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असम में दोबारा सिर उठाता बोडो आंदोलन

प्रभाकर मणि तिवारी
२५ अक्टूबर २०१६

पूर्वोत्तर राज्य असम में अलग बोडोलैंड के गठन की मांग में आंदोलन नए सिर से सिर उठा रहा है. इससे राज्य में बीजेपी के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल की सरकार की मुसीबतें बढ़ सकती हैं.

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Indien Bodo Ureinwohner verlangen eigene Bundesland
तस्वीर: DW/P. M. Tewari

असम में बीजेपी की अगुवाई में सर्वानंद सोनोवाल की सरकार को सत्ता संभाले अभी छह महीने भी नहीं बीते हैं. बीते विधानसभा चुनावों में पार्टी ने बोडो गुटों के साथ हाथ मिलाया था. लेकिन अब विभिन्न बोडो संगठनों ने बीजेपी सरकार पर राजनीतिक साजिश रचने का आरोप लगाते हुए आंदोलन का बिगुल बजा दिया है. इसके तहत सोमवार को निचले असम के बोडोबहुल उदालगुड़ी स्टेशन पर पहुंचे हजारों बोडो आंदोलनकारियों ने ट्रेनों की आवाजाही ठप कर दी. आंदोलन के पहले चरण में इन संगठनों ने 12 घंटे के रेल रोको की अपील की थी.

रेल रोको से शुरुआत

इस आंदोलन की वजह से ट्रेन सेवाएं अस्त-व्यस्त हो गईं और देश के बाकी हिस्सों से उत्तरी असम का रेल संपर्क कटा रहा. अखिल बोडो छात्र संघ (आब्सू), नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट आफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) और पीपुल्स ज्वायंट एक्शन कमिटी फॉर बोडोलैंड समेत विभिन्न संगठनों ने अलग राज्य की मांग में नए सिरे से आंदोलन का फैसला किया है. रेल रोको आंदोलन के दौरान 20 हजार से ज्यादा लोग मौके पर पहुंच गए. वे नो बोडोलैंड नो रेस्ट के नारे लगा रहे थे. उनका कहना था कि बोड़ो तबके के लोगों के साथ अब कोई भेदभाव बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.

तस्वीरों में देखिए, खत्म होता स्वर्ग

इस मौके पर आब्सू अध्यक्ष प्रमोद बोडो ने दशकों पुरानी अलग राज्य की मांग के प्रति बेरुखी का आरोप लगाते हुए केंद्र सरकार की भेदभावपूर्ण नीति के लिए उसकी खिंचाई की. उनका आरोप है, "केंद्र व अब राज्य की सत्ता में आने के बावजूद बीजेपी के अच्छे दिन का नारा महज कागजी साबित हो रहा है." आब्सू नेता ने केंद्र को चेतावनी देते हुए कहा, "हम अब कोई राजनीतिक साजिश बर्दाश्त नहीं करेंगे." इन संगठनों ने जातीय बोडो लोगों की सुरक्षा व अधिकार सुनिश्चित करने और एक संयुक्त बोडो राष्ट्र की मांग की है. उनका आरोप है कि बोडोलैंड मसले के समाधान का झूठा वादा कर एनडीए सरकार सत्ता पर काबिज हुई थी.

राजनीतिक साजिश का आरोप

आंदोलनकारियों की दलील है कि अलग राज्य की मांग में आंदोलन करने वाले तमाम संगठनों को उम्मीद थी कि बदलाव और अच्छे दिन लाने के नारे के साथ चुनाव मैदान में उतरने वाली बीजेपी के सत्ता में आने के बाद उनकी दशकों पुरानी समस्या हल हो जाएगी. आब्सू अध्यक्ष कहते हैं, "अलग बोडोलैंड की मांग के समर्थन में बीते ढाई वर्षों के दौरान हमने केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह समेत तमाम नेताओं से मुलाकात की है. लेकिन नतीजा सिफर ही रहा है."

