1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

आत्मकथा को लेकर उत्साहित हैं आशा भोंसले

२० सितम्बर २०१४

जानी-मानी गायिका आशा भोंसले को अफसोस है कि नए गायक पहले के गायकों की तरह अब दिल से नहीं बल्कि दिमाग से गाते हैं. बारह हजार से ज्यादा गीत गा चुकी आशा अब अपने छह दशक लंबे करियर के अनुभवों पर आधारित आत्मकथा लिख रही हैं.

https://p.dw.com/p/1DFqm
तस्वीर: DW/Prabhakarmani Tewari

तकनीक की बेहतरी ने गानों की रिकार्डिंग काफी आसान कर दी है. इसे लेकर वह काफी उत्साहित हैं. दुर्गा पूजा के मौके पर बांग्ला म्युजिक एलबम पंचम तुमि कोथाय (पंचम तुम कहां हो) के लांच के लिए 25 साल बाद कोलकाता पहुंची आशा ने डॉयचे वेले के साथ बातचीत में अपने सफर, अनुभवों और अपनी आत्मकथा को लेकर कुछ सवालों के जवाब दिए. पेश है इस बातचीत के प्रमुख अंशः

आपने संगीत की दुनिया में एक लंबा दौर देखा है. तब और अब में क्या फर्क आया है?

हमारे समय की बात अलग थी. हम एक-एक गीत पर कड़ी मेहनत करते थे. तब धुन बनाने वालों के साथ बैठ कर ही गीतकार गाने की धुन समझ लेते थे. लेकिन अब तो कई बार सुनने के बाद गायक गाने की सही धुन नहीं पकड़ पाते. उस दौर में संगीत निर्देशक भी बढ़िया गाते थे. उससे हमें काफी सहूलियत होती थी. उस मेहनत का ही नतीजा था कि तमाम गीत जुबान पर चढ़ जाते थे और कई दशकों बाद भी लोग उनको गुनगुनाते हैं.

रीमिक्स के मौजूदा दौर के बारे में आपकी क्या राय है?

रीमिक्स कर के तो लोग अच्छे-खासे गीतों को बिगाड़ देते हैं. मुझे तब और बुरा लगता है जब कोई लता दी या किशोर कुमार के गीतों के साथ ऐसा करता है. किशोर कुमार जैसा कोई दूसरा नहीं हो सकता.

अब पहले की तरह फिल्मों में कर्णप्रिय और मधुर गीत सुनने को क्यों नहीं मिलते?

गीत क्या अब तो फिल्मों का ही पूरी तरह कायाकल्प हो गया है. पहले माहौल ही अलग था. अब भला किस फिल्म में आप गांव की किसी छोरी को अपने प्रेमी की याद में गीत गाते देखते हैं? अब तो फिल्मी गानों में बेवजह चीखना-चिल्लाना होता है और मौके की मांग के बिना ही नाच-गाना शुरू हो जाता है.

Bollywood-Sängerin Asha Bhonsle
तस्वीर: DW/P. Mani Tewari

इतने लंबे करियर के बावजूद क्या जीवन में अब भी कुछ हासिल करना बाकी है?

महत्वपूर्ण यह नहीं है कि मैं क्या चाहती हूं बल्कि यह है कि क्या होता है. मैंने जीवन में कभी किसी चीज की योजना नहीं बनाई. जरूरी नहीं है कि आपकी हर इच्छा पूरी हो जाए. मुझे जीवन ने बहुत कुछ दिया है. अब भला और क्या चाह होगी?

जीवन में कोई अफसोस?

हां, यह कि मैं शास्त्रीय गीत नहीं गा सकी. दरअसल, मेरे पास इसके रियाज के लिए रोजाना आठ घंटे का वक्त ही नहीं था. सुब से देर रात तक काम करना होता था. संगीत उद्योग एक ट्रेन की तरह है. अगर आप तुरंत इस पर सवार नहीं हुए तो यह छूट जाएगी. मैं अपनी जिम्मेदारियों की बोझ की वजह से यह खतरा मोल नहीं ले सकती थी.

आपकी निगाह में हिंदी फिल्मों के तीन ऐसे गीत जिनको मील का पत्थर कहा जा सके और आपका सबसे पसंदीदा गीत?

मेरी निगाह में मुगले आजम का मोहे पनघट पे, उमराव जान का इन आंखों की मस्ती के और हरे रामा हरे कृष्णा का दम मारो दम ऐसे तीन गीत हैं. जहां तक मेरे पसंदीदा गीत का सवाल है तो वह है कारवां का पिया तू अब तू आजा.

आपकी आत्मकथा कहां तक पहुंची है?

यह पुस्तक मेरे छह दशकों के सफर, जीवन के संघर्षों और दर्द की सच्ची दास्तान होगी. मैंने इसमें कुछ भी नहीं छिपाया है. एक साल से इसे लिख रही हूं. हिंदी में लिखी जा रही यह आत्मकथा अनुदित होकर अंग्रेजी में भी छपेगी. इसका थोड़ा-बहुत काम बाकी है. अपनी इस आत्मकथात्मक पुस्तक को लेकर मैं खुद भी बेहद उत्साहित हूं.

इंटरव्यू: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: महेश झा