अश्वेत बस्ती सोवेतो का कायाकल्प
40 साल पहले रंगभेदी हिंसा के खिलाफ हुए सोवेतो विद्रोह का गढ़ रहा शहर आज दक्षिण अफ्रीका का एक जिंदादिल शहर है. रंगभेद खत्म होने के दो दशक बाद पर्यटकों का पसंदीदा ठिकाना बन चुका जोहानेसबर्ग का सोवेतो अपना इतिहास नहीं भूला.
फुटबॉल और आजादी
दक्षिण अफ्रीकी फुटबॉल का दिल मानी जाने वाली 'सॉकर सिटी' अब एफएनबी स्टेडियम कहलाती है. पिछले स्टेडियम की जगह इसका निर्माण 2010 विश्व कप के लिए हुआ. लेकिन यह केवल खेल के लिए ही नहीं बल्कि इसलिए भी खास है क्योंकि 1990 में इसी जगह इकट्ठे होकर हजारों लोगों ने नेल्सन मंडेला की जेल से रिहाई के बाद उनका भाषण सुना था.
हीरो का घर
नस्लवाद के खिलाफ जंग के मसीहा और दक्षिण अफ्रीका के महान अश्वेत नेता नेल्सन मंडेला का घर सोवेतो में ही है. वे यहां अश्वेत कर्मचारियों के लिए बने सरकारी आवासों में रहे. ये मैचबॉक्स घर कहलाते थे क्योंकि यह बहुत छोटे और एक जैसे डिजायन के होते थे. अपनी आत्मकथा में मंडेला ने इस घर का भी बड़े प्यार से जिक्र किया है.
स्कूलों से सड़कों तक
सोवेतो के विद्रोह की जड़ें शहर के क्लासरूम में हैं. सन 1976 में जब सरकार ने स्कूलों में अफ्रीकान्स भाषा को लागू करने का आदेश दिया, उस समय अश्वेत समुदाय का शायद ही कोई व्यक्ति यह भाषा बोल सकता था. अश्वेत समुदाय ने इसे अत्याचारियों की भाषा माना और स्कूली छात्र इस आदेश के विरोध में सड़कों पर उतर आए. यह विरोध पूरी बंटू शिक्षा प्रणाली के खिलाफ था, जिससे स्कूलों में रंगभेद को बढ़ावा मिलता था.
मेगा मॉल
सोवेतो का मापोन्या मॉल दक्षिण अफ्रीका का सबसे बड़ा शॉपिंग सेंटर है. इसका उद्घाटन खुद मंडेला ने 2007 में किया. इस महंगे मॉल को कमाई के एक जरिए और नई नौकरियां पैदा करने के मकसद से शुरु किया गया. लेकिन इसके कारण बंद होने की कगार पर आ पहुंचे छोटी दुकानों और व्यवसायों को लेकर काफी विवाद भी हुआ. इसे बनाने वाले रिचर्ड मापोन्या दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत करोड़पति थे. वे अभी भी सोवेतो में ही रहते हैं.
गुस्से का सामना हिंसा से
हजारों अश्वेत छात्र जब सोवेतो की सड़कों पर मार्च करने उतरे तो उन्होंने रंगभेद के खिलाफ आंदोलन की नींव रखी. प्रदर्शनकारियों को हटाने की कोशिशें नाकाम रहने पर पुलिस ने उन पर गोलियां बरसा दीं. 16 जून 1976 को हुई इस गोलीबारी में 176 युवाओं की जान चली गई और यहां से विरोध प्रदर्शनों और हिंसा की लहर पूरे देश में फैल गई.
पावर स्टेशन का ग्लैमर
ऑरलैंडो टॉवर्स मूल रूप से एक कोयले से बिजली बनाने वाले प्लांट का हिस्सा था. रंगील म्यूरल कला से सजा कर इसे अब नया रूप दे दिया गया है. पावर स्टेशन का निर्माण 1930 के दशक में हुआ और यहां से श्वेत लोगों की बस्तियों और जोहानेसबर्ग के शहरी इलाके में बिजली जाती थी. अश्वेत दक्षिण अफ्रीकी दक्षिण-पश्चिम की बस्तियों में रहते और खनन उद्योग में लगे थे.
संस्कृति और रंग
सोवेतो का पहला थिएटर 2012 में खुला. बेहद खास वास्तुकला वाले इस थिएटर के विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम शहर के बदलते रूप के गवाह बने. रंगबिरंगे टाइलों से सजी फर्श वाली इस इमारत में तीन सभागार हैं. इन तीनों की डिजायन शहर के निवासियों की विविधता का प्रतिबिंब दिखाती हैं. इसका आधे से अधिक निर्माण कार्य जनता के पैसों से ही हुआ है.
छाप छोड़ने वाली तस्वीर
1976 के विद्रोह की बलि चढ़े कुछ सबसे पहले लोगों में एक 13 साल का लड़का भी था. हेक्टर पीटरसन को पुलिस की गोली लगी थी. उसकी लाश उठाए एक स्थानीय पुरुष और उसकी बहन की यह तस्वीर दुनिया भर के अखबारों में छपी. इस तस्वीर ने ना केवल रंगभेदी शासन की क्रूरता और अन्याय की ओर विश्व का ध्यान खींचा बल्कि आज भी पीटरसन की हत्या की जगह पर स्मारक बना हुआ है.
दक्षिण अफ्रीका की सबसे मशहूर सड़क
मशहूर इसलिए कि दुनिया की एकलौती सड़क है जिस पर दो नोबेल पुरस्कार विजेता रहते थे. नेल्सन मंडेला और आर्चबिशप डेसमंड टूटू दोनों ने किसी समय सोवेतो की इस विलाकाजी सड़क पर अपना आवास बनाया. एक सरकारी प्रोजेक्ट के तहत विकसित की गई सड़क आज की तारीख में दक्षिण अफ्रीका का टॉप टूरिस्ट आकर्षण है. दक्षिण अफ्रीका आने वाले 80 फीसदी पर्यटक यानि सालाना करीब 7 लाख लोग यहां जरूर पहुंचते हैं.
जारी है संघर्ष
तमाम निवेश प्रोजेक्टों से इस शहर का कायाकल्प हो चुका है. इसके बावजूद आज भी गरीबी और लचर शिक्षा व्यवस्था के कारण सोवेतो के सामने विकास की राह में बड़ी मुश्किलें हैं. कई लोग बताते हैं कि विद्रोह के 40 साल बीत जाने के बाद भी बराबरी के लिए संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है.