1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

हमारी पंसद और नापसंद का विज्ञान

ओंकार सिंह जनौटी१५ जुलाई २०१६

हम कब किससे बात करेंगे, किससे नहीं मिलेंगे, यह समझना बहुत मुश्किल है. लेकिन वैज्ञानिकों ने इंसान के सामाजिक व्यवहार के बारे में एक जबरदस्त खोज की है. इसके तार हजारों साल पुराने आदिमानवों से जुड़े हैं.

https://p.dw.com/p/1JPKU
तस्वीर: Colourbox/lev dolgachov

यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया हेल्थ सिस्टम के शोध में कई चौंकाने वाली जानकारियां सामने आई हैं. अब तक यह समझा जाता था कि हमारा प्रतिरोधी तंत्र सिर्फ बीमारियों से लड़ता है और शरीर की हिफाजत करता है. लेकिन नई खोज कहती है कि इम्यून सिस्टम की भूमिका सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है.

यूनिवर्सिटी के न्यूरोसाइंस विभाग के प्रमुथ जोनाथन किपनिस के मुताबिक प्रतिरोधी तंत्र हमारा सामाजिक व्यवहार भी तय करता है. किपनिस कहते हैं, "अब तक माना जाता था कि मस्तिष्क और अनुकूल होने वाला प्रतिरोधी तंत्र अलग अलग हैं, दिमाग में होने वाली इम्यून एक्टिविटी को पैथोलॉजी माना जाता था. लेकिन अब हम ये दिखा रहे हैं कि ये दोनों बहुत ही करीबी से एक दूसरे के साथ काम करते हैं, इतना ही नहीं क्रमिक विकास के दौरान हुए बदलावों का असर भी हमारे व्यवहार में दिखता है और इम्यून सिस्टम इसके प्रति रिस्पॉन्ड करता है."

(देखिये: हमारे गहरे मनोविज्ञान में छुपी बातें)

वैज्ञानिक खुद भी हैरान हैं. किपनिस कहते हैं, "ये अंचभित करने वाला है, लेकिन शायद हमारे भीतर बेहद सूक्ष्म स्तर पर दो पौराणिक ताकतें लड़ रही हैं: पैथोजीन्स और इम्यून सिस्टम. हमारे व्यक्तित्व के एक हिस्से को शायद इम्यून सिस्टम निर्देश देता है."

इसे समझाते हुए शोध प्रमुख जोनाथन किपनस कहते हैं, "इम्यून मॉलीक्यूल असल में तय करते हैं कि हमारा दिमाग कैसे काम करेगा. अब यह देखना है कि हमारे मस्तिष्क के विकास और उसके काम काज में इम्यून सिस्टम की भूमिका कितनी व्यापक है."

शोधकर्ताओं के मुताबिक पौराणिक काल में जब इंसान खानाबदोश था, उस वक्त सामाजिक व्यवहार बेहद अहम था. सामाजिक व्यवहार के आधार पर ही कबीले में जगह, हैसियत व जिंदा बचने की संभावनाएं बनती और बिगड़ती थी. इंसान ने ऐसा हजारों साल तक किया. वैज्ञानिकों को लगता है कि यही गुण आज भी हमारे भीतर हैं. इम्यून सिस्टम को जब खतरा महसूस होता है तो वह सामाजिक व्यवहार पर असर डालता है ताकि जान बचाई जा सके. माहौल और सामाजिक ताना बाना बदलने के बावजूद यह हमारे भीतर बरकरार है. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस खोज की मदद से तनाव, अवसाद और ऑटिज्म जैसे रोगों का इलाज किया जा सकेगा.