अपने शब्द चुन सकते हैं राष्ट्रपति
१० जून २०१४राष्ट्रपति योआखिम गाउक ने अगस्त 2013 में बर्लिन में शरणार्थी गृहों के सामने विरोध करने वाले प्रदर्शनकारियों को 'श्पिनर' कहा था, जिसका मतलब 'सिरफिरा' होता है. राष्ट्रपति ने सैकड़ों स्कूली बच्चों को संबोधित करते हुए कहा था, "हमें ऐसे नागरिकों की जरूरत है जो सड़कों पर उतरें और ऐसे बेहूदों को उनकी सीमा बताएं." राष्ट्रपति गाउक ने साथ ही कहा था, "मुझे ऐसे देश का राष्ट्रपति होने पर नाज है जिसमें उसके नागरिक अपने लोकतंत्र की रक्षा करते हैं."
कानून के राज्य में राष्ट्रपति भी कानून से बंधा होता है. तो यह फैसला संवैधानिक अदालत को करना था कि क्या राष्ट्रपति को ऐसा कहने का हक है. संवैधानिक अदालत ने उग्र दक्षिणपंथी एनपीडी पार्टी की अपील खारिज कर दी है. अदालत ने कहा कि इस कथन को अस्वीकार करने की कोई वजह नहीं है.
जर्मनी की सर्वोच्च अदालत ने अपने अहम फैसले में कहा कि राष्ट्रपति प्रतिनिधित्व और सहिष्णुता के प्रोत्साहन की अपनी जिम्मेदारी किस तरह पूरा करते हैं यह पद पर आसीन शख्सियत खुद तय करता है. राष्ट्रपति के बयानों को अदालत द्वारा तभी खारिज करवाया जा सकता है जब उसके साथ सहिष्णुता की जिम्मेदारी की उपेक्षा हुई हो या मनमाने तरीके से किसी का पक्ष लिया गया हो.
उग्र दक्षिणपंथी पार्टी एनपीडी ने संवैधानिक अदालत में इस आधार पर अपील की थी कि जर्मनी के संसदीय चुनावों से कुछ पहले दिए गए बयान से उसकी कथित तौर पर बदनामी हुई थी. अदालत में हुई मौखिक सुनवाई में राष्ट्रपति कार्यलय ने दलील थी कि राष्ट्रपति का कर्तव्य शब्दों के जरिए संविधान के मूल्यों और समाज के कल्याण की रक्षा करना है. उसमें कुछ हद तक विवाद संभव है.
संवैधानिक अदालत का कहना है कि राष्ट्रपति गाउक ने अपने इस बयान से चुनाव प्रचार में पार्टियों के समान मौके के एनपीडी के अधिकार का हनन नहीं किया है. राष्ट्रपति अपने पद के साथ लगी उम्मीदें तभी पूरी कर सकते हैं जब वे सामाजिक विकासों पर बोल सकें और संवाद का समुचित रूप चुनने में स्वतंत्र हों. खतरों की ओर ध्यान दिलाने और उसे पैदा करने वाले का नाम लेने के लिए उन्हें किसी कानूनी अधिकार की जरूरत नहीं है.
एमजे/आईबी (ईपीडी, एएफपी)