अगले चार सालों में जर्मनी करेगा पर्यावरण पर 54 अरब यूरो खर्च
२० सितम्बर २०१९जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने गठबंधन सरकार के साथियों के साथ पर्यावरण सुरक्षा के कदमों की घोषणा करते हुए कहा कि इन कदमों का मकसद अच्छे इरादे वाले लक्ष्यों को अच्छे इरादे वाले लक्ष्य पूर्ति में बदलना है. इसके पहले चांसलर की सीडीयू समेत सीएसयू और एसपीडी पार्टी के नेताओं ने कई घंटों की बहस के बाद 2030 तक के लिए सरकार के पर्यावरण सुरक्षा कदमों की रूपरेखा तय की.
इस 22 पेज वाले दस्तावेज के अनुसार भविष्य में भी क्लाइमेट कैबिनेट काम जारी रखेगा. क्लाइमेट कैबिनेट चांसलर अंगेला मैर्केल के मंत्रिमंडल के खास सदस्यों का दल है जो पर्यावरण पर फैसले लेता है. क्लाइमेट कैबिनेट की सालाना बैठक में इस बात की समीक्षा की जाएगी कि पर्यावरण के लक्ष्यों को पूरा किया जा रहा है या नहीं. यदि उद्योग की कोई शाखा कानूनी लक्ष्यों को पूरा नहीं करती है तो संबंधित मंत्री तीन महीने के अंदर संशोधित कार्यक्रम पेश करेगा ताकि लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में बढ़ा जा सके.
1990 के स्तर से 55 फीसदी कटौती का लक्ष्य
चांसलर मैर्केल ने कहा कि इससे ये सुनिश्चित किया जा सकेगा कि 2030 तक कार्बन उत्सर्जन को 1990 के स्तर से 55 फीसदी कम करने का लक्ष्य पूरा हो सके. पर्यावरण लक्ष्यों को हासिल किए जाने की नियमित समीक्षा के साथ 2021 से परिवहन और मकानों की हीटिंग के क्षेत्र में कार्बन कारोबार शुरु किया जा रहा है. उम्मीद की जा रही है कि इससे लोग पर्यावरण सम्मत व्यवहार के लिए प्रोत्साहित होंगे. इस कार्यक्रम के तहत एक राष्ट्रीय सर्टिफिकेट सिस्टम शुरू किया जाएगा और कार्बन डाय ऑक्साइड के उत्सर्जन को महंगा बना दिया जाएगा.
इसके साथ हीटिंग तेल, तरल और भूगैस, कोयला, पेट्रोल और डीजल जैसे जीवाश्म उर्जा की कीमत बढ़ जाएगी. घर को गर्म करना, गाड़ी चलाना और हवाई यात्रा करना महंगा हो जाएगा. लोगों पर फौरन इसका बुरा असर न पड़े इसके लिए पहले यह मैकेनिज्म धीरे धीरे काम करेगा लेकिन बाद में वह तेजी से लागू किया जाएगा. रोजमर्रा के खर्च में इस तरह से होने वाली बढ़ोत्तरी को बिजली की कीमतों में कमी कर की संतुलित किया जाएगा. इसी तरह दफ्तर जाने में होने वाले खर्च की टैक्स फ्री राशि में वृद्धि की जाएगी.
बेहतर पर्यावरण के लिए लाखों लोग सड़कों पर
जिस समय जर्मनी की सत्ताधारी पार्टियां पर्यावरण लक्ष्यों को पूरा करने के कदमों पर विचार कर रही थीं, जर्मनी की सड़कों पर पर्यावरण समर्थक प्रदर्शन कर रहे थे. फ्राइडे फॉर फ्यूचर आंदोलन के वैश्विक हड़ताल के सिलसिले में जर्मनी में भी लाखों लोगों ने विभिन्न शहरों में रैलियों और कार्यक्रमों में हिस्सा लिया.बर्लिन में करीब 100,000 लोगों ने रैली निकाली तो हैम्बर्ग और कोलोन में 70-70 हजार, ब्रेमेन और म्यूनिख में 30-30 हजार और हैनोवर, फ्राइबुर्ग और मुंस्टर में 20 से 25,000 प्रदर्शनकारियों ने रैलियों में हिस्सा लिया.
मुख्य रूप से स्कूली छात्रों द्वारा निकाली गई रैलियों में ट्रेड यूनियनों, अभिभावक संगठनों, पर्यावरण संगठनों और चर्च के संगठनों ने भी भाग लिया. इवांजेलिक गिरजे ने प्रदर्शनों में भाग लेने के अलावा गिरजों में घंटियां भी बजाईं. फ्राइडे फॉर फ्यूचर ने जर्मन सरकार द्वारा घोषित पर्यावरण सुरक्षा कार्यक्रम की आलोचना की है. उसने इसे विवादित बताते हुए कहा है कि यह काफी देर से लिया गया फैसला है और किसी भी तरह पर्याप्त नहीं है. जर्मनी चांसलर अंगेला मैर्केल ने आंदोलन की जनक ग्रेटा थुनबर्ग की तारीफ की और पर्यावरण सुरक्षा कदमों की नियमित समीक्षा का आश्वासन दिया.
भारत में भी पर्यावरण के लिए सांकेतिक प्रदर्शन
भारत में भी शुक्रवार को हजारों बच्चों और युवाओं ने पर्यावरण संरक्षण रैलियों में हिस्सा लिया. प्रदर्शनकारियों की शिकायत थी कि विश्व में सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करने वाला तीसरा देश होने के बावजूद भारत में पर्यावरण सुरक्षा के लिए उतनी जागरूकता नहीं है. दो बच्चों की मां भावरीन कंधार ने समाचार एजेंसी डीपीए से कहा, "रईस लोग सोचते हैं कि वे सब कुछ खरीद सकते हैं, साफ हवा भी, जबकि गरीबों की अपनी बहुत सारी समस्याएं हैं कि वे पर्यावरण की चिंता करें."
भारत इस समय जलवायु परिवर्तन की गंभीर समस्या झेल रहा है. देश में कहीं सूखा तो कहीं भारी वर्षा, कहीं पानी की कमी तो कहीं गर्मी और लू के मामले दिखते हैं. राजधानी दिल्ली में अक्सर हवा की क्वालिटी बहुत ही बुरी रहती है. जो लोग खरीद सकते हैं उन्होंने फिल्टर का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. हालांकि पिछले सालों में भारत ने पर्यावरण सुरक्षा के कई कदम उठाए हैं. वह विश्व का तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जन वाला देश होने के कारण पर्यावरण संरक्षण में अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करता है लेकिन प्रदूषण के लिए खुद को जिम्मेदार नहीं मानता.
एमजे/एनआर (एएफपी, डीपीए, ईपीडी)
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