स्वीडन को क्या डर सता रहा है?
२२ मई २०१८इन पर्चों में रसद से लेकर पानी तक की व्यवस्था करने को लेकर सुझाव शामिल हैं. लेकिन चौंकाने वाली बात ये है कि स्वी़डन पिछले 200 सालों में किसी भी तरह के सैन्य विवाद में नहीं पड़ा है. तो फिर क्यों खुशहाली और शिक्षा के क्षेत्र में जगह बनाने के चलते खबरों में आने वाला यह देश अब संकट और युद्ध की बातों के चलते सुर्खियों में आया है. जानकारों के मुताबिक स्वीडन को यह चिंता बाल्टिक सागर में रूस के बढ़ते प्रभाव के चलते सता रही है.
पर्चे का नाम है, "इफ क्राइसिस और वार कम्स." 20 पन्नों वाली इस बुकलेट में बताया गया है कि कैसे बम शेल्टर का पता करें, कैसे साफ पानी तक पहुंचें, आपातकालीन स्थिति में रसद स्टॉक करें और कैसे प्रचार वाली खबरों में से असली समाचार की पहचान करें. शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद यह पहला मौका है जब स्वीडन ने इस तरह का जन अभियान चलाया है.
स्वीडिश सिविल कंटेंजेंसी एजेंसी ने मीडिया से बातचीत में कहा, "स्वीडन की गिनती भले ही दुनिया के सुरक्षित देशों में होती हो लेकिन फिर भी खतरा मौजूद है. इसलिए जरूरी है कि लोगों को खतरों के बारे में जानकारी रहे, ताकि अगर कभी कुछ गंभीर घटे तो हम तैयार रहें." मार्च 2014 में रूस ने यूक्रेन के क्रीमिया इलाके को अपने क्षेत्र में मिला लिया था. तभी से रूस को लेकर स्वीडन का संशय बढ़ा है.
स्वीडन ने रूस पर बार-बार एयरस्पेस के उल्लघंन का आरोप लगाया है. एक मौके पर स्वीडिश प्रशासन ने स्टॉकहोम द्वीपसमूह के पास एक अज्ञात पनडुब्बी देखे जाने की भी बात कही थी. 1814 के बाद स्वीडन अब तक किसी भी तरह के सैन्य विवाद में नहीं उलझा है. लेकिन 2016 में स्वीडिश सरकार ने देश का सैन्य खर्च बढ़ाने की घोषणा की थी. यह भी माना जाता है कि द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान स्वीडन तटस्थ रहा था लेकिन कुछ जानकार इस पर सवाल उठाते हैं.
द्वितीय विश्वयुद्ध का समय
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान आधिकारिक रूप से स्वीडन ने "नॉन बेलिगरेंस" की नीति अपनाने की घोषणा की थी. इस नीति का मतलब था कि न तो स्वीडन मित्र राष्ट्रों को सहयोग देगा और न ही धुरी शक्तियों के साथ जाएगा. लेकिन फिनलैंड के साथ स्वीडन की नजदीकी इस पर प्रश्न चिन्ह लगाती है. फिनलैंड उस वक्त युद्ध में जर्मनी का सहयोग कर रहा था.
स्वीडिश पत्रकार आर्ने रुथ अपनी किताब "थर्ड राइष" में लिखते हैं कि युद्ध के दौरान स्वीडन जर्मनी को लौह अयस्क की आपूर्ति करता था. जो जर्मनी के लिए युद्ध जारी रखने में अहम थी. इतना ही नहीं स्वीडन ने फिनलैंड के शहरों में मानवीय मदद भी भेजी थी. वहीं मित्र देशों की स्वीडन ने सैन्य खुफिया जानकारी हासिल करने में मदद की थी. साथ ही मित्र देशों की सेनाओं को अपना एयरबेस इस्तेमाल करने की अनुमति भी दी थी.
शीत युद्ध में रुख
युद्ध के बाद स्वीडन के लिए तटस्थ रहना आसान नहीं था. फिर भी स्वीडन न तो नाटो में शामिल हुआ और न ही वारसा संधि में. लेकिन स्वीडन का झुकाव अमेरिका की तरफ बना रहा. 2017 के पियू रिसर्च सर्वे बताते हैं कि स्वीडन में 47 फीसदी लोग नाटो की सदस्यता के लिए हामी भरते हैं तो वहीं 39 फीसदी इसके विरोध में हैं.
स्वीडन का एक बड़ा तबका यह भी मानता है कि देश को 200 साल की तटस्थता छोड़कर नाटो में शामिल हो जाना चाहिए. अगर वह ऐसा करता है तो रूस की ओर से होने वाला कोई भी हमला अमेरिका और नाटो के अन्य 28 सदस्यों पर हमला माना जाएगा. स्वीडन के अति राष्ट्रवादी राजनीतिक दल स्वीडन डेमोक्रेट्स को छोड़कर अमूमन सभी राजनीतिक पार्टियां नाटो में शामिल होने के पक्ष में नजर आती हैं.
एए/एमजे (डीपीए)