अमित शाह और मोदी को फेल कैसे किया नवीन पटनायक ने
२९ मई २०१९17 अप्रैल, 1997 को दिल्ली में भारत के एक बड़े राजनेता का निधन हुआ. इनके पार्थिव शरीर को रखने के लिए जो ताबूत आया उस पर सिर्फ भारत का झंडा ना होकर रूस और इंडोनेशिया का झंडा भी लगा हुआ था. उनका नाम बिजयानंद पटनायक था लेकिन लोग उन्हें बीजू पटनायक या बीजू बाबू के नाम से जानते थे. वो राजनीति में आने से पहले एयरफोर्स में एक कुशल पायलट थे और भारत, रूस और इंडोनेशिया के लिए उनका सैन्य योगदान था. राजनीति में आने के बाद बीजू बाबू दो बार उडीसा (वर्तमान नाम- ओडिशा) के मुख्यमंत्री रहे और कई दफा केंद्र में मंत्री रहे. कांग्रेस से अलग होकर जनता दल में चले गए. बीजू के निधन के बाद ओडिशा की राजनीति में एक शून्य बन गया और आशंका जताई जाने लगी कि उनकी विरासत को अब कौन संभालेगा. इसकी वजह थी बीजू के बड़े पुत्र प्रेम बिजनेसमैन थे और छोटे बेटे नवीन की तब तक राजनीति में दिलचस्पी नहीं थी. लेकिन बीजू के निधन के बाद छोटे बेटे नवीन पटनायक ने सारी आशंकाओं को एक तरफ रख दिया और 29 मई, 2019 को लगातार पांचवीं बार राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली.
2014 हो या 2019, जब पूरा देश मोदी लहर पर सवार था और बीजेपी ओडिशा में इस बार बड़ा कमाल दिखाने के लिए राज्य की 146 सीटों में से 120 सीटें जीतने का नारा लेकर चली तब भी नवीन पटनायक ओडिशा में अकेले इस लहर से पार पाने में कामयाब रहे. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक इस बार ओडिशा का मुकाबला बेहद कठिन होने वाला था लेकिन नवीन को इसका खास फर्क नहीं पड़ा और पिछली बार 117 सीटें जीतने वाली उनकी पार्टी को मामूली गिरावट के साथ 112 सीटें मिलीं. इस जीत को पहले से बड़ी इसलिए माना जाना चाहिए क्योंकि चुनाव से पहले के लगभग एक पूरे साल बीमारी के चलते नवीन राज्य से बाहर थे. साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह लगातार राज्य के दौरे कर रहे थे.
सबसे बड़ी वजह खुद नवीन
नवीन पटनायक अपने पिता के निधन के बाद राजनीति में आए और उनके निधन से खाली हुई सीट से लोकसभा उपचुनाव जीता. अटल सरकार में मंत्री बना दिए गए. नवीन का निकनेम पप्पू है. वो दून स्कूल में संजय गांधी के क्लास और रूममेट भी थे. पप्पू राजनीति में आने से पहले कई सालों तक विदेशों में रहे. जब वापस आए तो उनकी पहचान एक पार्टी करने वाले और विदेशी रॉकस्टार्स से दोस्ती रखने वाले लड़के के तौर पर थी. उन्होंने 1988 में आई द डिसीवर्स नाम की एक फिल्म में छोटा सा रोल भी किया था. नवीन ने शादी नहीं की है. ओडिशा से बाहर रहने की वजह से उन्हें उडिया बोलना भी नहीं आता. लेकिन पिता के निधन के बाद राजनीति में आते ही नवीन के तौर-तरीके बदल गए.
आम तौर पर टीशर्ट और जींस में रहने वाले नवीन ने कुर्ता पायजामा को अपना लिया. उडिया भाषा सीखने के लिए ट्यूशन शुरू किया. हालांकि जल्दी ही इसे छोड़ दिया और आज तक अच्छे से उडिया बोलना नहीं सीख सके. 1997 के आखिर में उन्होंने जनता दल से अलग होकर अपनी पार्टी बीजू जनता दल बना ली. नवीन ने ओडिशा पर ध्यान केंद्रित करना शुरू किया. 1999 में ओडिशा में भयानक चक्रवात आया. राज्य की तत्कालीन कांग्रेस सरकार इससे निपटने में बुरी तरह विफल रही. लगभग 10,000 लोगों को इसकी वजह से जान गंवानी पड़ी. इसके बाद से ही राज्य सरकार के खिलाफ माहौल बनना शुरू हो गया. नवीन पटनायक इस माहौल में अपने पिता की विरासत को लेकर एक नायक के रूप में उभरे. उन्होंने भाजपा के साथ गठबंधन किया और राज्य में सरकार बनाने में सफल हुए. तब से ओडिशा ने चक्रवात प्रबंधन में बेहतरीन काम किया है. हाल ही में आए फानी तूफान के दौरान इसका एक और उदाहरण देखने को मिला.
