हिंदी फिल्मों में हिट पाकिस्तानी गायक
२२ अप्रैल २०१३पाकिस्तानी संगीतकार और गायक अपने देश के साथ ही भारत और हिंदी सिनेमा की भी पसंद हैं. इनमें सबसे पहले तो विख्यात गायक गुलाम अली का ही नाम आता है जिन्होंने 1980 के दशक में निकाह के लिए 'चुपके चुपके रात दिन' गाकर हलचल मचा दी थी. पार्श्वगायन से दूर रहने वाले गुलाम अली पाकिस्तान के उन शुरुआती कलाकारों में हैं जिन्होंने बॉलीवुड में बड़ा नाम कमाया. हालांकि गुलाम अली से पहले गजलों की दुनिया के शहंशाह मेहदी हसन भारत के घर घर में अपनी जगह बना चुके थे. मेहदी हसन फिल्मी गानों से ज्यादा कंसर्ट के लिए विख्यात रहे है. उन्होंने कई दूसरे गजल गायकों को प्रेरणा दी और बॉलीवुड के लिए भी गाया. 1990 के दशक में बॉलीवुड पर सूफी गायक नुसरत अली खान का जादू चला जो कव्वालियों के लिए विख्यात थे.
अलग अंदाज
मेहदी हसन और गुलाम अली को उनकी बेमिसाल गायकी की वजह से अनोखा माना जाता है. दोनों ने भारत और बॉलीवुड को खूब झुमाया. इन दोनों की फिल्मों में बहुत ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी. हालांकि नए गायकों की जो पौध इन दिनों बॉलीवुड में लहलहा रही है उनके बारे में यही बात नहीं कही जा सकती. इनके लिए तो बॉलीवुड एक लुभावने भविष्य का वादा है. पाकिस्तानी अखबार डॉन के सांस्कृतिक आलोचक पीरजादा सलमान ने डीडब्ल्यू से कहा, "पहले के बॉलीवुड संगीतकार भारतीय शास्त्रीय संगीत में पारंगत थे और उनकी रचनाओं में रागों की बहुत अहम भूमिका थी. यही वजह है कि वो उन पाकिस्तानी गायकों का सम्मान करते थे जिनकी शास्त्रीय संगीत पर पकड़ थी."
सलमान का मानना है कि आज कल बॉलीवुड में व्यावसायिकता इतनी बढ़ गई है कि "अप्रशिक्षित" पाकिस्तानी गायक भी वहां पहुंच जा रहे हैं. सलमान ने कहा, "भारतीय राहत फतेह अली खान और आतिफ असलम जैसे गायकों को पसंद करते हैं क्योंकि उनकी आवाज भारत के गायकों से अलग है. आतिफ असलम की गायकी में बहुत कमियां हैं लेकिन अपनी अलग आवाज की वजह से वो पसंद किए जाते हैं." इसके साथ ही सलमान ने यह भी कहा कि भारत में बहुत लोकप्रिय गायक वहां की आनिवार्य जरूरत नहीं हैं. उनके मुताबिक, "जब ये लोग एक तरह से ही गाने लगेंगे, भारतीय संगीतकार उन्हें काम देना बंद कर देंगे."
भारतीय फिल्म आलोचक अजय ब्रह्मात्मज मानते हैं कि पाकिस्तानी गायक भारतीय गायकों की तुलना में ज्यादा प्रयोगवादी हैं और इसी वजह से उनकी भारत में पूछ है. ब्रह्मात्मज ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा, "मैंने एक बार आतिफ असलम से बात की है. उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी गायकों को अपने देश में सफल होने के लिए कुछ अलग करना पड़ता है, क्योंकि एक तरह से संगीत उद्योग वहां है ही नहीं."
राजनीति और संगीत
पाकिस्तानी कलाकारों का भारत में तो बाहें फैला कर स्वागत होता है लेकिन भारतीय कलाकारों के साथ पाकिस्तान में ऐसा नहीं है. आलोचक मानते हैं कि भारतीय संगीतकार आने वाले दौर में पाकिस्तान में ज्यादा कार्यक्रम करेंगे, लेकिन व्यावसायिक और राजनीतिक वजहों से इसके बड़े पैमाने पर होने की उम्मीद नहीं है. ब्रह्मात्मज ने कहा, "पाकिस्तान का फिल्म उद्योग एक तरह से मरा पड़ा है. वहां संगीत की बहुत संभावना भी नहीं दिखती. यही वजह है कि आप लता मंगेशकर के पाकिस्तान जाकर कार्यक्रम देने की उम्मीद नहीं कर सकते. जगजीत सिंह को पसंद करने वालों का पाकिस्तान में भारी जमावड़ा होने के बाद भी उन्हें वहां बड़ा मंच नहीं मिला." भारत में कुछ लोगों की तो यह भी राय है कि सिनेमा बनाने वालों को पाकिस्तानी गायकों को मौका नहीं देना चाहिए. उनका दावा है कि इससे भारतीय गायक हतोत्साहित होते हैं. हालांकि अजय ब्रह्मात्मज इससे सहमत नहीं उनका कहना है, "बॉलीवुड में कुछ लोग है जो हुनर की कद्र नहीं करते, जो भी पाकिस्तान से आए वह सिर्फ उसका विरोध करना चाहते हैं."
ब्रह्मात्मज की तरह ही सलमान भी मानते हैं कि पाकिस्तानी गायकों के लिए बॉलीवुड के दरवाजे बंद करना गलत होगा. उन्होंने कहा, "भारत और पाकिस्तान का संगीत एक सा है. पिछले साल जब भारत के बांसुरीवादक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया पाकिस्तान आए तो उन्होंने अपने संगीत से सबको अभिभूत कर दिया. हर किसी को वो पसंद आए. इसी तरह मेहदी हसन और लता मंगेशकर भी भारतीय पाकिस्तानी संगीत विरासत का हिस्सा हैं."
सीमा पर तनाव के बाद भी भारत पाकिस्तान को जो कुछ चीजें जोड़ कर रखती हैं उनमें संगीत भी है और सलमान का कहना है कि किसी भी हाल में राजनीति इसे बेसुरा न बनाए यह बहुत जरूरी है.
रिपोर्टः शामिल शम्स/एनआर
संपादनः महेश झा