हिलेरी-ट्रंप की बहस से तय होगा आधे अमेरिकियों का वोट
२६ सितम्बर २०१६डेमोक्रैट क्लिंटन या रिपब्लिकन ट्रंप - हाल की रॉयटर्स/इप्सोस पोल दिखाती है कि 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में अब तक अपना पसंदीदा उम्मीदवार ना चुनने वाले करीब आधे अमेरिकी वोटर इस पहली टीवी बहस के आधार पर अपना मन बना सकते हैं. इस शो के अमेरिकी टेलिविजन के इतिहास में सबसे ज्यादा देखा जाने वाला कार्यक्रम बनने की उम्मीद है.
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में इस बार इन दोनों प्रमुख उम्मीदवारों के बीच बहुत ही करीबी मुकाबला देखने को मिल रहा है. 8 नवंबर को होने वाले चुनाव के ठीक छह हफ्ते पहले हो रही यह टीवी बहस दर्शकों के मामले में डेमोक्रैट जिमी कार्टर और रिपब्लिकन रॉनल्ड रीगन की 1980 के ऐतिहासिक बहस का रिकॉर्ड तोड़ सकती है. उस बहस को करीब 8 करोड़ लोगों ने देखा था. इस बार उम्मीद करीब 10 करोड़ दर्शकों की है.
90 मिनट तक चलने वाली यह बहस न्यूयॉर्क शहर के लॉन्ग आईलैंड में स्थित हॉफस्ट्रा यूनिवर्सिटी में आयोजित होगी. दोनों उम्मीदवारों के बीच होने वाली तीन ऐसी सार्वजनिक बहसों में यह पहली है. ताजा सर्वेक्षण एक और दिलचस्प बात दिखाते हैं कि हाल के इतिहास में ट्रंप और क्लिंटन दोनों ही व्हाइट हाउस के लिए सबसे कम पसंद किए जाने वाले दो उम्मीदवार हैं.
विस्फोटक बयान देने वाले ट्रंप एक व्यवसायी हैं और पूर्व में रियलिटी टीवी स्टार रह चुके हैं. चुनावी विश्लेषकों का कहना है कि उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती खुद को देश के एक भरोसेमंद और गंभीर कमांडर इन चीफ की भूमिका के लिए योग्य दिखाना है. वहीं अब तक काफी सावधानी से आगे बढ़ रही क्लिंटन के सामने ऐसे लोगों को प्रभावित करने की चुनौती है जो उन पर भरोसा नहीं करते.
सोमवार को सामने आई रॉयटर्स/इप्सोस पोल में बताया गया है कि अमेरिका के करीब 61 फीसदी वोटर्स की उम्मीद है कि उम्मीदवार एक दूसरे के साथ सभ्य बर्ताव करेंगे. 68 की क्लिंटन और 70 के ट्रंप चुनाव अभियान में अब तक एक दूसरे पर काफी ऐसी टिप्पणियां करते आए हैं जिनके बाद बहस में ऐसा होने की संभावना कम ही है.
शुरुआत में ट्रंप से काफी आगे चल रही क्लिंटन की लोकप्रियता में हाल के महीनों में काफी कमी दर्ज हुई है. क्लिंटन के फाउंडेशन फंड के गलत इस्तेमाल और उनके निजी ईमेल इस्तेमाल करने के आरोपों की व्यापक आलोचना हुई है. वहीं प्रवासी विरोधी और नस्लभेदी टिप्पणियां करने वाले अनुभवहीन व्यक्ति के तौर पर ट्रंप भी ज्यादा समर्थन नहीं जुटा पाए हैं.
आरपी/एमजे (रॉयटर्स)