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अब असम में नागरिकता कानून पर विवाद

प्रभाकर मणि तिवारी
१० अक्टूबर २०१६

विदेशी नागरिकों को नागरिकता देने के मुद्दे पर पूर्वोत्तर राज्य असम की राजनीति में उबाल आ गया है. केंद्र सरकार ने जुलाई में नागरिकता अधिनियम, 1955 के कुछ प्रावधानों में संशोधन के लिए विधेयक पेश किया था.

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Indien Politiker Sarbananda Sonowal
तस्वीर: Imago/Hindustan Times

मूल रूप से असम में आने वाले हिंदू बंगालियों को नागरिकता देने के मकसद तैयार नागरिकता (संशोधन) विधेयक सत्तारुढ़ भाजपा के लिए गले की हड्डी बनता जा रहा है. राज्य के ताकतवर छात्र संगठन अखिल असम छात्र संघ (आसू) समेत कोई तीन दर्जन संगठन इसका विरोध कर रहे हैं. कोई 15 साल तक यहां सत्ता में रही कांग्रेस असम समझौते को लागू करने की मांग कर रही है. इसके तहत वर्ष 1971 से पहले असम आने वालों को ही नागरिकता देने का प्रावधान है. ताजा विधेयक में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले हिंदुओं को भी नागरिकता देने का प्रावधान है. लेकिन इसका जबरदस्त विरोध शुरू हो गया है. असम की राजनीति पहले से ही बांग्लादेशी घुसपैठ के इर्द-गिर्द घूमती रही हैं. इसी मुद्दे पर अस्सी के दशक में असम आंदोलन भी हो चुका है.

जुलाई में नागरिकता अधिनियम, 1955 के कुछ प्रावधानों में संशोधन के लिए पेश विधेयक फिलहाल संसद की स्थायी समिति के पास विचारधीन है. प्रस्तावित संशोधन के मुताबिक, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से बिना किसी वैध कागजात के भाग कर आने वाले गैर-मुसलमान आप्रवासियों को भारत की नागरिकता दे दी जाएगी. इसके दायरे में ऐसे लोग भी शामिल होंगे जिनका पासपोर्ट या वीजा खत्म हो गया है. प्रस्तावित संशोधन के बाद अब उनको अवैध नागरिक या घुसपैठिया नहीं माना जाएगा.

An der Grenze zwischen Indien und Bangladesch
शरणार्थियों को रोकने के लिए सीमा पर बाड़तस्वीर: S. Rahman/Getty Images

असम में विरोध

राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस के अलावा ताकतवर छात्र संगठन अखिल असम छात्र संघ (आसू) और असम में सोनोवाल की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार की सहयोगी रही असम गण परिषद (अगप) के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री प्रफुल्ल महंत नागरिकता अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन के खिलाफ मुखर हैं. राज्य के साहित्यिक संगठनों और बुद्धिजीवियों ने भी इसके खिलाफ आवाज उठाते हुए अंदेशा जताया है कि इससे असम के स्थानीय लोगों पर पहचान का संकट पैदा हो जाएगा.

आसू के मुख्य सलाहकार समुज्जवल भट्टाचार्य कहते हैं, "इस विधेयक के पारित होने के बाद असम में बांग्लादेशी शरणार्थियों की बाढ़ आ जाएगी. यह राज्य पहले से ही शरणार्थियों के बोझ से कराह रहा है." आसू समेत 37 संगठनों ने प्रस्तावित विधेयक को असम समझौते की भावना और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ करार दिया है. भट्टाचार्य कहते हैं, "25 मार्च, 1971 के बाद बांग्लादेश से आने वाले किसी भी व्यक्ति को असम स्वीकार नहीं करेगा. वह चाहे हिंदू हो या मुसलमान." उनका आरोप है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर राज्य के लोगों की पहचान की रक्षा के लिए नेशनल सिटीजंस रजिस्टर (एनआरसी) को अपडेट करने का काम चल रहा है. इसी दौरान धार्मिक आधार पर नागरिकता अधिनियम में संशोधन के लिए नया विधेयक तैयार करने से बीजेपी की मंशा साफ होती है. इस विधेयक के पारित होने की स्थिति में दूसरे देशों से आने वाले तमाम हिंदुओं को नागरिकता मिल जाएगी और उनका नाम भी एनआरसी में शामिल करना होगा. इससे राज्य में जातीय संतुलन गड़बड़ा जाएगा.

विधेयक पर विवाद

इन संगठनों की दलील है कि शरणार्थियों की भीड़ से राज्य के स्थानीय लोगों का अस्तित्व पहले से ही खतरे में हैं. इस विधेयक के पारित होने के बाद तो यहां शरणार्थियों की बाढ़ आ जाएगी. पूर्व मुख्यमंत्री प्रफुल्ल कुमार महंत का कहना है कि राज्य में अब और शरणार्थियों को रखने की क्षमता नहीं है. प्रदेश कांग्रेस का आरोप है कि केंद्र और राज्य की बीजेपी सरकारों ने नेशनल सिटीजंस रजिस्टर (एनआरसी) को बेमानी बना दिया है. प्रफुल्ल महंत कहते हैं, "लोकसभा चुनावों से पहले बीजेपी ने सत्ता में आने की स्थिति में राज्य से अवैध बांग्लादेशी नागरिकों को खदेड़ने का वादा किया था. लेकिन विडंबना यह है कि अब वही पार्टी गैर-मुसलमान आप्रवासियों को नागरिकता देने की वकालत कर रही है." वह कहते हैं कि यह ऐतिहासिक असम समझौते के प्रावधानों का खुला उल्लंघन है. ध्यान रहे कि छात्र नेता के तौर पर महंत ने भी उक्त समझौते पर हस्ताक्षर किए थे. उसके बाद ही असम में वर्ष 1985 में उनकी अगुवाई में असम गण परिषद की सरकार सत्ता में आई थी.

लेकिन वित्त मंत्री हिमंत विश्वशर्मा का सवाल है कि आखिर अत्याचार के शिकार हिंदू कहां जाएंगे? उनके पास तो मुसलमानों और ईसाइयों की तरह पाकिस्तान या अमेरिका जाने का भी विकल्प नहीं है. उनकी दलील है कि अगर पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और पंजाब को उक्त प्रावधानों पर कोई आपत्ति नहीं है तो असम पर शरणार्थियों का बोझ पड़ने की बात कह कर विवाद क्यों फैलाया जा रहा है? राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि बांग्लादेश से लगी सीमा सील कर सीमा पार से होने वाली घुसपैठ पूरी तरह रोकने के वादे के साथ सत्ता में आई भाजपा के लिए उक्त विधेयक खतरे की घंटी बन सकता है. लेकिन भाजपा के रणनीतिकार ऐसा नहीं मानते. उनकी दलील है कि विधेयक में कहीं भी इसका जिक्र नहीं है कि तमाम हिंदू शरणार्थियों को असम में ही बसाना होगा. आने वाले दिनों में यह एक प्रमुख मुद्दे के तौर पर उभर सकता है.