तब से आज तक नवीन की साफ छवि उनकी सबसे बड़ी ताकत रही है. नवीन पटनायक पर भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है. उन्होंने शादी नहीं की है, ऐसे में वंशवाद के आरोपों से वो दूर हैं. अपने 19 साल के कार्यकाल में छोटे-बड़े आरोप लगने पर नवीन अब तक करीब 50 मंत्रियों का इस्तीफा ले चुके हैं. ओडिशा के एक अस्पताल में लगी आग के चलते स्वास्थ्य मंत्री का इस्तीफा एक उदाहरण है. इस तरह ही नवीन जनता में उपजे असंतोष को शांत कर देते हैं.
पप्पू जो पप्पू नहीं है
भारत में पप्पू शब्द नौसिखियों के लिए इस्तेमाल किया जाता है. नवीन का निकनेम पप्पू है. पहले समझा जाता था कि नवीन बस अफसरशाहों के दम पर ही सरकार चला सकते हैं. कई अफसरशाहों का नाम लेकर ये आरोप लगाए जाते थे कि इनके बिना नवीन सरकार नहीं चला सकते. बीजू पटनायक के प्रिसिंपल सेक्रेटरी रहे और नवीन के खास माने जाने वाले प्यारीमोहन महापात्रा भी इनमें एक थे. नवीन ने इन्हें राज्यसभा भी भेजा लेकिन जब लगा कि महापात्रा महत्वाकांक्षी हो रहे हैं तो पटनायक ने उनकी पार्टी से छुट्टी कर दी. बिजॉय महापात्रा और बिजयंत जयपांडा भी इसी कड़ी में आगे जुड़ गए. नवीन पटनायक ने 2009 में एनडीए गठबंधन का साथ छोड़ दिया था लेकिन उसके बाद भी वो ना कभी यूपीए और ना एनडीए के साथ या खिलाफ खड़े हुए. तीसरे मोर्चे से भी वो दूरी बनाए रहे. कर्नाटक में कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण में गैर एनडीए दलों के शक्ति प्रदर्शन से भी वो दूर रहे. कभी भी राहुल गांधी या नरेंद्र मोदी क खिलाफ सीधी बयानबाजी से नवीन बचते हैं. वो जानते हैं कि राष्ट्रीय राजनीति में जरूरत इन दोनों गठबंधनों से ही पड़ेगी.
गरीब लेकिन खुश ओडिशा
जीडीपी के हिसाब से देखें तो ओडिशा देश के 15 राज्यों से पीछे है वहीं शिक्षा के मामले में ओडिशा 25वें स्थान पर है. पिछले 19 साल से नवीन पटनायक मुख्यमंत्री हैं. ऐसे में ओडिशा के पिछड़ेपन में उनकी भी जिम्मेदारी है. नवीन पटनायक के पास दो विदेशी नस्ल के कुत्ते हैं और उन्हें महंगी व्हिस्की और सिगरेट पीने का शौक है. उनकी व्यक्तिगत छवि राज्य की स्थिति से एकदम उलट है. लेकिन नवीन फिर भी वहां के लोगों को खुश रखते हैं. उनकी पार्टी के नेता कहते हैं कि उनकी सरकार ने पैदा होने से कब्र में जाने तक की योजनाएं लोगों के लिए बना रखी हैं. इन योजनाओं से गरीब तबका नवीन बाबू से खुश रहता है. इसलिए वहां ना जाति की राजनीति काम करती है ना भाषा की और ना ही धर्म की.
ओडिशा में एक रुपये किलो चावल, पांच रुपये में खाना, महिलाओं के लिए जननी सुरक्षा योजना जिसमें बच्चे पैदा होने पर पैसा मिलता है, किसानों को साल में दस हजार रुपये मुहैया करवाने वाली कालिया योजना, गरीबों के इलाज के लिए चल रही राज्य सरकार की योजना जिसमें पुरुषों का पांच लाख और महिलाओं का सात लाख तक मुफ्त इलाज और पढ़ने वाले बच्चों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता जैसी प्रमुख योजनाओं ने नवीन पटनायक को हर आयु वर्ग के लोगों में लोकप्रिय बनाया हुआ है. इन योजनाओं का अर्थशास्त्री कितना भी विरोध करें लेकिन जनता इन्हें पसंद करती है.
बीजेपी-कांग्रेस से हुआ फायदा
2014 के चुनाव तक ओडिशा में कांग्रेस और बीजेडी के बीच मुकाबला होता था. 2019 में बीजेडी, कांग्रेस और बीजेपी तीन पक्षों में मुकाबला था. बीजेपी ने यहां खुद को स्थापित करने के लिए बड़ी मेहनत की थी. पहले पुरी सीट से नरेंद्र मोदी के चुनाव लड़ने की भी खबरें थीं. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. साथ ही बीजेपी को बीजेडी और कांग्रेस दोनों से मुकाबला करना पड़ा. कांग्रेस ने निरंजन पटनायक को अध्यक्ष बनाया था जिसके बाद वहां गुटबंदी थोड़ी कम हुई. कांग्रेस ने अपना विधानसभा का प्रचार बीजेडी की जगह बीजेपी और मोदी के खिलाफ रखा जिसका फायदा नवीन पटनायक को हुआ. कांग्रेस ने इस चुनाव में अपना मुख्य विपक्ष का दर्जा खो दिया. लेकिन बीजेपी बस कांग्रेस की जगह ले पाई और नवीन बाबू पांचवीं बार मुख्यमंत्री बन गए.