक विडियो प्रूफ की बात को दबाई जाती है.
वर्ल्ड कप में शामिल 29 रेफ़रियों की पिछले दिनों में खूब आलोचना हुई है. खासकर युरूग्वे के खोर्गे लारियोंदा, जो इंग्लैंड और जर्मनी के यादगार मैच में भी रेफरी थे, आलोचना के केंद्र में रहे हैं. ब्रिटेन के कोच फाबियो कापेलो भी उनके फैसले की वजह से सदमे में पड गए. उनका कहना था.
सबसे ज़रूरी यह समझना है कि साफ़ साफ़ 2-2 गोल हुए थे. जो हुआ है इसकी कोई कलपना ही नहीं कर सकता था. यदि वह दूसरा गोल दिया गया होता, तो शायद पूरा मैच ही बदल जाता. मै इस गलती को न तो समझ सकता हूं और न माफ कर सकता हूं. - फ़ाबियो कापेलो
लंबे समय से कई विशेषज्ञ मान रहे हैं कि विडियो प्रूफ या बॉल में चिप लगाने से गलत फैसलों की संभावना को मिटाया जा सकता है क्योंकि आदमी से भूल होना स्वाभाविक है. विडियो प्रूफ का इस्तेमाल करने पर ऑफ साईड या गोल बनने न बनने के बारे में कैमरों की मदद से सही फैसला किया जा सकता है. दूसरा एक उपाय यह हो सकता है कि बॉल में एक कंप्यूटर चिप को छिपाया जाए, जो अपने सिग्नल के द्वारा बता सकता है कि कब बॉल ने गोल पोस्ट की लाईन पार की. साथ ही यह भी बहस हो रही है कि दो रेफरियों को गोल पर नज़र रखने के लिए ही रखा जाए. जर्मनी के स्ट्राईकर मिरोस्लाव क्लोज़े का मानना है कि जो भी तकनीक उपलब्ध है उसका इस्तेमाल करना चहिए. ऐसा अमेरिकन फुटबॉल या आईस हॉकी जैसे खेलों में भी तो किया ही जाता है.
मुझे ऐसा लगता है कि यदि आपके पास कैमेरा लगाने की या चिप की सुविधा है, तब आप को इस तरह की तकनीकों का इस्तेमाल करना चाहिए. - मिरोस्लाव क्लोज़े
हालांकि जर्मनी के मिडफील्डर सामी खेदिरा इस बात से सहमत नहीं हैं.
हम खिलाडी इस बात पर काफी खुश हैं कि हम बिना किसी तकनीक का इस्तेमाल करते हुए खेल रहे हैं. यह फुटबॉल का असली रूप है. इसमें भावनाएं शामिल हैं और कुल मिलाकर फैसलों का भी संतुलन हो जाता है. हर चीज़ को लेकर फायदा और नुकसान होता ही है. लेकिन मै नहीं चाहता कि खेल में भी तकनीक का इतना महत्व हो जाये. - सामी खेदिरा
इस वक्त दोनों गोल पोस्टों पर नज़र रखने वाले दो और रेफरियों के साथ प्रयोग किये जा रहे है. उदाहरण के लिए यूरोपा लीग और अब यूरोप कप और चैंपियन्स लीग में भी. विडियो प्रूफ को लेकर सबसे ज़्यादा डर यह है कि उसकी वजह से खेल लंबा खिंच जाएगा और बार बार रुक जाया करेगा. आज तक अफवाएं हैं कि 2006 के वर्ल्ड कप फाईनल में जब फ्रांस के जादूगर ज़िनेदीन ज़िदान को रेड कार्ड दिखाया गया था, तब रेफरी ने एक मॉनिटर पर सीन देखा था और फिर अपना फैसला लिया था. औपचारिक रूप से इस का हमेशा खंडन किया गया है. बॉल में चिप लगाने के आलोचकों का मानना है कि चिप खराब भी तो हो सकता है.
रिपोर्ट: प्रिया एस्सेलबोर्न
संपादन: उज्ज्वल भट्टाचार्य