आखिर कहां लें सांस
भारत की राजधानी दिल्ली-एनसीआर में कराए गए एक हालिया सर्वे में पता चला है कि घर के भीतर की हवा में बाहर के मुकाबले 2-5 फीसदी ज्यादा प्रदूषक तत्व पाए गए हैं.
ट्रैफिक देखकर लगेगा कि बाहर की हवा खराब है, लेकिन दिल्ली और एनसीआर के इलाके में घर के अंदर की हवा बाहर की हवा से ज्यादा खराब है.
दिल्ली-एनसीआर के इलाके में दिन का अधिकतर समय कमरे के अंदर ही बिताने वाले लोगों में से 47 फीसदी लोगों में सांस से जुड़ी कई तरह की बीमारियों के लक्षण पाए गए.
जिन बीमारियों के लक्षण निवासियों में पाए गए उनमें राइनाइटिस या नाक की म्यूकस सतह पर होने वाला वायरस इंफेक्शन, अस्थमा या दमा के अलावा सांस संबंधी संक्रमणों के प्रति काफी कम प्रतिरोध और क्रोनिक पल्मोलरी डिजीज शामिल हैं.
यह सर्वे आर्टिमिस अस्पताल और एयर प्यूरिफायर निर्माता कंपनी ब्लूएयर के सहयोग से कराया गया. ब्लूएयर ने हाल ही में भारत भर में वायु प्रदूषण के खिलाफ एक व्यापक जागरुकता अभियान शुरु किया है. इसी सिलसिले में ऐसे सर्वे कराए गए.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व भर में होने वाली बीमारियों में 3 फीसदी केवल चारदीवारी के अंदर होने वाले वायु प्रदूषण के कारण होती हैं.
हर साल दुनिया भर में लगभग 43 लाख लोग, जिनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे हैं, घर के अंदर के वायु प्रदूषण की चपेट में आने से समय से पहले ही मर जाते हैं.
सर्वे में पता चला कि राजधानी के करीब 82 फीसदी दफ्तरों में हवा की क्वालिटी ठीक नहीं और हवा अस्वस्थ बनाने वाली है. कंपनियों के लिए भी हवा को साफ करना बड़ी चुनौती है.
क्लीन एयर इंडिया मूवमेंट के अंतर्गत कराए गए इस सर्वे में 1,500 लोगों को शामिल किया गया, जिनके ऑफिस या घर दिल्ली, गुड़गांव और नोएडा में हैं. सर्वे में शामिल लोगों की औसत आयु 39 साल है.