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अब कर्नाटक में टीपू सुल्तान पर विवाद

१२ नवम्बर २०१५

केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन और उसके वित्त मंत्री अरुण जेटली को देश में कहीं असहिष्णुता नजर नहीं आ रही मगर वह है कि लगातार बढ़ती ही जा रही है.

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तस्वीर: DW/J.Sehgal

हालांकि बीजेपी विकास के नारे पर जीत कर सत्ता में आई थी और उसने नौजवानों में यह उम्मीद जगाई थी कि आर्थिक विकास की गति तेज होने से उनके लिए रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे, लेकिन हकीकत यह है कि सत्ता में आने के बाद से लगातार वह और उसके हिंदुत्ववादी सहयोगी संगठन एक के बाद एक ऐसे मुद्दे उठाते जा रहे हैं जिनके कारण विकास की गति नहीं, समाज में सामाजिक विघटन और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की गति तेज हो रही है.

अब ताजा विवाद अठारहवीं शताब्दी में मैसूर के शासक रहे टीपू सुल्तान को लेकर उठा है. बीजेपी और विश्व हिन्दू परिषद जैसे उसके संघ परिवार में शामिल सहयोगी संगठनों का आरोप है कि औरंगजेब की तरह टीपू सुल्तान भी एक क्रूर, हिंदूविरोधी और निरंकुश शासक था जिसने हिंदुओं और ईसाइयों का जबर्दस्ती धर्म परिवर्तन कराया और हिन्दू मंदिरों को लूटा. पिछले दिनों जब यह खबर आई कि तमिल फिल्मों के सुपर स्टार रजनीकांत टीपू सुल्तान पर बनने वाली फिल्म में अभिनय कर सकते हैं, तो इन संगठनों ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया और उनसे धमकी भरे अंदाज में मांग की कि वे इस फिल्म में कतई काम न करें.

अब कर्नाटक की कांग्रेस सरकार और ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित लेखक-अभिनेता गिरीश कर्नाड उनके निशाने पर हैं क्योंकि राज्य सरकार ने टीपू सुल्तान की जयंती मनाने का निर्णय लिया और उस समारोह में कर्नाड के अलावा कई अन्य जाने-माने कन्नड़ लेखकों और विद्वानों को आमंत्रित किया. इस अवसर पर कर्नाड ने विचार व्यक्त किया कि बंगलुरु हवाईअड्डे का नाम केंपेगौड़ा के स्थान पर टीपू सुल्तान के नाम पर रखा जा सकता था क्योंकि टीपू ने ब्रिटिश उपनिवेशवदियों के खिलाफ कड़ा संघर्ष किया था. उन्होंने यह भी कहा कि यदि टीपू हिन्दू होते, तो उन्हें भी कर्नाटक में वही दर्जा दिया गया होता जो महाराष्ट्र में शिवाजी को प्राप्त है. हालांकि कर्नाड ने बंगलुरु हवाईअड्डे का नाम बदलने की मांग नहीं की थी लेकिन उनके खिलाफ तत्काल इसी आशय का प्रचार शुरू हो गया.

उन्होंने बाद में यह कह कर माफी भी मांग ली कि यदि उनके बयान से किसी की भावनाओं को चोट पहुंची हो तो वे इसके लिए खेद प्रकट करते हैं, लेकिन उनके विरोधी अपने विरोध पर डटे हुए हैं. एक ट्वीट पर उन्हें यह धमकी भी दी गई कि उनका हश्र भी वही होगा जो विवेकवादी कन्नड़ लेखक एम. एम. कलबुर्गी का हुआ था. अब तो यह बात सभी जानते हैं कि कलबुर्गी की हत्या की गई थी. बाद में इस ट्वीट को वापस ले लिया गया लेकिन विवाद थमा नहीं है. टीपू सुल्तान की जयंती मनाने के विरोध में प्रदर्शन कर रहे एक व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी है. एक अन्य की मृत्यु होने की भी खबर है हालांकि उसके बारे में यह स्पष्ट नहीं है कि वह टीपू सुल्तान के विरोधियों में शामिल था या उनका विरोध कर रहा था.

पिछले अनेक दशकों से संघ परिवार के संगठन महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और भीमराव अंबेडकर के खिलाफ निजी हमले करते हुए दुष्प्रचार करते रहे हैं. लेकिन अब यह प्रवृत्ति बहुत अधिक बढ़ गई है. हाल ही में राजधानी नई दिल्ली में औरंगजेब रोड का नाम बदल कर ए पी जे अब्दुल कलाम रोड कर दिया गया. दिलचस्प बात यह है कि देश के पूर्व राष्ट्रपति कलाम, जो स्वयं एक मिसाइल वैज्ञानिक थे, अठारहवीं शताब्दी में मिसाइल तकनीकी के विकास में टीपू के योगदान के बहुत बड़े प्रशंसक थे. टीपू फ्रांस की क्रांति का समर्थक और जैकोबिन क्लब का सदस्य था. उसने छोटी-छोटी रियासतों में बनते कर्नाटक को एक करने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी और कृषि को बहुत बढ़ावा दिया था. लेकिन हिदुत्ववादियों की राय में वह केवल एक क्रूर, हिन्दू विरोधी शासक था जिसकी जयंती भी नहीं मननी चाहिए.

मुसलमानों और ईसाइयों को हिन्दू बनाकर उनकी तथाकथित ‘घर-वापसी', गोमांस खाने या गायों की तस्करी करने का संदेह होने पर मुसलमानों को पिटाई या हत्या, विवेकवादी लेखकों और विचारकों की हत्या, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला और वैचारिक बहस की जगह का लगातार सिकुड़ते जाना, ये ऐसी बातें हैं जिनके कारण देश में तनाव और असहिष्णुता का माहौल बनता जा रहा है और लोगों को यह महसूस होने लगा है कि उनसे अपनी इच्छानुसार बोलने, लिखने, पहनने, पढ़ने और खाने की आजादी छीनी जा रही है. इस स्थिति से क्षुब्ध होकर अनेक लेखकों, फ़िल्मकारों और कलाकारों ने राज्य और उसके द्वारा स्थापित संस्थाओं द्वारा दिये गए पुरस्कार वापस करने का कदम उठाया है क्योंकि उन्हें केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस बात की शिकायत है कि वे इन मसलों पर चुप्पी साधे हुए हैं.

ब्लॉग: कुलदीप कुमार