अब नहीं ले सकेंगे भारत में किराये की कोख
३१ अक्टूबर २०१५विश्व स्तरीय चिकित्सा सुविधाओं और गरीबी के विरोधाभास ने विदेशी दंपतियों के लिए किराये की कोख के मामले में भारत को मुफीद जगह बना दिया था. लेकिन सरकार ने दिल्ली जैसे महानगरों में सरोगेसी के तेजी से उभरते बाजार को नियंत्रित करने के लिए कानून की कमजोर कड़ियों को बंद करना शुरू कर दिया है.
इस सिलसिले में भारत सरकार ने किराये की कोख के व्यापारिक इस्तेमाल और विदेशी दंपतियों के लिए सरोगेसी के दरवाजे बंद करने के फैसले को मंजूरी देकर हालात को बेकाबू होने से रोकने की तैयारी कर ली है. इस बार जल्द ही सरकार सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर इस फैसले की पुष्टि कर देगी.
क्या है मौजूदा स्थिति
भारतीय महानगरों में फर्टिलिटी क्लीनिक का फैलता जाल दुनिया भर के निःसंतान दंपतियों को अपनी ओर खींच रहा है. सरोगेसी को नियंत्रित करने के लिए भारत में कोई पुख्ता कानून नहीं है. इस बार सिर्फ सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का सरकारों के पास एकमात्र सहारा है. इसकी आड़ में निजी फर्टीलिटी क्लीनिक गरीबी का फायदा उठाकर महिलाओं को धनवान निःसंतान जोड़ों के लिए किराये की कोख मुहैया कराने के लिए आसानी से राजी कर लेते हैं. क्लीनिक मालिक संतान के इच्छुक जोड़ों से खुद तो मोटी रकम वसूल लेते हैं लेकिन सरोगेट मदर को मामूली सी रकम अदा करते हैं और इस कारोबार के दुश्चक्र में ऐसी महिलाओं का बारंबार इस्तेमाल करते हैं.
बाजार का हाल
दरअसल इस कारोबार का नियंत्रण सरकार के हाथ में नहीं होने के कारण सरोगेसी के बाजार का आकार अनुमान पर ही आधारित है. ऐसे में सरकार के पास महिला अधिकारों की कार्यकर्ता रंजना कुमारी द्वारा कराए गए एक सर्वेक्षण की रिपोर्ट को मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. रिपोर्ट बताती है कि भारत में सरोगेसी का कारोबार मौजूदा दौर में 40 करोड़ डॉलर सालाना के स्तर पर पहुंच गया है. इसमें अकेले दिल्ली की भागीदारी लगभग पांच करोड़ डॉलर प्रतिवर्ष है. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार को इससे राजस्व का कितना नुकसान हो रहा है.
कब खुले विदेशियों के लिए द्वार
भारत सरकार ने 2013 में एक अधिसूचना के माध्यम से सरोगेसी के दरवाजे विदेशी जोड़ों के लिए खोले थे. विदेशी व्यापार महानिदेशालय ने इस अधिसूचना के माध्यम से विदेश से मानव भ्रूण को भारत में निःशुल्क लाने की अनुमति दी थी. मगर सरकार अब इस अधिसूचना को वापस लेकर विदेशियों के लिए सरोगेसी के दरवाजे बंद कर देगी. साथ ही देश में भी इस कारोबार को नियंत्रित करने के लिए कानून पारित किया जाएगा.
क्या होगा लाभ
इसका सबसे बड़ा लाभ राजस्व की हानि को रोकना है. साथ ही किराये की कोख मुहैया कराने वाली महिलाओं की सेहत संबंधी जरूरतों को पूरा करते हुए उनके साथ हो रहे आर्थिक अन्याय को भी कानूनन रोका जा सकेगा.
कानून के माध्यम से न सिर्फ किराये की कोख के कारोबार को रोका जाएगा, बल्कि इसका इस्तेमाल सिर्फ शोध तक ही सीमित रहेगा. हालांकि इस बारे में जानकारों की राय अलग अलग है. बतौर रंजना कुमारी इस पर पूरी तरह से प्रतिबंध के बजाय सरकार को इसे बेकाबू होने से रोकते हुए सरोगेसी को सर्शत मंजूरी देनी चाहिए. दरअसल मौजूदा हालात में संतानोत्पत्ति क्षमता में विश्वव्यापी गिरावट को देखते हुए सरकार को इस जरूरत को समझना होगा. यह न सिर्फ मानव विकास की चिरंतन यात्रा को सुचारु रखने में मददगार साबित होगा, बल्कि गरीबी से जूझ रही महिलाओं के लिए आय का माध्यम भी बन सकेगा. इसलिए समय की मांग को देखते हुए सरकार को बीच का रास्ता अपनाते हुए सरोगेसी पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के बजाय इसके दुरुपयोग को रोकने के उपाय सुनिश्चित करने होंगे .
ब्लॉग: निर्मल यादव
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