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डायबिटीज के खिलाफ टीका

२७ जून २०१३

डायबिटीज टाइप वन में मरीज के शरीर में इंसुलिन पैदा होना कम हो जाता है जिससे खून में चीनी की मात्रा बढ़ जाती है. एक नए शोध में एक टीका विकसित करने की कोशिश की गई है जिससे इस बीमारी को कुछ सालों तक टाला जा सकता है.

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तस्वीर: Fotolia/Zsolt Biczó

मानव शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली यानी इम्यून सिस्टम डायबिटीज स्टेज वन के दौरान अजीब तरह से काम करने लगती है. इसमें शरीर पैंक्रियास ग्रंथि में पैदा होने वाले इंसुलिन को बनाने वाली कोशिकाओं को खुद खत्म करने लगता है. इंसुलिन एक जरूरी हॉरमोन है जिससे शरीर में चीनी को पचाया जाता है. भारत में हर पांच में से एक व्यक्ति को इस बीमारी के होने का खतरा है.

खतरनाक इंसुलिन की दवाएं

डायबिटीज टाइप वन में इम्यून सिस्टम शरीर के खिलाफ काम करने लगता है जिससे कैंसर और छोटी मोटी बीमारियों की संभावना बढ़ जाती है. इस वक्त मरीज अपने खून में चीनी की मात्रा यानी ब्लड शुगर पर काबू रखने की कोशिश करते हैं और खास इंसुलिन की दवाइयां भी लेते हैं. लेकिन इस ट्रीटमेंट में खतरा भी है, इनसे मरीज कोमा में जा सकता है, उसकी नंसें काम करना बंद कर सकती हैं, गुर्दे काम करना बंद कर सकते हैं, दिल को खतरा हो सकता है और आंखों की देखने की क्षमता कम हो सकती है.

अमेरिकी शोध संस्था जेआरडीएफ के डॉक्टर रिचर्ड इंसेल का कहना है कि उनके शोध में वे इस रोग प्रतिरोधक क्षमता को काबू में करना चाहते हैं. इम्यून सिस्टम के केवल उस हिस्से को नियंत्रण में लाने की कोशिश की जा रही है जो इंसुलिन बनाने वाली कोशिकाओं को खत्म कर रहा है. जेआरडीएफ नीदरलैंड्स के लाइडेन विश्वविद्यालय और अमेरिका के स्टैनफर्ड विश्वविद्यालय के साथ काम कर रहा है. इन संस्थाओं ने मिलकर एक टीके को टेस्ट किया है जो उन रोग प्रतिरोधक कोशिकाओं को खत्म कर रहा है जो पैंक्रियास पर हमला करती हैं और इंसुलिन पैदा करने वाली बीटा कोशिकाओं को खत्म करती हैं.

डीएनए वैक्सीन

Insulin-Molekül
तस्वीर: AP

इस टीके को केवल 80 लोगों पर जांचा गया है और इसका नाम है टीओएल 3021. इसे डीएनए वैक्सीन के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसे डीएनए के एक छोटे गोल से टुकड़े से बनाया गया है. स्टैनफर्ड के डॉक्टर लॉरेंस स्टीनमैन कहते हैं, "डीएनए को एक जटिल प्रक्रिया से काटा गया है ताकि वह इम्यून सिस्टम को बार बार संकेत करना बंद करे. इससे एक ऑफ स्विच चालू हो जाता है." हफ्ते में एक बार मरीजों को 12 टीके दिए जाते हैं. जिन मरीजों पर यह टेस्टिंग हुई, उनमें इंसुलिन बनाने वाली बीटा कोशिकाएं कुछ हद तक बची रहीं और पैंक्रियास को कोई नुकसान नहीं हुआ. मरीजों के शरीर में घातक टी सेल्स की मात्रा भी कम हुई. यह वह रोग प्रतिरोधक कोशिकाएं हैं जो शरीर में खतरा देखने पर सीधे संदिग्ध कोशिकाओं को खत्म करने लगती हैं.

कैलिफॉर्निया की कंपनी टोलेरियन अब इस टीके को 200 लोगों पर जांच रही है और जानने की कोशिश कर रही है कि क्या युवा मरीजों में डायबिटीज को कम किया जा सकता है. कोशिश की जा रही है कि टीका उन लोगों तक पहुंचाया जा सके जिनकी जेनेटिक बनावट में डायबिटीज टाइप वन का खतरा हो.

एमजी/आईबी(रॉयटर्स)

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