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हमले के बाद पेशावर में भारी प्रदर्शन

२३ सितम्बर २०१३

पाकिस्तान के एक चर्च पर हुए दोहरे आत्मघाती हमले में अब तक 81 लोगों की जान चुकी है. बेहतर सुरक्षा की मांग के साथ पूरे देश में ईसाई समुदाय विरोध प्रदर्शन करने निकला है.

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तस्वीर: Reuters

उत्तर पश्चिमी शहर पेशावर के ऑल सेंट्स चर्च पर रविवार की प्रार्थना के तुरंत बाद हुआ हमला, पाकिस्तान के अल्पसंख्यक ईसाई समुदाय के खिलाफ अब तक का सबसे घातक हमला है. पेशावर के लेडी रीडिंग अस्पताल के डॉक्टर अरशद जावेद ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि रात भर में मरने वालों की तादाद बढ़ कर 81 हो गई है जिसमें 37 महिलाएं हैं. कुल 131 लोग घायल हुए हैं.

Pakistan Peshawar Anschlag auf christliche Kirche
तस्वीर: Reuters

इस्लामाबाद, लाहौर, कराची, पेशावर और फैसलाबाद समेत देश के सभी प्रमुख शहरों में ईसाई समुदाय के लोगों ने प्रदर्शन किया है. इस्लामाबाद में 600 से ज्यादा प्रदर्शनकारियों ने वहां के प्रमुख हाईवे को बंद रखा. ऑल पाकिस्तान माइनॉरिटी अलायंस के अध्यक्ष पॉल भट्टी का कहना है, "हम साफ तौर पर कह रहे हैं कि यह आतंकवाद की घटना थी. सिर्फ ईसाई समुदाय ही आतंक का निशाना नहीं हैं. पूरा पाकिस्तान ही आतंकवाद से पीड़ित है. आतंकवादी हर किसी को निशाना बना रहे हैं, वे जानवर हैं. वक्त आ गया है कि पाकिस्तान उनके खिलाफ कदम उठाए." भट्टी ने यह भी बताया कि सभी ईसाई स्कूल तीन दिन के शोक के तहत बंद रहेंगे.

पेशावर के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी नजीब उर रहमान ने कहा कि चर्चों के आस पास सुरक्षा बढ़ाई जाएगी लेकिन हमलों में बच गए लोग आगे और हिंसा की आशंका से डरे हुए हैं. कई चर्चों और दूसरे ईसाई संस्थानों में सुरक्षा के लिए पुलिस को तैनात किया गया है लेकिन अल्पसंख्यक समुदाय के लोग इसे नाकाफी बता रहे हैं. हमले में घायल दानिश युनूस ने कहा, "मुस्लिमों के साथ हमारे अच्छे संबंध हैं, धमाके से पहले कोई तनाव नहीं था लेकिन हमें डर है कि यह ईसाइयों के खिलाफ हिंसा की शुरूआत है."

प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने इन हमलों को "क्रूर" कहते हुए इनकी कड़ी निंदा की है और कहा कि यह इस्लाम के सिद्धांत के खिलाफ है. पोप फ्रांसिस ने भी हिंसा के खिलाफ आवाज उठाई है और इन्हें "नफरत और जंग का बुरा विकल्प" कहा है.

मुस्लिम बहुल पाकिस्तान में आमतौर पर गरीबी और दुर्दशा का शिकार ईसाई समुदाय भेदभाव भी झेल रहा है लेकिन उनके खिलाफ बम हमले जैसी घटनाएं नहीं होती हैं. रविवार को 400 से ज्यादा श्रद्धालु प्रार्थना के बाद एक दूसरे से मिल रहे थे उसी दौरान हमलावरों ने धमाका किया. कुछ ही पलों में चर्च खून, बाइबिल के बिखरे पन्नों और चीख पुकार से भर गया. भरे हुए चर्च में ज्यादा से ज्यादा नुकसान हो इसके लिए बम में बॉल बेयरिंग के छर्रे जम कर भरे गए थे जो हमले के बाद कई दीवारों में भी धंसे नजर आए. पाकिस्तान मे जातीय हिंसा प्रमुख रूप से शिया और सुन्नी समुदाय के बीच ही रहती है लेकिन रविवार की हिंसा ने ईसाई समुदाय के भी इस लपेटे में आने की आशंका मजबूत कर दी है.

पाकिस्तान में तालिबान गुटों के एक संगठन जुनूद उल हिफ्सा ने इस हमले की जिम्मेदारी ली है. उल हिफ्सा ने इसे अफगान सीमा पर देश के कबायली इलाकों में तालिबान और अल कायदा से जुड़े लोगों पर अमेरिकी ड्रोन हमलों के खिलाफ बदले की कार्रवाई कहा है. संगठन के प्रवक्ता अहमद मारवात ने समाचार एजेंसी एएफपी से टेलीफोन पर कहा, "हमने पेशावर के चर्च पर आत्मघाती हमला किया है. हम विदेशी और गैर मुस्लिम लोगों पर तब तक हमले करते रहेंगे जब तक कि ड्रोन हमले रोक नहीं दिए जाते."

Krankenhaus Behandlung von Kindern in Peshawar Pakistan
तस्वीर: DW/D. Baber

प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने दो हफ्ते पहले तालिबान के साथ शांतिवार्ता की पेशकश की और देश के प्रमुख राजनीतिक दलों का भी समर्थन हासिल कर लिया लिया. हालांकि इसके एक हफ्ते बाद ही उत्तर पश्चिम में सेना के एक जनरल की हत्या और चर्च पर हमले के बाद यह सवाल उठ रहा है कि क्या बातचीत सही रास्ता है.

देश की आबादी में महज दो फीसदी हिस्सा ईसाइयों का है. उत्तर पश्चिमी प्रांत खैबर पख्तूनख्वाह के दो लाख ईसाइयों में से 70 हजार पेशावर में रहते हैं. ईसाई समुदाय लगातार भेदभाव की शिकायत कर रहा है.

एनआर/एएम (एएफपी, एपी)

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