अमेरिका में आतंकवाद के खिलाफ सम्मेलन
२० फ़रवरी २०१५अमेरिकी सरकार जानती है कि आम नागरिकों तक पहुंचने का सबसे सरल माध्यम इंटरनेट और सोशल मीडिया है. यही कारण रहा कि तीन दिवसीय सीवीई सम्मेलन के दौरान सभी सरकारी एजेंसियां ट्विटर पर काफी सक्रिय दिखीं. राष्ट्रपति के बयानों को लगातार ट्वीट किया गया. बराक ओबामा के भाषण की अहम बातें हों, या फिर पूरा का पूरा भाषण, सब ट्वीट किया गया. डिपार्टमेंट ऑफ स्टेट के अकाउंट से सीवीई की तमाम बारीकियों तक पहुंचा जा सकता था.
राष्ट्रपति ओबामा के बयान भले ही खूब चर्चित हुए हों, लेकिन उन्होंने खुद या उनके दफ्तर ने उनके अकाउंट से इस बारे में ट्वीट ना करने का फैसला लिया. वहीं विदेश मंत्री जॉन केरी सम्मेलन से अपनी ही तस्वीरें पोस्ट करते दिखे. अलग अलग नेताओं की तस्वीरों के जरिए केरी सम्मेलन की संजीदगी दर्शाने की कोशिश में दिखे. अमेरिकी दूतावास की नजर भी केरी के ट्वीट पर बनी हुई थी. दूतावास ने आतंकवाद और कट्टरपंथ से लड़ने के केरी के बयानों को रीट्वीट किया.
जहां अमेरिकी सरकारी एजेंसियां ओबामा और केरी के बयानों को चला रही थीं, वहीं संयुक्त राष्ट्र बान की मून के बयानों पर केंद्रित था. बान की मून की पूरी स्पीच, सम्मेलन के बाद दिया इंटरव्यू और खास कर यह बयान, "बुलेट्स आर नॉट सिल्वर बुलेट" यानि गोलियां कोई जादुई समाधान नहीं है, कई बार रीट्वीट हुआ. बान की मून ने दुनिया में शांति स्थापित करने के लिए भविष्य में और सम्मेलनों के आयोजन की भी बात की.
ट्विटर पर सीवीई की सक्रियता के कारण जनता इस बात पर चर्चा करने लगी है कि ओबामा अमेरिका से कितना प्यार करते हैं. कुछ लोगों ने #ObamaLovesAmerica को संजीदगी से लिया, तो कईयों ने इसका इस्तेमाल ओबामा पर व्यंग्य कसने के लिए भी किया. जहां ओबामा इस्लाम के खिलाफ जंग को एक गलत धारणा बता रहे थे, वहीं कई इस्लाम विरोधियों ने इसका बहिष्कार किया. ट्विटर पर इस्लाम के खिलाफ चल रही बयानबाजी को देख कर पता चलता है कि अमेरिका में हुआ सम्मेलन वाकई कितने अहमियत रखता है.
हालांकि कई लोगों ने ट्विटर के माध्यम से राष्ट्रपति से अपील की है कि केवल इस्लामी कट्टरपंथ को ही आतंकवाद ना समझें, अमेरिका में भारतवासियों पर हो रहे हमलों पर भी ध्यान दें. एक शख्स ने हाल ही में एक दुकान में हुए ऐसे हमले की ओर ध्यान दिलाया. कुछ ही दिन पहले गुजरात से आए एक व्यक्ति पर पुलिस ने हमला किया जिस कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा.
इसके अलावा कई लोगों नें इस बात को ले कर निराशा भी जताई है कि जो देश सम्मेलन से जुड़े हैं, उनमें से कई ऐसे हैं जहां मानवाधिकारों का हनन होता आया है.