अमेरिका में फिर मिलने लगी मौत की सजा
२६ जुलाई २०१९राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने मांग की थी कि हिंसक अपराधों के लिए कड़ी सजा दी जानी चाहिए. अटॉर्नी बिल बार ने अमेरिकी जेलों के संघीय कार्यालय को निर्देश दिया है कि वह एक नए घातक इंजेक्शन प्रोटोकॉल को अपनाए ताकि मौत की सजा दी जा सके. बिल बार ने एक बयान में कहा है, "न्याय विभाग ने कानून पर मुहर लगा दी है, पीड़ितों और उनके परिजनों के प्रति हमारी जिम्मेदारी है कि हम हमारे न्याय विभाग से मिली सजा पर अमल कराएं."
पिछले साल अमेरिका में 25 लोगों को मौत की सजा मिली. यह सभी सजाएं राज्य सरकारों की तरफ से दी गईं. मौत की सजा के तरीके और इस्तेमाल होने वाली दवा को लेकर बहस में डॉनल्ड ट्रंप से पहले राष्ट्रपति रहे बराक ओबामा की चुप्पी के कारण 2003 से किसी भी संघीय कैदी को मौत की सजा नहीं दी गई. बिल बार ने जेल विभाग को निर्देश दिया है कि इसके लिए घातक इंजेक्शन बारबीट्यूरेट पेंटोबारबिटल का इस्तेमाल किया जाए. पहले जो दवा इस्तेमाल होती थी उसमें तीन दवाइयां मिलाई जाती थीं.
अमेरिका की संघीय जेलों में 62 कैदी मौत की सजा के इंतजार में हैं. इनमें इस्लामी कट्टरपंथी झोखर सारनाएव भी शामिल है जिसे 2013 की बॉस्टन मैराथन बॉम्बिंग का दोषी माना गया. इस घटना में 3 लोगों की जान गई थी. मौत की सजा पाने वालो में डिलन रूफ है. रूफ ने साउथ कैरोलाइना चर्च में 9 अफ्रीकी अमेरिकी लोगों की 2015 में हत्या कर दी थी.
बिल बार के निर्देश पर संघीय जेल विभाग ने जिन पांच लोगों की मौत की सजा पर तामील की तारीख तय की है उन्हें करीब 15 साल पहले मौत की सजा मिली थी. इनलोगों ने क्रूर तरीके से लोगों की हत्या की थी जिसमें बच्चे भी शामिल थे. इनमें एक है डैनियल लुईस जिसने 1996 में तीन लोगों के एक परिवार की हत्या कर लूटपाट की थी. इसमें एक आठ साल की बच्ची भी थी. अमेरिका की संघीय अदालतों में मौत की सजा पर लगभग चार दशक तक रोक लगी रही.
यह रोक 2001 में ओकलाहोमा सिटी में बम हमला करने वाले टिमोथी मैक वेग को मौत की सजा देने से खत्म हुई. इसके बाद के दो सालों में दो और लोगों को मौत की सजा मिली और फिर इस पर रोक लग गई. इसके बाद जिन लोगों को मौत की सजा मिली है वो सभी राज्य सरकारों से मिलीं हैं. अमेरिका के 50 में से 25 राज्यों में मौत की सजा दी जाती है. 21 राज्य इसकी अनुमति नहीं देते जबकि चार राज्यों में इसे निलंबित रखा गया है.
पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इसे "बेहद परेशान करने वाला" माना था और इस ओर भी इशारा किया था कि ज्यादातर अफ्रीकी अमेरिकी लोगों को ही मौत की सजा सुनाई गई है. राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के सत्ता में आने के बाद हिंसक अपराधों के लिए न्याय विभाग कड़ी सजा देने के लिए दबाव बना रहा है. बिल बार का यह फैसला राष्ट्रपति के कानून व्यवस्था के मामलों में कड़ा रुख अपनाने का एक प्रमाण भी होगा जो अगले साल के चुनावों में उनके लिए मददगार हो सकता है.
अक्टूबर 2017 में डॉनल्ड ट्रंप ने इस्लामिक स्टेट से प्रेरित सायफुलो साइपोव के लिए मौत की सजा की मांग की थी. साइपोव न्यूयॉर्क में पैदल यात्रियों पर ट्रक चढ़ाने का आरोपी है. इस घटना में 8 लोगों की जान गई थी. इसके बाद फिर अक्टूबर 2018 में ट्रंप ने यह मांग दोहराई जब एक गोरे राष्ट्रवादी ने पिट्सबर्ग के सिनागॉग में 11 लोगों की हत्या कर दी. यह दोनों मामले अब भी अदालत में हैं.
मौत की सजा का विरोध करने वाले नीतियों में बदलाव का विरोध कर रहे हैं और उन्होंने मौत की सजा की तारीख को आगे बढ़ाने की मांग की है जो इसी साल दिसंबर की शुरुआत में तय की गई है. फेडरल कैपिटल हेबियस प्रोजेक्ट के निदेशक रूथ फ्राइड मान का कहना है, "संघीय मौत की सजा निरंकुश और रंगभेदी है. इसके अलावा भी कई चिंताएं हैं."
एनआर/एमजे (एएफपी)