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'हरीशचंद्र ची फ़ैक्ट्री' ऑस्कर के लिए नामांकित

२२ सितम्बर २००९

मराठी फिल्म हरीशचंद्र ची फ़ैक्ट्री भारत से ऑस्कर अवॉर्ड के लिए नामांकित हुई है. भारत से आधिकारिक एंट्री के लिए उसने बॉलिवुड फिल्मों न्यू यॉर्क औऱ दिल्ली 6 को पीछे छोड़ दिया. इसका निर्देशन परेश मोकाशी ने किया है

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ऑस्कर से भारत के लिए नामांकन

मराठी फ़िल्म 'हरिशचन्द्र ची फ़ैक्ट्री' भारत की पहली फिल्म के निर्माण पर आधारित है. इस फ़िल्म की कहानी भारतीय फिल्मों के पितामह कहे जाने वाले दादा साहब फाल्के और उनकी फिल्म राजा हरीशचंद्र के इर्द गिर्द घूमती है. 1913 में भारत की पहली फ़िल्म राजा हरीशचंद्र के निर्माण में दादा साहब के संघर्ष को ही यह फिल्म दिखाती है.

Camera Obscura
तस्वीर: AP

"ये बहुत ही आश्चर्य की बात है कि दादा साहब फाल्के के नाम पर देश में फिल्म के लिये सबसे बड़ा पुरस्कार दिया जाता है लेकिन किसी ने इस बारे में नहीं सोचा की देश की पहली फिल्म राजा हरीशचंद्र फाल्के साहब ने कैसे बनाई होगी." फिल्म के कार्यकारी निर्माता श्रीरंग गोडबोले ने कहा.

हरीशचंद्र की फैक्ट्री

'राजा हरीशचंद्र' बनाने के लिए उस ज़माने में दादा साहब ने 35 हज़ार रुपये ख़र्च किये थे. मूवी कैमरा लाने के लिए वह लंदन गए, जिससे उन्होंने भारत की सबसे पहली फिल्म बनाई. इस फिल्म का नाम हरीशचंद्र की फ़ैक्ट्री क्यों रखा है इसके बारे में गोडबोले ने बताया कि चूंकि उस समय फ़िल्मों या नाटकों में काम करना अच्छा नहीं माना जाता था इसलिए जो भी लोग इस फ़िल्म से जुड़े हुए थे उन्हें दादा साहब ने सलाह दी कि वे लोगों को बताएं कि वे एक हरीशचंद्र की फैक्ट्री में काम करते हैं.


भारत की पहली मूक फिल्म

1913 में बनी 'राजा हरीशचंद्र' भारत की पहली मूक फिल्म थी. ये कहानी एक ऐसे राजा पर आधारित है जो हमेशा, सत्य के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध थे. जिनकी कहानी हर घर में बच्चों को सुनाई जाती रही है, ये सिखाने के लिए कि सदा सत्य का पालन करना चाहिये.

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भारत से लगान भी ऑस्कर में भेजी गई थीतस्वीर: AP

पुणे में शूटिंग

हरीशचंद्र ची फ़ैक्ट्री फ़िल्म की शूटिंग की शुरुआत पुणे में की गई. इसके लिए दादा साहब फाल्के के जीवन और उनकी इस फिल्म के बनने की कहानी पर व्यापक शोध किया गया और मूक फिल्मों के इतिहास पर हर दृष्टिकोण से नज़र डाली गई. दादा साहब फाल्के की लंदन यात्रा के बारे में श्रीरंग गोडबोले ने बताया कि दादा साहब ने लंदन में उस कंपनी का पता लगाया जो विलियम्स नाम का मूवी कैमरा बेचती थी. इसे ख़रीदने के बाद उन्होंने लंदन में तकनीकी प्रशिक्षण भी लिया.

फिल्म में फाल्के साहब की लंदन यात्रा के दौरान यूरोप के तात्कालिक सामाजिक परिवेश को ठीक उसी रूप में दिखाना हमारे लिए एक बड़ी चुनौती थी. अपनी अलग कहानी के बावजूद हरीशचंद्र ची फ़ैक्ट्री के बनने के बाद मीडिया में उसकी चर्चा नहीं हुई. हालांकि ऑस्कर के लिए नामांकित होने के बाद क्षेत्रीय निर्देशकों में भारी उत्साह है.

रिपोर्टः पीटीआई/ आभा मोंढे

संपादनः एस गौड़