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आखिर क्यों खामोश हैं मोदी जी?

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ईशा भाटिया सानन
२४ फ़रवरी २०१६

देश ने पूर्ण बहुमत से एक बोलने वाला नेता चुना था, जो ओबामा स्टाइल में भावुक होकर भाषण देता था. अभी दो साल भी पूरे नहीं हुए कि मोदी जी में मनमोहन सिंह की छवि दिखने लगी है.

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Indischer Premierminister Narendra Modi
तस्वीर: AFP/Getty Images/I. S. Kodikara

अब तक यह सवाल सिर्फ भारत में टीवी के सामने बैठे लोग कर रहे थे. टीवी चैनलों की दिन रात की चीख चिल्लाने वाली बहस से ऊब चुके लोग पूछने लगे थे कि ये तो इतना बोल रहे हैं लेकिन भला मोदी जी कब बोलेंगे. अब यह सवाल देश से बाहर निकल कर विदेशों के अखबारों में भी दिखने लगा है. और जाहिर है, सवाल पूछा भी क्यों ना जाए. आखिर मोदी जी बोलने के लिए तो इतने मशहूर हैं. अमेरिका का मैडिसन स्क्वायर हो या ऑस्ट्रेलिया का अल्फोंस अरेना, इतनी बड़ी संख्या में लोग उन्हें सुनने ही तो गए थे. इसकी वजह भी है. हमारे पिछले प्रधानमंत्री माननीय मनमोहन सिंह अपनी चुप्पी के लिए मशहूर थे. जैसे ही बोलने वाला प्रधानमंत्री मिला तो लोगों ने राहत की सांस ली. और ये सिर्फ बोलते ही नहीं थे, बल्कि किसी भी सामान्य व्यक्ति की तरह जब भी किसी जान पहचान वाले से मिलते, तो जोर से गले भी मिलते. ओबामा हों, जकरबर्ग या ओलांद, इन्होंने हर किसी को गले लगाया. और तो और ये आपके हमारे जैसे लोगों की ही तरह सोशल मीडिया का भी खूब इस्तेमाल करते. बात बात पर ट्वीट कर देते. कभी किसी का जन्मदिन नहीं भूलते. यहां तक कि कभी कभार तो जन्मदिन नहीं हुआ, तब भी शुभकामनाएं दे दीं. आज ही उन्होंने जयललिता को जन्मदिन की शुभकामनाएं दी हैं.

Manthan in Lindau
ईशा भाटियातस्वीर: DW

यानि मोदी जी जन्मदिन तो हरगिज नहीं भूलते. वैसे उनके बारे में कहा जाता है कि वे कुछ भी नहीं भूलते. तो मतलब यह हुआ कि जिस वक्त देश में इतना हंगामा मचा है, तब मोदी जी भूल कर तो नहीं, जानबूझ कर ही चुप हैं. उनके ट्विटर हैंडल पर नजर डाली जाए, तो लगता है जैसे वे किसी अलग ही दुनिया में जी रहे हैं. एक शांत, विवादों से परे दुनिया, जहां सब कुछ ठीक है. मजे की बात तो यह है कि "मन की बात" करते हुए वे स्कूली टीचरों, छात्रों और उनके माता पिता से उनके अनुभवों के बारे में पूछ रहे हैं. मोदी जी, जरा स्कूल से थोड़ा आगे बढ़ कर यूनिवर्सिटी के टीचरों, छात्रों और उनके अभिभावकों के दिल का हाल भी पूछ लेते!

शायद मोदी जी ने सुना नहीं, एक स्टूडेंट है, कन्हैया कुमार नाम का. उस पर देशद्रोह का आरोप है. इंटरनेट पर उसकी 23 मिनट लंबी स्पीच मौजूद है, जिसके लिए उसे देशद्रोही कहा जा रहा है. 23 मिनट बहुत होते हैं. इतना वक्त आज के जमाने में किस के पास है? इसलिए 90 सेकंड की वीडियो देख कर ही हम राय कायम कर लेते हैं. और फिर वीडियो सही है या नहीं, इसकी पुष्टि करने लगेंगे, तो उसमें भी तो वक्त बर्बाद होगा ना. शायद मोदी जी के पास भी वक्त नहीं रहा होगा, कोई भी वीडियो देखने का.

वैसे इंटरनेट में और भी बहुत कुछ मौजूद है. एक वकील है. विक्रम सिंह चौहान नाम बताया जा रहा है. उसका भी वीडियो है. कह रहा है कि उसने तीन घंटे तक कन्हैया को मारा, पुलिस के सामने मारा, "तब तक मारा जब तक उसका पेशाब नहीं निकल गया." यह वीडियो तो छोटा सा ही है पर शायद मोदी जी ने यह भी नहीं देखा. शायद वे इसीलिए कुछ बोल नहीं रहे हैं क्योंकि वे कुछ देख और सुन भी नहीं रहे हैं.

उन्होंने शायद वह वीडियो भी नहीं देखा जहां बीजेपी का एक एमएलए जेएनयू में मिलने वाले कंडोम की गिनती बता रहा है. मोदी जी को ट्विटर पर दुनिया का सबसे एक्टिव नेता माना जाता है. तो क्या उन्हें नहीं दिखा कि यह कंडोम वाला मुद्दा ट्विटर पर नंबर एक पर ट्रेंड कर रहा था?

चलिए इस वीडियो को भी छोटी मोटी बात समझ कर भूल जाते हैं, लेकिन हरियाणा में 16 लोग मारे गए. क्या उनकी चीखें भी मोदी जी नहीं सुन पाए? अगर ये मौतें हिन्दू जाटों के कारण ना हो कर किसी इस्लामी चरमपंथी के हमले से हुई होतीं, तो क्या तब भी वे यूं ही चुप रहते? देश ने पूर्ण बहुमत से एक बोलने वाला नेता चुना था, जो ओबामा स्टाइल में भावुक होकर भाषण देता था. अभी दो साल भी पूरे नहीं हुए कि मोदी जी में मनमोहन सिंह की छवि दिखने लगी है. और कुछ ना सही, तो हम नागरिकों से सरकारी अंदाज में इतना ही कह दिया होता कि शांति बनाए रखें.

उम्मीद है कि मोदी जी संसद में अपनी चुप्पी तोड़ेंगे. उम्मीद है कि वह सामान्य इंसान जो बात बात पर भावनाएं दिखाता है, जो ओबामा से गले मिल कर उनकी बेटियों का हाल पूछता है, जो जकरबर्ग के सामने अपनी मां को याद कर के बच्चे की तरह रोने लगता है, वही सामान्य इंसान एक बार फिर नजर आएगा. बस उम्मीद ही है कि देश के हालात मोदी जी को एक बार फिर बोलने पर मजबूर कर सकेंगे.

ब्लॉग: ईशा भाटिया