आईफिल टावर की चमक का राज
आईफिल टावर, फ्रांस और पेरिस की पहचान है. इसे रात में रोशनी में नहाते हुए देखना गजब का अनुभव है. लेकिन इस दमक को बरकरार रखना आसान नहीं. चलिए देखते हैं कि आईफिल टावर की चमक के लिए कैसे कैसे जतन करने पड़ते हैं.
चार साल बाद
हर चार साल बाद आईफिल टावर में लगी लाइट के बल्ब बदले जाते हैं. इतनी ऊंचाई पर ये काम करना आसान नहीं, इसीलिए बल्ब बदलने के लिए पेशेवर क्लाइम्बरों का सहारा लिया जाता है.
ऊंचाई पर काम
बल्ब बदलने वालों के लिए पहली शर्त यह है कि उन्हें डाविड कालिच की तरह ऊंचाई से नीचे देखने में डर न लगे. पेशेवर क्लाइम्बरों को चार साल बाद 10,000 बल्ब बदलने होते हैं और इलेक्ट्रिसिटी के सॉकेटों को भी साफ करना पड़ता है.
जबरदस्त नजारा
तस्वीर में पीछे का नजारा भले ही जबरदस्त लगे, लेकिन बल्ब बदलने के काम में लगे तकनीशियनों को बेहद सावधान रहना पड़ता है. जरा सी चूक का मतलब है गंभीर चोट लगने का खतरा.
छोटे बल्ब, बड़ी चमक
इस तस्वीर में एरिक अपने साथी पास्कल को एक नया बल्ब थमा रहे हैं. तकनीक बेहतर होने के साथ ही बल्बों की संख्या कम हुई है. 1920 के दशक में इसमें ढाई लाख बल्ब लगे थे जिनकी चमक सिट्रोएन का लोगो बनाती थी.
सुरक्षा पहली शर्त
तकनीशियन सुरक्षा के लिए हेलमेट, पोशाक, खास बेल्ट और हुकों से लैस रहते हैं. धातु के इस विशाल फ्रेम में सेफ प्लेटफॉर्म भी हैं, जहां तकनीशियन बीच में बीच में आकर आराम कर सकते हैं.
कांच की सफाई
बल्ब बदले जाने के बाद लैम्प पर लगे कांच को तब तक साफ किया जाता है जब तक वह चमकने न लगे. सफाई के बाद अगर कांच पेरिस में बहने वाली नदी सेन जैसा प्रतिबिम्ब बनाने लगे, तो समझिये कि काम अच्छे से हुआ.
लोहे के हुक पर
बल्ब बदलने का काम बहुत ही मुश्किल है. तकनीशियन लोहे के एक हुक के सहारे टावर पर लटक कर बल्ब बदलने का काम करते हैं. इस दौरान उन्हें हवा के झोंकों से भी जूझना पड़ता है.
काम खत्म, दीदार शुरू
10 हजार बल्ब बदलने और 25 हजार कू़ड़े के थैले भरने के बाद आईफिल टावर एक बार फिर शाम होते ही दमकने लगता है. यही वजह है कि हर साल 70 लाख लोग इसका दीदार करने पेरिस आते हैं.