1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

आपके टूथपेस्ट में प्लास्टिक तो नहीं

२० मार्च २०१४

विज्ञापनों में यह तो पूछा जाता है कि क्या आपके टूथपेस्ट में नमक है, पर क्या कभी किसी ने यह सवाल किया है कि क्या आपके टूथपेस्ट में प्लास्टिक है? जी हां, सिर्फ टूथपेस्ट में ही नहीं, आपके मेकअप में भी प्लास्टिक शामिल है.

https://p.dw.com/p/1BScK
तस्वीर: Fotolia/dkimages

पर्यावरण इंजीनियर मार्टिन लोएडर जब भी अपने दांत साफ करते, उनकी जबान पर एक सफेद सी परत रह जाती. मार्टिन को अंदाजा तो था कि यह क्या हो सकता है लेकिन उन्होंने अच्छे से पता लगाने का सोचा. उन्होंने ट्यूब का टूथपेस्ट दस माइक्रोमीटर पतली जाली में डाला. एक माइक्रोमीटर मिलिमीटर का 100वां हिस्सा होता है. जाली पर जो बचा, उसे उन्होंने माइक्रोस्कोप के नीचे देखा. उन्हें दिखी, सुंदर गोल प्लास्टिक की बूंदे.

टूथपेस्ट में प्लास्टिक का क्या काम?

माइक्रोप्लास्टिक के ये कण अक्सर पीलिंग प्रोडक्ट में काम में आते हैं, जैसे चेहरा साफ करने वाला जेल. इससे सफाई का इफेक्ट आता है और त्वचा पर जमी डेड स्किन निकल जाती है. प्लास्टिक के ये कण नर्म होते हैं और इसलिए इन्हें टूथपेस्ट में इस्तेमाल किया जाता है. क्योंकि इससे मसूढ़ों को नुकसान हुए बिना सफाई की जा सकती है. इतना ही नहीं ये माइक्रोप्लास्टिक लिपस्टिक, मस्कारा और मेकअप उत्पादों में भी होती है. अगर आप अपने स्क्रब, फाउंडेशन या टूथपेस्ट पर लिखी जानकारी पढ़ेंगे तो उसमें पोलीएथिलीन (पीई), पोलीप्रॉपिलेन (पीपी) जैसा कुछ लिखा मिलेगा. ये कुछ और नहीं, प्लास्टिक ही है. यानि ये कोई राज नहीं. लेकिन कॉस्मेटिक कंपनियां इस मुद्दे पर बात करना पसंद नहीं करती.

Kosmetika
तस्वीर: picture-alliance/dpa

वहीं कुछ कंपनियां दावा करती हैं कि वे आने वाले दिनों में माइक्रोप्लास्टिक का विकल्प तैयार करेंगी और उत्पादन में धीरे धीरे बदलाव करेंगी. लॉरिएल ने डॉयचे वेले को ईमेल में बताया कि 2017 तक वह अपने उत्पादों से माइक्रोप्लास्टिक हटा देगा. नीवीया बनाने वाली कंपनी बायर्सडॉर्फ ने भी वादा किया है कि 2015 के अंत प्लास्टिक किसी उत्पाद में नहीं मिलेगा.

खाद्य चक्र में मिला प्लास्टिक

क्योंकि मुद्दा सिर्फ उत्पादों में प्लास्टिक के इस्तेमाल का नहीं है. ये बूंदे घुलनशील नहीं होते और इसलिए पानी से होते हुए मिट्टी, नदी और समंदर तक पहुंच जाते हैं. मछलियां इन्हें निगल लेती हैं और इंसान मछलियां खाता है.

मार्टिन लोएडर 2011 से माइक्रोप्लास्ट नाम के प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं और उत्तरी और बाल्टिक सागर में प्लास्टिक के इन कणों के प्रदूषण के बारे में शोध कर रहे हैं, ताकि जरूरत होने पर जर्मनी का शिक्षा और शोध मंत्रालय इस पर रोक लगाने के बारे में विचार करे. पर्यावरण संस्था नाबू के मुताबिक उत्तरी सागर में सालाना 20,000 टन प्लास्टिक फेंका जाता है. माइक्रोप्लास्टिक की समस्या यह है कि वह पानी में मिले हुए जहरीले केमिकल को आकर्षित करता है और उनसे मिल कर जहरीला कॉकटेल बना लेता है. फिर मछलियां इसे खाती हैं और इन मछलियों के साथ ये प्लास्टिक हमारी प्लेट में आ जाता है.

माइक्रोप्लास्टिक से निबटने के लिए वालेडा नाम की कंपनी अब मोम का इस्तेमाल करने लगी है. वहीं कई अन्य कंपनियां टूथपेस्ट में सिलिका, सोडियम और कैल्शियम कार्बोनेट का इस्तेमाल कर रही हैं.

रिपोर्टः जूलिया वर्जिन/एएम

संपादनः ईशा भाटिया