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अहमद पटेल की जीत का असली नायक चुनाव आयोग

मारिया जॉन सांचेज
९ अगस्त २०१७

गुजरात में राज्यसभा चुनाव से फिर यह साफ हो गया है कि भारतीय जनता पार्टी कितना भी दावा करे कि उसकी चाल, चरित्र और चेहरा अलग है, चुनाव जीतने के लिए वो उन सभी रास्तों पर चलने को तैयार है जिनके लिए कांग्रेस पर आरोप लगाती थी.

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Indien - Ahmed Patel
तस्वीर: Getty Images/AFP/C. Khanna

विधायकों की खरीद-फरोख्त में बीजेपी कितनी कुशल है, इसका पता उत्तराखंड, गोवा, अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा में चल चुका है. गुजरात में भी उसने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल को हरवाने के लिए हर संभव चाल चली, लेकिन कांग्रेस से छिटके दो विधायकों की गलती उसे बहुत भारी पड़ी और मध्यरात्रि के बाद हुई मतगणना के बाद अंततः पटेल को विजयी घोषित कर दिया गया.

इस पूरे घटनाक्रम का असली नायक भारत का निर्वाचन आयोग है जिसने अपने आचरण से सिद्ध कर दिया कि वह अपनी संवैधानिक स्वायत्तता की रक्षा करने और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराने की अपनी प्रतिबद्धता पूरी करने के प्रति कितना सचेत और जागरूक है. आयोग से वरिष्ठ केन्द्रीय मंत्रियों के प्रतिनिधिमंडल ने दो बार मुलाक़ात की और अपनी दलीलें रखीं. लेकिन आयोग ने उनके प्रत्यक्ष या परोक्ष किसी भी प्रकार के दबाव के आगे झुकने से इंकार कर दिया और वही किया जो नियम और कानून के तहत उसे करना चाहिए था.

उसके आचरण से एक बार फिर भारतीय नागरिकों का लोकतंत्र और संविधान की सत्ता में विश्वास मजबूत हुआ, और उन्हें यह आश्वस्ति हुई कि जीवन भर नौकरशाह रहने के बावजूद जब कोई व्यक्ति किसी संवैधानिक पद पर आसीन हो जाता है, तब वह किस प्रकार निष्पक्ष होकर अपनी जिम्मेदारियां निभा सकता है.

इस घटनाक्रम से सभी राजनीतिक दलों को यह सीख लेनी चाहिए कि वे अपने सांसदों, विधायकों और नेताओं की राय को नजरंदाज करके शीर्ष नेतृत्व द्वारा किए गए फैसलों को उन पर थोप नहीं सकते. राज्यसभा के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस, भाजपा और जनता दल (यूनाइटेड) के कई विधायकों ने अपनी पार्टी द्वारा समर्थित उम्मीदवार को वोट न देकर दूसरे उम्मीदवार को वोट दिया. इसका प्रमुख कारण पार्टी नेतृत्व द्वारा उन्हें विश्वास में न लेना ही था.

कुछ विधायकों ने प्रलोभन के कारण भी ऐसा कदम उठाया होगा, लेकिन कई विधायकों ने खुलकर पार्टी नेतृत्व के प्रति असंतोष व्यक्त किया. राजनीतिक दलों के अंदरूनी लोकतंत्र के लिए भी यह एक सकारात्मक घटना है क्योंकि यदि पार्टियों का नेतृत्व सभी की राय को ध्यान में रखकर निर्णय नहीं लेगा तो पार्टी के भीतर कामकाज के लोकतांत्रिक तौर-तरीके हाशिये पर जाते रहेंगे. यह लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं होगा.

Indien BJP Präsident Amit Shah
तस्वीर: Imago/Hindustan Times/D. Sansta

कांग्रेस के दो विधायकों ने अपने मतपत्र अपनी पार्टी के प्रतिनिधि को न दिखाकर दूसरों को क्यों दिखाए, इस पर अटकलें लगती रहेंगी. क्या यह अनजाने में हुई गलती थी या इसे जानबूझकर किया गया था? अभी यह कहना मुश्किल है. लेकिन उनकी इस गलती के कारण अहमद पटेल जीत गए और भाजपा की विधायकों को तोड़ने की कोशिश कामयाब होकर भी नाकामयाब रही, क्योंकि उसका राजनीतिक उद्देश्य पूरा नहीं हो पाया. कानून के मुताबिक विधायक अपना मतपत्र केवल अपनी पार्टी के प्रतिनिधि को ही दिखा सकता है. मतदान की वीडियो रिकॉर्डिंग देखकर निर्वाचन आयोग ने इन दो विधायकों के वोट को रद्द कर दिया और अहमद पटेल जीत गए.

आयोग का यह निर्णय इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है क्योंकि मुख्य निर्वाचन आयुक्त ए के जोती लंबे अरसे तक गुजरात में उस समय नियुक्त रहे हैं जब वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वहां के मुख्यमंत्री हुआ करते थे. लेकिन उनकी इस निकटता का उनके निर्णय पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है और यह एक प्रशंसनीय बात है. इससे अन्य संवैधानिक संस्थाओं को भी अपनी स्वायत्तता बनाए रखने के लिए प्रेरणा और साहस मिलेगा जो भारतीय लोकतंत्र के भविष्य के लिए बहुत अच्छी बात होगी.