अनियंत्रित सांप्रदायिक बयानों का चुनाव
२४ अप्रैल २०१४निर्वाचन आयोग अपने दायरे के भीतर रह कर इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने का भरसक प्रयास कर रहा है लेकिन उसका कहना है कि उसकी भी एक सीमा है. वह हर स्थान पर उपस्थित रह कर हर उम्मीदवार के भाषणों और चुनाव प्रचार की सामग्री पर निगाह नहीं रख सकता. जब कोई उसके सामने किसी प्रकार की शिकायत लाता है, तब वह अवश्य उसका संज्ञान लेकर कार्रवाई करता है.
बीजेपी, अकाली दल, शिव सेना और मुस्लिम लीग जैसी पार्टियां धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करती हैं लेकिन यह किसी से छिपा नहीं है कि उनका जनाधार एक धर्म विशेष और क्षेत्र विशेष के लोगों के बीच है. शिव सेना तो हिन्दुत्व के साथ साथ महाराष्ट्रीयता को भी मिला देती है और गैर हिंदुओं के अलावा गैर मराठियों को भी निशाना बनाती है. लेकिन सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश सिर्फ सांप्रदायिक मानी जाने वाली पार्टियां ही करती हों, ऐसा नहीं है.
जिस दल या उम्मीदवार को भी लगता है कि उसे इसका चुनावी लाभ मिल सकता है, वह ऐसा करने से बाज नहीं आता. यही कारण है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में जिस तरह का निर्बाध और भीषण सांप्रदायिक प्रचार हुआ है, वैसा पहले कभी नहीं हुआ. इस समय पूरे देश में सांप्रदायिकता फैला कर मतदाताओं को धर्म के आधार पर बांटने की सुनियोजित कोशिश की जा रही है और खुल्लमखुल्ला किसी धर्मविशेष के अनुयायियों को डराया धमकाया जा रहा है. राजनीतिक दल सिर्फ औपचारिक रूप से इनका खंडन या विरोध करते हैं और फिर इन्हीं कोशिशों में लग जाते हैं.
सहारनपुर में कांग्रेस के उम्मीदवार इमरान मसूद ने अपने एक सार्वजनिक भाषण में बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को धमकी दी कि यदि उन्होंने या उनके साथियों ने सहारनपुर में गुजरात जैसे दंगे भड़काए तो वह उनकी बोटी बोटी कर देंगे. जब इसकी वीडियो रिकॉर्डिंग सामने आ गई तो यह कह कर बचने की कोशिश की गई कि यह कुछ माह पुरानी है. लेकिन जब लोगों के गले से यह बात नहीं उतरी तो कांग्रेस नेताओं ने इस पर लीपा पोती की. मसूद के खिलाफ केस दर्ज किया गया, उनकी गिरफ्तारी हुई और जमानत पर रिहाई. लेकिन सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का उनका मकसद पूरा हो गया. पड़ोसी जिले मुजफ्फरनगर में पिछले साल हुए सांप्रदायिक दंगों के कारण यूं भी हिन्दू मुस्लिम तनाव पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अपनी गिरफ्त में ले चुका है.
इसी का फायदा उठाने के लिए नरेंद्र मोदी के निकटतम सहयोगी और बीजेपी के महासचिव एवं उत्तर प्रदेश के चुनाव प्रभारी अमित शाह ने मुजफ्फरनगर में एक सार्वजनिक रूप से हिंदुओं का आह्वान कर डाला कि वे चुनाव के मौके का इस्तेमाल ‘अपमान का बदला' लेने के लिए करें. मुजफ्फरनगर में आज भी हजारों मुसलमान खुले आसमान के नीचे शरणार्थी शिविरों में रह रहे हैं. उधर झारखंड में बीजेपी एक पूर्व मंत्री और उम्मीदवार गिरिराज सिंह ने उन सभी लोगों को धमकी दे डाली जो नरेंद्र मोदी का विरोध कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि ऐसे लोग पाकिस्तान की ओर देखते हैं और भारत में इनके लिए कोई जगह नहीं है. नई सरकार बनने के बाद इन्हें पाकिस्तान जाना होगा. पहले तो बीजेपी ने भी इस पर लीपा पोती की कोशिश की पर फिर दबे स्वर में आलोचना करने की औपचारिकता भी निभा दी. जब गिरिराज सिंह यह धमकी दे रहे थे, उस समय उनके साथ मंच पर बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी भी बैठे थे पर उन्होंने उनके बयान से असहमति जताते हुए एक शब्द भी नहीं कहा, जिससे स्पष्ट था कि उन्हें इस बयान पर कोई आपत्ति नहीं थी.
इसके बाद शिवसेना के एक नेता रामदास कदम ने सभी मुसलमानों को देशद्रोही बता दिया और कहा कि वे दंगा फसाद करते हैं, पुलिस पर हमले करते हैं और हिन्दू महिलाओं के साथ बदतमीजी करते हैं. उन्हें पूरा विश्वास है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इन्हें इसकी सजा मिलेगी.
विश्व हिन्दू परिषद के प्रवीण तोगड़िया बहुत वर्षों से अपने भड़काऊ और आग लगाने वाले भाषणों के लिए कुख्यात रहे हैं. अब उन्होंने खुलेआम एलान कर दिया कि गुजरात में जो भी मुसलमान हिन्दू इलाके में मकान खरीदे, उसे उस मकान में घुसने न दिया जाए और उस पर जबर्दस्ती कब्जा कर लिया जाए. चुनाव के दिनों में इस तरह के एलान का क्या असर हो सकता है, स्पष्ट है.
इन सभी बयानों के सामने आने पर निर्वाचन आयोग ने कार्रवाई की है, लेकिन इस कार्रवाई से इनके जहर का असर कम नहीं होता क्योंकि इन बयानों को देने वाले नेता जो संदेश मतदाता तक पहुंचाना चाहते थे, वह संदेश पहुंचाने में वे सफल रहे. उनके खिलाफ मामले दर्ज होने से उनके संदेश का असर कम नहीं हो जाता. बहुत से ऐसे बयानों के बारे में तो पता भी नहीं चल पाता. नतीजतन 2014 के लोकसभा चुनाव में अभूतपूर्व तरीके से सांप्रदायिक प्रचार का सहारा लिया जा रहा है. लोकतंत्र के भविष्य के लिए यह बेहद निराशाजनक है.
ब्लॉगः कुलदीप कुमार
संपादनः ए जमाल