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आत्महत्या के लिए उकसा रहा है चौतरफा दबाव

रिपोर्ट: विश्वरत्न, मुंबई२२ अप्रैल २०१६

युवा मन निराशा की अवस्था में आत्महत्या को गले लगाना चाहता है. परिवार, करियर और पढ़ाई का दबाव महानगरीय युवाओं को अवसाद में डाल रहा है.

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तस्वीर: hikrcn/Fotolia

प्रत्युषा बनर्जी, जिया खान और रोहित वेमुला जैसे युवाओं के आत्महत्या ने देश भर का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया, पर ऐसे युवाओं की कमी नहीं है जो निराशा के क्षणों में आत्महत्या को गले लगाना चाहते हैं. महानगरों में रहने वाले लाखों युवा आत्महत्या के बारे में ना केवल सोचते हैं बल्कि कोशिश भी करते हैं. मुंबई, बेंगलुरु और चेन्नई के युवाओं के बीच किये गए एक सर्वे से इसका खुलासा हुआ है.

क्या कहता है सर्वे

पोद्दार इंस्टीट्यूट ऑफ एजुकेशन के इस सर्वे में 14 से 24 साल के युवाओं की मानसिक स्थिति को समझने की कोशिश की गयी है. इस सर्वे में मुंबई, बेंगलुरु और चेन्नई के 1,900 युवाओं ने हिस्सा लिया. सर्वे के नतीजे मानसिक स्वास्थ विशेषज्ञों को चिंता में डालने के लिए काफी हैं.

सर्वे में हिस्सा लेने वाले मुंबई के 58 फीसदी युवाओं ने माना कि उन्होंने कभी न कभी आत्महत्या करने के बारे में सोचा है. इस मामले में बेंगलुरु और चेन्नई की स्थिति मुंबई से थोड़ी बेहतर है. सर्वे में शामिल बेंगलुरु के 52 फीसदी और चेन्नई के 32 फीसदी युवाओं ने स्वीकार किया कि उन्होंने अतीत में कभी आत्महत्या के बारे में सोचा था.

सर्वे में जिन युवाओं ने आत्महत्या के बारे में सोचने की बात स्वीकारी, उनमें से मुंबई के 42 फीसदी युवाओं ने माना कि उन्होंने इसके लिए कोशिश भी की थी. वहीं बेंगलुरु के 40 फीसदी और चेन्नई के 41 फीसदी युवाओं ने स्वीकारा कि वे अपनी जान लेने की कोशिश कर चुके हैं.

Symbolbild Depression und Suizid
दुनिया भर में बढ़ रहे हैं अवसाद के मामलेतस्वीर: picture alliance/Dries Luyten

परिवार, करियर और पढ़ाई का दबाव

मुंबई में हुए सर्वे में हिस्सा लेने वाले युवाओं में से 65 फीसदी लोगों ने परिवार, करियर और पढ़ाई को दबाव का कारण बताया. इसके अलावा जानकार बेरोजगारी और प्रेम प्रसंग में असफलता को भी युवाओं के बीच आत्महत्या का एक प्रमुख कारण मानते हैं. टीवी की सफल अभिनेत्री मानी जाने वाली प्रत्युषा बनर्जी या दलित छात्र रोहित वेमुला के मन में आखिर आत्महत्या का विचार कैसे आया होगा, इसके जवाब में मनोवैज्ञानिक डॉ. प्रियम्बदा सुबोध कहती हैं कि निराशा के क्षणों में ना केवल किशोर बल्कि प्रत्युषा जैसे लोग भी स्वयं को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं. अवसाद में घिरे इन लोगों को लगने लगता है कि उनकी जिंदगी का कोई मतलब नहीं है, इसे खत्म कर देना ही एकमात्र विकल्प है.

एनसीआरबी के आकड़े

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार देश में 2014 में हर घंटे कम से कम 15 लोगों ने आत्महत्या की और इस तरह पूरे साल में 1.31 लाख से अधिक लोगों ने अपनी जान ले ली. आत्महत्या करने वालों में 41 फीसदी युवा थे जिनकी उम्र 14 से 30 के बीच ही थी. आत्महत्या करने वालों में लगभग 6 फीसदी छात्र थे. आत्महत्या करने वाले युवा पुरुषों की तुलना में युवा महिलाओं की संख्या कहीं ज्यादा है. एनसीआरबी की रिपोर्ट बताती है कि कुल आत्महत्या करने वाली महिलाओं में 52 फीसदी महिलाओं की उम्र 14 से 30 के बीच की थी.

एनसीआरबी आंकड़ों के अनुसार महाराष्ट्र में इस तरह के सबसे अधिक मामले दर्ज किए गए, वहीं चेन्नई शहरों में सबसे ऊपर रहा. रिपोर्ट के अनुसार, शहरों में आत्महत्या की दर 12.8 थी, जो पूरे भारत में 10.6 की दर से थोड़ी अधिक है.

ड्रग्स का खतरा

ड्रग्स का अवसाद और अवसाद का आत्महत्या से गहरा रिश्ता है. सर्वे में शामिल नतीजे बताते हैं कि अवसाद में रहने के दौरान मुंबई के 28 फीसदी, बेंगलुरु के 34 फीसदी और चेन्नई के 25 फीसदी युवाओं ने ड्रग्स का इस्तेमाल किया. वहीं कुछ और ने कहा कि तनाव से उबरने के लिए स्मोकिंग, पान-मसाला चबाना और शॉपिंग जैसे नुस्खे भी आजमाए. इसके उलट स्थिति भी है. जानकार मानते हैं कि महानगरों में युवा ड्रग्स के आदी होने के बाद अवसाद से घिर जाते हैं. इसके बाद आत्महत्या का ख्याल आने लगता है.

उपाय

इस समस्या से निपटने में परिवार और दोस्तों की बड़ी भूमिका है. अभिभावकों का अपने बच्चों से अत्याधिक अपेक्षाएं रखना, उनका तुलनात्मक स्वभाव और उम्मीदों पर खरा ना उतरने पर नाराज होना बच्चों के मानसिक स्वास्थ के लिए ठीक नहीं है. इसे परिजनों को समझना होगा. वहीं प्रेम प्रसंग में मिली असफलता में परिवार और दोस्तों का प्यार दवाई का काम करता है. महानगरों के जीवन शैली में एकल परिवार व्यवस्था होने के चलते माता-पिता को अधिक समय और प्यार देने की जरूरत है. मनोचिकित्सक डॉ पवन सोनार कहते हैं कि बच्चों के व्यवहार में आ रहे परिवर्तन पर अभिभावकों को समझदारी से ध्यान देने की भी जरूरत है. अभिभावक को डांट डपट की बजाय एक दोस्त बनकर अपने बच्चों को भावनात्मक रूप से मजबूत करना होगा.