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अमेरिका और चीन के संबंधों में जारी है खटास

राहुल मिश्र
१९ मार्च २०२१

चीन और अमेरिका के संबंधों में राष्ट्रपति ट्रंप के समय की कड़वाहट जो बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद यदि किसी ने खत्म होने की उम्मीद की थी, तो दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की बातचीत से उम्मीद की किरणें बुझ सी गई हैं.

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Joe Biden und Xi Jinping
जो बाइडेन और शी जिन पिंग, 2017 में दावोस में (फाइल फोटो)तस्वीर: Lan Hongguang/Photoshot/picture alliance

बातचीत की जैसी शुरुआत हुई उससे लगता चीन के विदेश मंत्री वांग यी और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के विदेश मामलों के प्रमुख यांग जेइची की अमेरिका यात्रा चीन-अमेरिका संबंधों में और कड़वाहट घोल देगी. अमेरिका के अलास्का प्रांत के एंकरेज में अमेरिकी विदेश मंत्री एंथनी ब्लिंकेन और राष्ट्रपति जो बाइडेन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सलीवान के साथ चीनी नेताओं की मुलाकात रूखे माहौल में हुई. दोनों पक्षों के बीच यह तय था कि बैठक की शुरुआत वह बारी-बारी से मीडिया को दो-दो मिनट के वक्तव्य देकर करेंगे. लेकिन बात यहीं से बिगड़ने लगी.

विदेश मंत्री ब्लिंकेन ने चीनी सरकार के द्वारा हाल में उठाए कुछ कदमों पर चिंता जताई जिसमें शिनजियांग, ताइवान और हांगकांग में मानवाधिकार उल्लंघनों का जिक्र भी था. साथ ही यह भी कि चीन से लगातार अमेरिकी सरकारी संस्थानों और कंपनियों पर साइबर हमले हो रहे हैं और अमेरिका इन बातों से चिंतित है क्योंकि यह घटनायें नियमबद्ध अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को चोट पहुंचा रही हैं. अपने मित्र देशों पर चीन की आर्थिक ज्यादतियों की बात भी अमेरिका ने रखी. हालांकि इसमें कुछ नया नहीं था क्योंकि ट्रंप सरकार की तर्ज पर ही बाइडेन सरकार भी इन मुद्दों को पूरी ताकत से उठाती आ रही है. लेकिन चीनी पक्ष इस बात से कुछ ज्यादा ही भड़क गया.

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एंथनी ब्लिंकेन और जेक सलीवनतस्वीर: Frederic J. Brown/AFP/Getty Images

शुरुआती बयानों के बाद तल्खी

कूटनीति में बिन बात तैश में आने का कोई काम नहीं मगर चीनी पक्ष को ब्लिंकेन की बात नागवार गुजरी और जवाब में चीन के पार्टी नेता यांग जेइची ने अमेरिकी नीतियों की धुलाई करते हुए काफी कुछ कह डाला. उन्होंने कहा कि अमेरिका का खुद का इतिहास मानवाधिकार उल्लंघनों से भरा है, खास तौर पर अश्वेत अमेरिकी नागरिकों को लेकर. दो मिनट के बजाय लगभग आठ मिनट के इस लम्बे वक्तव्य में यांग जेइची ने अमेरिकी सरकार को मानवाधिकार मुद्दे पर पहले अपने गिरेबान में झांकने की नसीहत दी और साथ ही यह भी कह डाला कि अमेरिकी लोकतंत्र में भी खामियां बहुत हैं और अब तो कुछ अमेरिकी नागरिक भी इससे असंतुष्ट हैं.

बस फिर क्या था जेक सलीवान भी जवाब देने का लोभ संवरण न कर सके और सभा से बाहर जाते मीडियाकर्मियों को वापस बुला कर उन्होंने कहा कि अमेरिका और चीन में अंतर यही है कि जहां चीनी सरकार देश में मानवाधिकार हनन और अल्पसंख्यकों की चिंताओं को स्वीकार तक नहीं कर रही, अमेरिका में रंगभेद और लोकतंत्र की खामियों पर खुलेआम सार्वजनिक बात होती है और यही बात अमेरिका को खास बनाती है. सलीवान की यह बात बेशक दिल जीतने वाली है. किसी भी लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत यही है कि वहां बेहतरी और सुधार की कोशिशें लगातार जारी रहें और इस बारे में खुल कर बहस मुबाहिसा भी हो सके. अमेरिका के नेतृत्व में चल रही नियमबद्ध अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के समर्थन में सलीवान ने चीन की विदेशनीति पर सीधा निशाना साधते हुए कहा कि ऐसी व्यवस्था का विकल्प अगर जिसकी लाठी उसकी भैंस जैसी व्यवस्था है, तो वह दुनिया के लिए और भी खतरनाक होगी.