मौजूदा मुख्यमंत्री सोनोवाल के केंद्रीय मंत्री रहते इलाके की समस्या के स्थायी समाधान के लिए तितरफा बातचीत शुरू करने के अनुरोध के साथ एक बोडो प्रतिनिधिमंडल ने उनसे भी मुलाकात की थी. वह कहते हैं कि बीजेपी के सत्ता में आने के बाद  हमारी समस्याओं के समाधान की उम्मीद बंधी थी. इसकी वजह यह थी कि बीजेपी को सत्ता दिलाने में बोडो संगठनों का भी अहम योगदान था. लेकिन दूसरों की तरह वह भी राजनीतिक साजिश में जुटी है. ऐसे में लगभग ढाई साल  इंतजार करने के बाद हमारे सामने नए सिरे से आंदोलन के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था.

पुरानी है मांग

असम के बोडोबहुल इलाके में अलग राज्य की मांग में आंदोलन का इतिहास आठ दशक से भी ज्यादा पुराना है. लेकिन उपेंद्रनाथ ब्रह्म की अगुवाई में अखिल बोडो छात्र संघ (आब्सू) ने दो मार्च, 1987 को बोडोलैंड को अलग राज्य का दर्जा देने की मांग में जोरदार आंदोलन छेड़ा था. इसी दौरान उग्रवादी संगठन बोडो सेक्यूरिटी फोर्स के गठन के बाद आंदोलन हिंसक हो उठा. यही संगठन आगे चल कर वर्ष 1994 में नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (एनडीएफबी) बन गया. एनडीएफबी और आब्सू के नेताओं के बीच टकराव भी उसी समय शुरू हुआ. ताकतवर बोडो छात्र संघ आब्सू के नेता भारतीय संविधान के तहत अलग राज्य की मांग कर रहे थे लेकिन एनडीएफबी भारत से अलग होकर बोडोलैंड नामक आजाद देश की मांग कर रहा था.

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बोडोलैंड टेरीटोरियल ऑटोनोमस डिस्ट्रिक्ट के चार जिलों-कोकराझार, चिरांग, बक्सा और उदालगुड़ी की आबादी में लगभग 30 फीसदी बोडो हैं. यही इलाके की सबसे बड़ी जनजाति है. असम सरकार ने वर्ष 1993 में बोडोलैंड स्वायत्त परिषद के गठन के लिए आब्सू के साथ समझौता किया था. लेकिन यह प्रयोग नाकाम रहने के बाद आब्सू ने वर्ष 1996 में नए सिरे से अलग राज्य के लिए आंदोलन शुरू कर दिया..उसी साल बोडोलैंड लिबरेशन टाइगर्स (बीएलटी) नामक उग्रवादी संगठन का भी उदय हुआ. लेकिन जल्दी ही यह संगठन एनडीएफबी का प्रतिद्वंद्वी बन गया. फरवरी, 2003 में केंद्र ने बीएलटी के साथ बोडो समझौता किया. बीएलटी ने समझौते के बाद हथियार डाल दिए और बोडोलैंड टेरीटोरियल काउंसिल पर इसी संगठन का कब्जा हो गया. बाद में इसने बोडो पीपुल्स पार्टी नामक राजनीतिक पार्टी का गठन किया जो फिलहाल राज्य में बीजेपी सरकार की सहयोगी है.

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि पहले से ही बांग्लादेशी घुसपैठियों को नागरिकता देने के मुद्दे पर चौतरफा विरोध झेल रही सोनोवाल सरकार के लिए यह आंदोलन एक नया सिरदर्द साबित हो सकता है. उनका कहना है कि इलाके की समस्याओं को सुलझाने के लिए तमाम पक्षों को साथ लेकर शांति  प्रक्रिया शीघ्र शुरू करना जरूरी है. वैसा नहीं होने की स्थिति में असम एक बार फिर अशांत हो सकता है.