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अहम है मोदी का म्यांमार दौरा

५ सितम्बर २०१७

ब्रिक्स सम्मेलन से वापसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन दिवसीय दौरे पर म्यांमार पहुंचे. इस दौरे का मकसद एक्ट ईस्ट पालिसी के तहत पूरब के पड़ोसी देश के साथ विभिन्न क्षेत्रों में आपसी संबंधों को बढ़ावा देना है.

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Indien Premierminister Modi Myanmars San Suu Kyi
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Sharma

यह प्रधानमंत्री मोदी का म्यांमार का पहला द्विपक्षीय दौरा है. इससे पहले वह 2014 में आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान वहां गए थे. प्रधानमंत्री म्यांमार में राष्ट्पति यू चिन क्वा के अलावा स्टेट काउंसलर आंग सान सू ची के साथ बातचीत करेंगे. वह वहां अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर के मकबरे पर जाकर उनको श्रद्धांजलि भी अर्पित करेंगे. मोदी के इस दौरे का मकसद एक्ट ईस्ट पालिसी के तहत पूरब के इस पड़ोसी देश के साथ विभिन्न क्षेत्रों में आपसी संबंधों को बढ़ावा देना है.

भारतीय प्रधानमंत्री के दौरे के दौरान रोहिंग्या मुसलमानों का मुद्दा भी उठने की संभावना है. भारत इस समस्या से निपटने में म्यांमार को सहायता की पेशकश कर सकता है. भारत और म्यांमार की सीमा 1600 किलोमीटर जुड़ी है और पूर्वोत्तर राज्यों के उग्रवादी वहां शरण लेते रहे हैं. भारत के इस पड़ोसी देश में चीन के बढ़ते प्रभुत्व को देखते हुए मोदी का यह दौरा काफी अहम है.

रोहिंग्या समस्या

म्यांमार के रखाइन प्रांत में हाल में रोहिंग्या मुसलमानों पर बड़े पैमाने पर अत्याचारों की खबरें सामने आ रही हैं. वहां से हजारों शरणार्थियों ने भाग कर बांग्लादेश में शरण ली है. भारत ने इन घटनाओं पर चिंता जताते हुए इस रखाइन प्रांत में हालात पर काबू पाने के लिए म्यांमार सरकार को सहायता की पेशकश की है. मोदी के दौरे के दौरान इस पेशकश को अमली जामा पहनाने के तरीके पर बातचीत होगी. विदेश मंत्रालय में बांग्लादेश-म्यामांर डेस्क की प्रमुख और संयुक्त सचिव श्रीप्रिया रंगनाथन कहती हैं, "रखाइन प्रांत में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देकर वहां मौजूदा तनाव को कम किया जा सकता है." प्रधानमंत्री और म्यांमार के शीर्ष नेतृत्व के बीच बातचीत के दौरान इस पहलू पर विचार-विमर्श किया जाएगा.

भारत में भी वैध रूप से 16 हजार और गैरकानूनी रूप से लगभग 40 हजार रोहिंग्या शरणार्थी रह रहे हैं. केंद्र सरकार ने इनको वापस भेजने का फैसला किया है. लेकिन इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है. रोहिंग्या मुसलमानों ने अपनी याचिका में कहा है कि भारत से निकालने पर उनकी मृत्यु लगभग तय है और सरकार का यह कदम भारतीय संविधान के तहत सभी को मिले जीवन के मूलभूत अधिकार का उल्लंघन है. इससे सभी अंतरराष्ट्रीय संधियों का भी उल्लंघन होगा. उनकी दलील है कि संविधान नागरिकों के साथ ही सभी व्यक्तियों को जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है. इस पर सुनवाई के बाद अदालत ने केंद्र से इस मुद्दे पर जवाब मांगा है. अब इस मामले की अगली सुनवाई 11 सितंबर को होगी.

Myanmar Friedensgespräche Aung San Suu Kyi und Htin Kyaw
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/Aung Shine Oo

आपसी संबंधों को बढ़ावा

म्यांमार की पूर्व सैन्य सरकार पर दशकों से पूर्वोत्तर भारत के उग्रवादियों को शरण देने के आरोप लगते रहे हैं. पहले की सरकार ने भारत की शिकायतों पर कोई ध्यान नहीं दिया था. लेकिन अब वहां सरकार बदलने के बाद हालात भी धीरे-धीरे बदल रहे हैं. केंद्र सरकार इलाके में उग्रवाद के सफाए के लिए इस बदली हुई स्थिति का अधिकतम लाभ उठाना चाहती है. भारत पूर्वोत्तर के उग्रवादियों के लिए म्यामांर के दरवाजे बंद करने की मांग कर सकता है.

मोदी अपने दौरे के दौरान म्यामांर की पूर्व राजधानी यंगून जाकर पुराने मंदिरों के संरक्षण के लिए भारत की आर्थिक सहायता का एलान करेंगे. दोनों देशों के बीच आपसी हित के कई अन्य मुद्दों पर भी विचार-विमर्श किया जाएगा. म्यामांर में चीन सबसे बड़ा विदेशी निवेशक है. उसने वहां लगभग 19 अरब अमेरिकी डॉलर का निवेश कर रखा है जबकि भारत का निवेश महज दो अरब डॉलर ही है. अब प्रधानमंत्री के दौरे के दौरान निवेश के नए क्षेत्रों की तलाश पर भी जोर रहेगा.

विकास परियोजनाएं

मोदी के दौरे के दौरान आधारभूत ढांचा, स्वास्थ्य, बिजली, ऊर्जा और विकास से जुड़ी परियोजनाओं से संबंधित कई समझौतों पर हस्ताक्षर की संभावना है. इनमें भूकंप से क्षतिग्रस्त होने वाले पैगोडा और पुराने मंदिरों के संरक्षण के लिए भारतीय सहायता भी शामिल है. इस दौरे से भारत, म्यांमार और थाईलैंड के बीच कादलान हाइवे परियोजना समेत भारतीय सहयोग से चलने वाली कई परियोजनाओं के कामकाज में तेजी आने की संभावना है. जानकार सूत्रों ने बताया कि म्यांमार के शीर्ष नेताओं के साथ मोदी की बैठक में पूर्वोत्तर के आतंकवादी संगठनों की शरण और सहायता का मुद्दा भी उठ सकता है.

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि पड़ोसी देशों खासकर चीन के साथ भारत के बनते-बिगड़ते समीकरणों, हाल में हुए डोकलाम विवाद और इलाके के तमाम देशों में वर्चस्व बढ़ाने के चीन के प्रयासों को ध्यान में रखते हुए मोदी के इस दौरे की काफी अहमियत है. दक्षिण-पूर्व एशिया के प्रवेशद्वार के तौर पर देश की लुक ईस्ट नीति में भी म्यांमार की अहम भूमिका है. पर्यवेक्षकों की राय में इस दौरे से भारत-म्यामांर के ऐतिहासिक, पारंपरिक और पारस्परिक संबंधों में एक नया अध्याय जुड़ सकता है.

रिपोर्टः प्रभाकर