अयोध्या मामले की सुनवाई 29 जनवरी तक टली
१० जनवरी २०१९इससे पहले मुस्लिम पक्षों में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली पीठ के समक्ष कहा कि 1997 में जस्टिस ललित बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि विवाद से संबद्ध एक मामले में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के लिए पेश हुए थे.
उन्होंने पीठ को बताया कि निजी तौर पर उन्हें 2010 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाले मामले की सुनवाई के लिए गठित पीठ में जस्टिस ललित की उपस्थिति से कोई आपत्ति नहीं है. वह बस इस मामले को अदालत के संज्ञान में ला रहे हैं. इसके बाद जस्टिस ललित ने पीठ से जुड़े रहने में अपनी अनिच्छा व्यक्त की. उन्होंने मुख्य न्यायाधीश गोगोई और पीठ के अन्य सदस्यों - जस्टिस एसए बोब्डे, जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को यह जानकारी दी.
(अयोध्या: कब क्या हुआ)
इसके बाद मुख्य न्यायाधीश गोगोई ने कहा कि उन्हें सर्वोच्च न्यायालय के नियमों के तहत अपनी प्रशासनिक शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए पीठ का चयन करना अधिकार है.
अदालत ने इसके बाद अपनी रजिस्ट्री से अयोध्या मामले में सभी संबंधित सभी रिकॉर्डों पर गौर करके 29 जनवरी तक रिपोर्ट दाखिल करने को कहा. इस मामले से जुड़े दस्तावेजों और सामग्री के अनुवाद में कुछ समय भी लगेगा. ज्यादातर दस्तावेज फारसी, अरबी उर्दू और गुरमुखी भाषाओं में हैं.
हिंदू पक्ष की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कागजातों के प्रबंधन और उनके अनुवाद के लिए रजिस्ट्री की मदद करने की पेशकश की. इस पर गोगोई ने कहा कि वह इस काम को पूरा करने के लिए पूरी तरह से अपनी रजिस्ट्री पर भरोसा करेंगे.
सर्वोच्च न्यायालय के महासचिव को 15 दिनों में रिपोर्ट जमा कराने के निर्देश के बाद अदालत ने कहा कि दोबारा गठित पीठ 29 जनवरी को इस मामले की सुनवाई करेगी.
आईएएनएस