Alaska Anchorage USA China Gespräche
चीनी और अमेरिकी विदेश मंत्रियों की बातचीततस्वीर: Frederic J. Brown/AFP/Getty Images

क्यों बिगड़ा बातचीत का माहौल

किसी भी मंत्री स्तरीय वार्ता के लिए यह काफी बुरी शुरुआत है, और यहां तो विश्व राजनीति के दोनों धुरंधरों की बैठक थी. तो ऐसा क्या हुआ कि बात इतनी बिगड़ गई? सबसे पहली बात तो यही है कि चीन ने सोचा था कि अब जब कि डॉनल्ड ट्रंप सत्ता में नहीं रहे और जो बाइडेन सत्ता में आ चुके हैं, चीन और बाइडेन सरकार के बीच सब कुछ ठीक हो जायेगा. बाइडेन सरकार की ओर से चीन पर आ रहे वक्तव्यों को चीन ने गंभीरता से नहीं लिया. अमेरिकी शासन व्यवस्था के किताबी ज्ञान के अनुसार तो रिपब्लिकन और डेमोक्रेट सरकारों की विदेश नीतियों में व्यापक अंतर होने चाहिए लेकिन बाइडेन सरकार ने कुछ भी नहीं बदला है, आखिर उन्हें रिपब्ल्किन सांसदों का भी समर्थन चाहिए.

ट्रंप सरकार की इंडो-पैसिफिक नीति हो या क्वाड, अब्राहम अकॉर्ड हो या चीन के साथ आर्थिक संबंध. बाइडेन सरकार ने रिपब्लिकन-डेमोक्रेट के चक्कर में न पड़कर मुद्दों की खूबी देख कर उन्हें जारी रखा है. कहीं न कहीं इस बात को समझने में चीन ने चूक की और बातचीत के इस दौर को दो महाशक्तियों के बीच संवाद की शुरुआत का जामा पहनाने की कोशिश भी की. अमेरिकी प्रशासन को यह बात नहीं पसंद आयी और इसे खुले तौर पर मीडिया के सामने रखा भी गया. साफ है, कूटनीतिक मेसेजिंग की चीन की योजना फिस्स हो चुकी है. साथ ही बाइडेन और चीनी राष्ट्रपति शी जीनपिंग के बीच पृथ्वी दिवस पर 22 अप्रैल को होने वाली ऑनलाइन बैठक भी खटाई में पड़ती दिख रही है.

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ट्रंप के काल में हुई तल्खी की शुरुआततस्वीर: Getty Images/AFP/F. Dufour/B. Smialowski/T. Yamanaka

तीन साल से आमने सामने हैं चीन अमेरिका

चीन और अमेरिका के बीच पिछले काफी समय से तनातनी बनी हुई है जिसकी शुरुआत लगभग तीन साल पहले ट्रंप के कार्यकाल में ही हो गयी थी. ट्रंप के राष्ट्रपति रहते ही अमेरिका और चीन के बीच दोनों देशों के बीच व्यापार युद्ध छिड़ा जो समय के साथ और ज्यादा तल्ख होता चला गया. इसमें दो राय नहीं है कि चीन ने ट्रंप को कम करके आंका और व्यापार युद्ध में मुंहकी खायी. पिछले 2-3 वर्षों में अमेरिका ने एक तरफ इंडो-पैसिफिक क्षेत्र को मजबूत किया और भारत की इसमें बड़ी भूमिका भी सुनिश्चित की. साथ ही अमेरिका ने भारत, जापान, अमेरिका और आस्ट्रेलिया के साझा सामरिक सहयोग के मंच क्वाड को भी मजबूती दी. सामरिक और कूटनीतिक मसलों पर अच्छी समझ का परिचय देते हुए तो फिलहाल बाइडेन प्रशासन ट्रंप की कई नीतियों को अपने ढंग से आगे बनाता दिखा रहा है, जो दुनिया के तमाम देशों के लिए भी राहत की खबर है.

दूसरी ओर चीन अपनी बढ़ती आर्थिक और सैन्य ताकत की वजह से अपने को अमेरिका से कहीं भी कमतर नहीं आंकता. अमेरिकी प्रधानता और वर्चस्व को चुनौती देने की चीन की मंशा भी धीरे धीरे सामने आती जा रही है. लेकिन चीन अभी भी आर्थिक, सैन्य, और सामरिक स्तर पर अमेरिका से काफी पीछे है. चीन को यह समझना होगा कि सिर्फ सरकार बदल जाने से अमेरिका के साथ उसके संबंध नहीं सुधरेंगे. संबंधों में सुधार के लिए दोनों पक्षों को व्यापक पैमाने पर कदम उठाने होंगे. शायद इस दिशा में चीन को कुछ दूर आगे बढ़ कर शांति और समझौते की पहल करनी पड़ेगी. अंततः दोनों देश यदि आपसी बातचीत को सही रास्ते पर ला सकें तो सबके लिए अच्छा होगा, लेकिन फिलहाल ऐसा होना मुश्किल लग रहा है.

(राहुल मिश्र मलाया विश्वविद्यालय के एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं)

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