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अब डाक्टर सीख रहे हैं मार्शल आर्ट

प्रभाकर मणि तिवारी
१९ मई २०१७

पश्चिम बंगाल के विभिन्न अस्पतालों में मरीजों के परिजनों द्वारा डाक्टरों और दूसरे कर्मचारियों से मारपीट और हिंसा की घटनाएं रुक नहीं रही हैं. सरकार ने अब डाक्टरों को आत्मरक्षा के लिए मार्शल आर्ट सिखाने का फैसला किया है.

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Indien Westbengalen Gesundheitssystem, Krankenhäuser
तस्वीर: DW/P. Samanta

राज्य सरकार को उम्मीद है कि इसके तहत छोटे-मोटे मामलों में डॉक्टर खुद अपनी रक्षा कर सकेंगे. फिलहाल डाक्टरों व मेडिकल छात्रों के एक बैच का प्रशिक्षण चल रहा है. सरकार अब मेडिकल कालेजों में इसे एक पाठ्यक्रम के तौर पर शामिल करने पर भी विचार कर रही है. उसने मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया को भी यह प्रस्ताव दिया है.

मार्शल आर्ट का प्रशिक्षण

कोलकाता के सरकारी नीलरतन सरकार मेडिकल कालेज अस्पताल के डाक्टर और नर्सिंग कर्मचारी अब सप्ताह में दो दिन ताइक्वांडो सीखते हैं. इसका मकसद उनको किसी अप्रिय स्थिति में खुद को बचाने में सक्षम बनाना है. यहां एमबीबीएस की पढ़ाई करने वाले छात्रों को भी अब आत्मरक्षा की यह कला सीखनी पड़ रही है. फिलहाल पहले बैच में कोई एक सौ तीस जूनियर डाक्टर और प्रोफेसर इसका प्रशिक्षण ले रहे हैं. इनमें महिलाएं भी शामिल हैं. सरकार अब दूसरे अस्पतालों में भी ऐसा प्रशिक्षण आयोजित करने की योजना बना रही है. मेडिकल कालेज के उपाध्यक्ष द्वैपायन विश्वास कहते हैं, "छात्रों और डाक्टरों में मार्शल आर्ट सीखने के प्रति जबरदस्त उत्साह है. इससे उनमें अनुशासन भी बढ़ा है." विश्वास बताते हैं कि अब दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) भी ऐसा प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने की योजना बना रहा है.

राज्य के स्वास्थ्य शिक्षा निदेशक देवाशीष भट्टाचार्य कहते हैं, "अब सरकारी अस्पताल में काम करने वाले तमाम डाक्टरों, नर्सों और दूसरे कर्मचारियों को मार्शल आर्ट की ट्रेनिंग लेनी होगी." नीलरतन सरकार मेडिकल कालेज का प्रमुख रहने के दौरान उन्होंने ही वहां ऐसी ट्रेनिंग शुरू कराई थी. वह कहते हैं, "यह बर्दाश्त नहीं किया जा सकता कि डाक्टर लगातार मरीजों के परिजनों के हाथों पिटते रहें. उनको अपनी रक्षा खुद करनी होगी. अब पानी सिर से ऊपर बहने लगा है."

मेडिकल काउंसिल को सलाह

राज्य सरकार ने अब मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया (एमसीआई) को भी देश के तमाम सरकारी मेडिकल कालेजों व अस्पताल में काम करने वाले डाक्टरों के लिए मार्शल आर्ट की कक्षाएं शुरू करने का सुझाव दिया है. देवाशीष कहते हैं, "ताइक्वांडो आत्मरक्षा का एक मजबूत पैकेज है. इससे मानसिक ताकत तो बढ़ती ही है, तनाव भी घटता है."

सरकार की दलील है कि सरकारी अस्पतालों में किसी मरीज की मौत की स्थिति में डाक्टरों व दूसरे कर्मचारियों को अक्सर उसके परिजनों की नाराजगी का सामना करना पड़ता है. कई मामलों में उनके साथ मारपीट भी की जाती है. अब हर जगह चौबीसों घंटे तो सुरक्षा मुहैया कराना संभव नहीं है. भट्टाचार्य कहते हैं, "इसी समस्या को ध्यान में रखते हुए ऐसे प्रशिक्षण की योजना बनाई गई ताकि छोटी-मोटी घटनाओं की स्थिति में डाक्टर अपना बचाव खुद कर सकें."

बढ़ती घटनाएं

हाल के महीनों में राज्य के सरकारी अस्पतालों में मरीजों के परिजनों की ओर से डाक्टरों के साथ मारपीट और अस्पतालों में तोड़फोड़ की घटनाएं बढ़ी हैं. ममता बनर्जी सरकार ने हालांकि इन पर अंकुश लगाने के लिए कई कानून भी बनाए हैं. बावजूद इसके ऐसी घटनाएं थम नहीं रही हैं. हालांकि द्वैपायन विश्वास का दावा है कि हाल की घटनाओं से इसका कोई संबंध नहीं है. सरकार पहले से ही इस योजना पर विचार कर रही थी.

अब डाक्टरों की इस ट्रेनिंग के बाद यह आरोप उठ रहे हैं कि डाक्टरों को यह प्रशिक्षण इसलिए दिया जा रहा है कि वह मरीजों के परिजनों पर हमले कर सकें. लेकिन भट्टाचार्य कहते हैं, "यह आरोप बेबुनियाद हैं. आखिर हर व्यक्ति को अपने बचाव का अधिकार है." उनकी दलील है कि डाक्टर जानबूझ कर किसी को नहीं मारते. आखिर वह लोग भी इंसान हैं. भट्टाचार्य का सवाल है कि अगर कोई व्यक्ति किसी गंभीर बीमारी या हादसे का शिकार होकर अस्पताल में आकर कुछ घंटों के भीतर मर जाए तो डाक्टरों को कसूरवार ठहरा कर उनके साथ मारपीट करना कहां तक जायज है?

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