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आधुनिक दौर में कारनामा

विनोद चड्ढा४ नवम्बर २०१४

इस शनिवार के मंथन शो और आलेखों पर हमें बहुत सारी टीका-टिप्पणियां मिली हैं. आइए इनमें से कुछ मित्रों के विचार आपसे शेयर करते हैं.

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Frau mit Smartphone im Flugzeug
तस्वीर: imago/Westend61

विज्ञान संबंधी जानकारी एकत्रित करने हेतु हम डीडी1 पर हर शनिवार सुबह 10:30 बजे हाजिरी देते हैं और इस उपस्थिति को सार्थक बनाता है "मंथन", जिसकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है. नई खोज, नए आविष्कार विज्ञान की पहचान हैं और अब आधुनिक दौर में एक और कारनामा कर दिखाया है जर्मनी की विमान कंपनी लुफ्थान्सा ने, जो हवाई यात्रा के दौरान भी हमें अपनों से जोड़े रहेगा. मेरे विचार से यह सूचना तकनीक में क्रान्तिकारी कदम साबित होगा. हम यात्रा के दौरान किसी अप्रिय घटना को तत्काल साझा कर सकेंगे. इस रोचक जानकारी हेतु पूरी मंथन टीम का धन्यवाद. सादिक आज़मी, सऊदी अरब

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तस्वीरों के माध्यम से दी गई आपकी रिपोर्टों को मैं और भी ज्यादा पसंद करता हूं, क्योंकि यह रिपोर्टे हमें न केवल विविधतापूर्ण विषयों की जानकारी देती हैं, बल्कि यह बहुत ही उच्च गुणवत्ता के चित्र भी हमारे सामने प्रस्तुत करती हैं. 'शाकाहारियों के लिए अलग मेस' व 'रोंगटे खड़े करने वाले 11 प्राणी' दोनों फोटो गैलरी में आपने बड़े आकर्षक चित्रों के साथ महत्वपूर्ण जानकारियां दी हैं लेकिन आजकल आपके नए डिजाइन वाली वेबसाइट पर खेल के बारे में बहुत कम जानकारियां मिल रही हैं. इस पर कृपया आप ध्यान दें. सुभाष चक्रबर्ती, नई दिल्ली

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मंथन से मिल रही नई नई रोचक,ज्ञानवर्धक जानकारियों के लिए मैं डीडब्ल्यू हिंदी का शुक्रगुजार हूं. हमें देश के राष्ट्रीय चैनल डीडी नेशनल पर आपका कार्यक्रम मंथन देखने को मिलता है जो देश में लगभग सभी दर्शकों की पहुंच तक है. मनोज कुमार यादव

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हमारी वेबसाइट पर "महिलाओं की भलाई के लिए" लिखे एक ब्लॉग पर हमें बहुत सारे पाठकों ने अपने विचार लिखे हैं. ज्यादातर लोगों का यही कहना है कि औरतों के लिए मर्द अपनी गन्दी सोच बदलें, न की औरतों के पहनावे या रहन सहन को. हमें अपनी सोच को बदलने की जरूरत है.

महेश झा लिखते हैं "वो लोग जो समय के साथ नहीं चलते, समय उनको पीछे छोड़ जाता है. समाज की महिलाओं के पहनावे पर एतराज करने वालों, सिनेमा की अश्लीलता पर प्रतिबंध क्यो नहीं लगवाते, सेंसर बोर्ड तो सरकार के अधीन है, महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों के लिए महिलाओं को ही दोषी करार देना गलत है. अपराध बढ़ने का कारण दूषित राजनीति और कमजोर न्याय व्यवस्था है."

सत्यब्रत सिंह का मत है "दुख की बात है कि भारत में मर्ज समाप्त करने के बजाय उसे बढ़ाने की दवा दी जाती है. जहां नियत और संस्कार बदलने की जरूरत है, वहां कपड़े बदलने की बात होती है".

रोशन चौहान का कहना है "लड़कों का फोन और जींस बंद कर देना चाहिए. वे ही रेप करते हैं. क्या पता जींस न पहनने से वे रेप करना बंद कर दे? जींस तो लड़कियां भी पहनती हैं वे तो लड़कों का रेप नहीं करती."

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"शाकाहारियों के लिए अलग मेस " इस आलेख पर मित्रों से हमें काफी अलग अलग तरह के विचार मिले हैं.

आज़म अली सूमरो लिखते हैं "इस तरह का होना बेहतर ही रहेगा. किसी भी समाज में हर एक व्यक्ति को अपने अकीदे और मर्जी की जिंदगी जीने का पूरा हक हासिल है. इसलिए कि जो चीज मुझे पसंद नहीं, जरूरी नहीं, कि वो दूसरे भी नापसंद करें. और जिस चीज या बात को मैं सही समझता हूं, जरूरी नहीं कि उस को दूसरे भी सही ही समझें."

राहुल चौहान कहते हैं कि अलग मेस होना जरुरी है. मांसाहारी व्यक्ति शाकाहारी का भी खाना देख सूंघ व खा सकता है, जबकि शाकाहारी उनके भोजन को देख भी नहीं सकता है. जो जीवन 24 घंटे पहले दुनिया मेँ था अब वह क्रूरता के साथ रक्त रंजित टुकड़े टुकड़े करके और बेरहमी से पकाकर चटखारे लेकर खाया जा रहा है

अनिल तावड़े ने लिखा है "हमारे देश में बड़ी संख्या में शाकाहारी लोग हैं और उनके धर्म रीति रिवाज उन्हें इजाजत नहीं देते, तो अलग से अगर उनके लिए मेस हो तो इसमें बुरा कुछ नहीं है".

नबीउल्लाह शफी: "जरूर होना चाहिए क्योंकि हर किसी का (एहतराम ( इज्जत होना जरूरी है. दूसरों की भावनाओं को समझने की बात है."

निहारिका जैन लिखती हैं "हां, जरूर होना चाहिए. मैं एक वर्ष के लिए देहरादून में छात्रावास में थी. वहां एक साल मैंने कैसे समय बिताया मुझे मालूम है. मेस में यह सब असहनीय हो गया और मैं अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़ कर चली आयी. केवल एक शाकाहारी ही बता सकता है."

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आप अपने मन की बातें इसी तरह हमसे बांटते रहें. आगे भी आपकी प्रतिक्रियाओं का हमें इंतजार रहेगा.