अलविदा प्यारी एम्बैसडर
भारत की सबसे पुरानी कार फैक्ट्री ने एम्बैसडर कार के प्रोडक्शन को रोक दिया. दशकों तक दिलों को धड़काने वाली कार पर ब्रेक लग गया. पर क्या करें, फैक्ट्रियां इन धड़कनों से तो नहीं चलतीं.
भारत की दुलारी एम्बैसडर
सबसे पहले यह इंग्लैंड में 1956 में बनी और नाम रखा गया मॉरिस ऑक्सफोर्ड. बाद में कोलकाता के पास हिन्दुस्तान मोटर्स ने 65 साल तक इसका उत्पादन किया.
शान की सवारी
बाहर से कार की डिजाइन में कोई बदलाव नहीं किया गया, जबकि अंदर से थोड़े बहुत बदलाव हुए. पहले बड़े अधिकारियों और नेताओं को यह कार दी जाती थी.
सिर्फ कार ही नहीं
इसका उत्पादन ऐसे समय में किया गया, जब भारत में विदेशी सामान की जगह नहीं थी. यह कार हर भारतीय के लिए गर्व की बात हुआ करती थी.
शक्ति की निशानी
आज के जमाने में यह ताकत की पहचान है. यहां राष्ट्रपति भवन के बाहर एम्बैसडर कारों की कतार लगी है और हर कार पर लाल बत्ती लगी है. लाल बत्ती यानी शक्ति.
आम आदमी की सवारी
यह कैसा विरोधाभास है कि इस कार का इस्तेमाल या तो शीर्ष नेता करते हैं या फिर यह टैक्सी की तरह चलती है. कोलकाता की टैक्सियां ज्यादातर एम्बैसडर कारें ही होती हैं.
सैलानियों की पसंद
भारत के सफर में एम्बैसडर का सफर भी जुड़ा होता है. यहां आने वाला हर पर्यटक इस कार में जरूर एक बार बैठना चाहता है.
कामगारों की हड़ताल
एशिया की सबसे पुरानी कार फैक्ट्री में मजदूरों की हड़ताल से भी काम पर असर पड़ा. आखिरकार 25 मई को प्रोडक्शन रोक दिया गया.