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समाज

हिंसा और अफवाहों का केंद्र दक्षिणी थाइलैंड

२८ मार्च २०१८

श्रीलंका, म्यांमार और थाइलैंड, इन तीनों देशों में बौद्ध भिक्षुओं और मुसलमानों के बीच तनाव दिख रहा है. आखिर शांति का प्रतीक समझे जाने वाले बौद्ध धर्म में कट्टरपंथ आ कहां से रहा है?

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Geschichte Myanmar Nationalistische Budhisten
तस्वीर: DW/V. hoelzl

करीब दो हफ्ते बाद श्रीलंका ने इमरजेंसी हटाई है. टूरिज्म के लिए मशहूर कैंडी शहर में हुए दंगों की वजह से देश में इमरजेंसी लगाई गई थी. चार मुसलमानों ने एक बौद्ध की जमकर पिटाई की, वह गंभीर रूप से घायल हो गया. इस मारपीट के बाद कट्टरपंथी बौद्धों ने सोशल मीडिया का सहारा लेकर अपने समर्थकों को एकजुट करना शुरू किया. बौद्ध भिक्षुओं के राष्ट्रवादी संगठन बोडू बाला सेना ने भी इसमें हिस्सा लिया.

फैलाए जा रहे संदेशों में कहा गया कि मुसलमान खाने और कपड़ों में गर्भनिरोधक मिला रहे हैं ताकि बौद्धों का सफाया किया जा सके. साजिश के तहत इस तरह अफवाहें फैलाई गईं. इसके बाद कई मस्जिदों, घरों और मुस्लिम कारोबारियों की दुकानों को निशाना बनाया गया. हिंसा में दो लोग मारे गए. हालात काबू में करने के लिए सरकार ने कर्फ्यू लगाया और 12 दिन तक सोशल मीडिया को ब्लॉक कर दिया.

श्रीलंका से हजारों किलोमीटर दूर म्यांमार में तो 2012 से मुसलमानों पर हिंसा हो रही है. इसका सबसे बड़ा खामियाजा रोहिंग्या समुदाय को भुगतना पड़ा. 2017 के बाद लाखों रोहिंग्याओं को म्यांमार छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा. म्यांमार में भी कट्टरपंथी बौद्धों की भूमिका केंद्र में रही.

म्यांमार के पड़ोसी देश थाइलैंड में भी हालात कुछ ऐसे ही हैं. 2001 से दक्षिणी थाइलैंड में भी हिंसा हो रही हैं. थाई अखबार बैंकॉक पोस्ट 2004 से 2015 के बीच मुस्लिम बहुल प्रांत में कम से कम 6,500 लोग मारे जा चुके हैं. श्रीलंका और म्यांमार के उलट थाइलैंड में कई संगठित इस्लामिक उग्रवादी संगठन सक्रिय हैं. दक्षिणी थाइलैंड में वह एक आजाद इस्लामिक खिलाफत वाला देश बनाना चाहते हैं. थाई सरकार इन गुटों के साथ सख्ती से पेश आ रही हैं. विवाद में शामिल हर पक्ष पर ह्यूमन राइट्स वॉच ने मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लगाए हैं. प्रांत में हो रही हिंसा के 90 फीसदी शिकार आम लोग बन रहे हैं.

थाइलैंड में बौद्ध भिक्षु विवाद में शामिल हैं. मठों में रहने वाले कुछ भिक्षुओं को वहां सोल्जर मोंक भी कहा जाता है. अक्टूबर 2015 में मशहूर थाई संत फरा महा अपिचत ने फेसबुक पर लिखा कि विवाद में मरने वाले एक एक बौद्ध भिक्षु के बदले एक मस्जिद जलाई जानी चाहिए. इस स्टेटस के बाद अपिचत को मठ समुदाय से बर्खास्त कर दिया गया.

लेकिन एक बात साफ है कि दक्षिणी थाइलैंड के हालात से म्यांमार और श्रीलंका के भिक्षु परेशान होते हैं. वहां से निकलने वाली सूचनाएं और अफवाहें दूसरे बौद्ध मठों और समुदायों तक पहुंचते पहुंचते सच्चाई खो देती हैं, लेकिन भड़काऊपन बचा रहता है. दो करोड़ की आबादी वाले श्रीलंका में 10 फीसदी मुसलमान रहते हैं. म्यांमार में मुस्लिम आबादी चार फीसदी है और थाइलैंड में पांच फीसदी. पिछले 40 सालों में इन तीनों देशों में धार्मिक अनुपात में कोई बड़ा अंतर नहीं आया है, लेकिन इसके बावजूद इस्लाम के बढ़ते प्रभाव की अफवाह फैलाकर लोगों को भ्रमित किया जाता है.

ऐसे में सरकारों की क्या भूमिका होनी चाहिए? असल में इसका उत्तर बड़ा उलझा हुआ है. लोकतांत्रिक देशों में सत्ता सौंपने में बहुमत की बड़ी भागीदारी होती है और भिक्षु इस बहुमत को प्रभावित करने की ताकत रखते हैं. लोग कहीं न कहीं बौद्ध भिक्षुओं पर भरोसा करते हैं, उनकी बात मानते हैं. इस्लाम के प्रति पश्चिमी देशों में बढ़ते संदेह का असर श्रीलंका, म्यांमार और थाइलैंड तक पहुंचा है. यह संदेह भी आग में घी का काम करता है.

रॉडियॉन एबिगहाउजन