गर्भपात पर बोलती बंद
२९ मार्च २०१४बीस साल की लीना लाइजे को गर्भपात के फैसले का कोई दुख नहीं है क्योंकि वह अच्छी तरह जानती थीं कि उनके पास कोई विकल्प नहीं है, "गर्भपात के लिए मैंने गोलियां निगल लीं. मेरे पति को हमले के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया. लेकिन मैं पहले ही गर्भवती थी. मेरे परिवार को काफी शर्म महसूस हो रही थी. वे कह रहे थे कि जब बच्चा पैदा होगा तो सब पूछेंगे कि ये किसका बच्चा है."
लीना का नाम यहां बदला गया है, वो पूर्वी अफगानिस्तान के एक गांव में रहती हैं. यहां का समाज ठेठ रुढ़िवादी समाज है, जहां कड़े नियम हैं. भले ही लीना की तरह किसी के बारे में अफवाह ही उड़ जाए, ये चेहरे पर कालिख पुतने की तरह है और पूरे परिवार की मौत के सामान. परेशान होने वालों में महिलाएं ही सबसे ज्यादा हैं. कम ही गर्भपात का रास्ता अपनाती हैं. लीना कहती हैं, "मैं इतने लोगों को जानती हूं, जो ऐसा ही करते हैं. वे डॉक्टर के पास जाते हैं और दवाई लिखवा लाते हैं. इसके बाद बच्चा मर जाता है."
कानूनी प्रतिबंध
इस्लामिक गणतंत्र अफगानिस्तान में कानूनी तौर पर गर्भपात प्रतिबंधित है. इसकी अनुमति तभी मिलती है जब मां की जान को खतरा हो या बच्चा गंभीर रूप से बीमार या अपाहिज होने की रिपोर्ट हो. सामान्य तौर पर बच्चा गिराने पर पैरोल या फिर भारी जुर्माने की सजा हो सकती है. बलात्कार या कौटुंबिक व्यभिचार को भी गर्भपात का कारण नहीं माना जाता.
हेरात में काम करने वाली डॉक्टर ने यह जानकारी देते हुए बताया, "अगर मां या बच्चे को सेहत से जुड़ी समस्या हो तो तीन डॉक्टर और एक महिला रोग विशेषज्ञ बातचीत के बाद गर्भपात करवाते हैं." इतना ही नहीं महिला को डॉक्टर का सर्टिफिकेट और धर्मपरिषद शुरा उलामा की अनुमति की जरूरत होती है. तीन बच्चों की मां लीना का गर्भपात भी अवैध था, "मैं जानती हूं कि बच्चा गिराना यानि उसकी हत्या करना. लेकिन मैं यह सोच रही थी कि खुद को मार लूं या फिर बच्चे को."
कड़े नियमों वाले समाज के कारण उसके मन में यह विचार आया. अफगान महिलाओं से अपेक्षा की जाती है कि वे कई बच्चे पैदा करें और पारंपरिक सोच के मुताबिक परिवार को चलाने का यही तरीका है. और लड़कों के प्रति प्रेम तो कोई नया नहीं.
अफगानिस्तान में औसतन हर महिला के पांच बच्चे होते हैं. अधिकतर महिलाएं कम बच्चे चाहती हैं लेकिन कैसे, इस बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं. गर्भ निरोध के बारे में उन्हें बताने वाला कोई नहीं. कई महिलाएं दाई के पास जाती हैं, तो कई निजी अस्पतालों का सहारा लेती हैं. पहला विकल्प खतरनाक साबित हो सकता है और दूसरे में बहुत पैसे की जरूरत है.
बहुत कोशिश के बावजूद भी महिलाओं के लिए अच्छी स्वास्थ्य प्रणाली नहीं बन सकी है. जरूरत है महिलाओं को जागरूक करने की और उन्हें सही तरीका बताने की.
रिपोर्ट: वसलत हसरत नाजिमी/एएम
संपादन: ईशा भाटिया