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"स्वाभाविक रहे यूरोप में शांति"

Hille, Peter२१ मई २०१४

जर्मन विदेश मंत्री फ्रांक वाल्टर श्टाइनमायर ने कहा है कि जर्मनी विदेश नीति का लक्ष्य यूरोप में शांति बनाए रखना है. डॉयचे वेले के साथ इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि यूरोप की सुरक्षा संरचना पर फिर से सोचना होगा.

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तस्वीर: DW

पेश है डॉयचे वेले के डागमार एंगेल के साथ जर्मनी के विदेश मंत्री फ्रांक वाल्टर श्टाइनमायर की बातचीत.

डागमार एंगेलः रविवार को यूक्रेन में नया राष्ट्रपति चुना जाएगा. क्या आप आश्वस्त हैं?

फ्रांक वाल्टर श्टाइनमायर: हर हाल में हमने उसके लिए तैयारी की है. जब मैं 'हम' बोल रहा हूं तो मेरा मतलब सिर्फ जर्मनों से नहीं है, बल्कि बहुत से दूसरों के साथ मिलकर. इस चुनाव को संभव बनाने में यूरोपीय सुरक्षा और सहयोग संगठन की बड़ी भूमिका है. मुझे उम्मीद है अधिकतर यूक्रेनवासियों को, पूर्वी यूक्रेन में भी, मतदान में भाग लेने का मौका मिलेगा. और मुझे उम्मीद है कि इस हफ्ते डोनेस्क में एक और गोल मेज सम्मेलन होगा ताकि वहां यह समझ बन सके कि चुनाव ही नई वैधता कायम कर सकता है. और अंत में एक राष्ट्रपति चुना जाए, जिसे देश के पूरब में भी मान्यता मिले.

क्या यह सचमुच एक मोड़ साबित हो सकता है?

मैं कहता हूं कि यह हर हाल में सुई की छेद जैसा है. हम फिलहाल ऐसी हालत में हैं कि कीव में एक नई सरकार, एक नया नेतृत्व है, जिसका चुनाव संसद ने किया है, जिसकी वैधता पर पूर्वी यूक्रेन में सवाल उठाए जा रहे हैं और खास कर आलोचकों से हम हमेशा कहते हैं, यदि आप आलोचना कर रहे हो, तो आपकी इसमें बड़ी दिलचस्पी होनी चाहिए कि राष्ट्रपति के चुनाव के साथ एक नई कानूनी प्रक्रिया की शुरुआत हो, जो तब और कदमों के जरिए संवैधानिक सुधारों और संभवतः इस साल के दौरान संसदीय चुनाव के साथ जारी रखा जा सके.

Deutschland Deutsche Welle Review 2014 DW-Interview mit Frank Walter Steinmeier
डॉयचे वेले के साथ इंटरव्यू में श्टाइनमायरतस्वीर: DW

क्या कोई लक्ष्मण रेखा जैसा कोई विचार है, जब अगली बार फिर से प्रतिबंधों की धमकी दी जा सकती है?

इसका पता हमें रोजमर्रा में चलेगा. फिलहाल मैं उसके बारे में नियमित रूप से नहीं सोचता. मैं इस पर ध्यान केंद्रित कर रहा हूं कि रविवार को ये चुनाव संभव हों और उसमें अधिक से अधिक लोग भाग लें. और तब समस्याओं का हल नहीं हो जाएगा, और समस्याएं हमारे सामने होंगी, खास कर राजनीतिक, जैसा कि मैंने बताया है, नए संविधान का निर्माण, जब इस बात पर बहस और शायद झगड़ा होगा कि भविष्य में देश का नेतृत्व कितना विकेंद्रित होगा. भावी संविधान में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के बीच शक्ति संतुलन कैसा होगा. लेकिन इससे भी बड़ी चुनौती देश की आर्थिक स्थिरता लाने की होगी, भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष से लेकर एक नए भ्रष्टाचार विरोधी कानून को पास करने और जो उससे भी महत्वपूर्ण है, एक स्वतंत्र जांच ब्यूरो बनाने तक - जो किसी सरकार पर निर्भर न हो, एकल व्यक्तियों पर तो कतई नहीं ताकि यूक्रेन की कई बुराइयों के जड़ को मिटाया जा सके. इसके अलावा आर्थिक मदद पहुंचाना होगा, उन्हें बेहतर राजनीति में बदलना होगा. और ये सब यूक्रेनियों के लिए भी बड़ी चुनौती है. लेकिन साथ ही अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए भी. हर हाल में उन लोगों के लिए जिनकी दिलचस्पी इस बात में है कि यूक्रेन में स्थिरता आए.

आपने कहा कि पिछले हफ्तों और महीनों में आप हर दिन 24 घंटे इस विवाद में उलझे रहे हैं. आपने यहां वहां का दौरा किया है, हर किसी के साथ आपकी तस्वीर देखी जा सकती है, आप लगातार बोल रहे हैं. साथ ही दबाव बढ़ रहा है जो टकराव के तर्क पर आधारित है, जो कहता है, हमें अपना रक्षा बजट बढ़ाना चाहिए, हमें शक्ति संतुलन कायम करना चाहिए. आप इसके साथ कैसे पेश आते हैं?

मैं इसके पक्ष में हूं कि हम उन साधनों का इस्तेमाल करें, जो सचमुच हमारे पास हैं. लेकिन विदेश नीति और कूटनीति की गलतियों में यह भी शामिल है कि हम उसे बढ़ा कर आंकते हैं. मैं समझता हूं कि अंत में यह होगा कि यदि हमें यूक्रेन के मौजूदा संकट को निबटाने में कामयाबी मिलती है तो लोग आसानी से 80 के दशक में वापस नहीं लौट पाएंगे और कह पाएंगे कि यूक्रेन के अनुभव से हमें कसे हुए बजट के बावजूद थोड़ा शस्त्रीकरण करना चाहिए. आगे पढ़िए..

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क्या हम 2009 की स्थिति में लौट पाएंगे, संकट के पहले की स्थिति में ?

नहीं, पुरानी परिस्थितियों में वापस नहीं जा सकते. यही मैं कहना चाहता हूं. न तो 2009 में और न ही 80 के दशक में. दुनिया गुटों के टकराव वाली नहीं है. और मैं समझता हूं कि वे भी जो शीतयुद्ध शुरू करना चाहते हैं, देख रहे हैं कि वे औजार काम नहीं कर रहे हैं. हमें कुशलता से पेश आना होगा, भले ही मौजूदा यूक्रेन संकट दूर हो जाता है और यूरोप की सुरक्षा संरचना के बारे में फिर से सोचना होगा. और ये मेरी राय में उनसे बड़े उत्तर हैं, जो इस समय दिए जा रहे हैं.

इसका मतलब है कि संकट के समाधान के बाद का यूरोप आज के मुकाबले अलग दिखेगा?

एकदम से अलग दिखेगा, मैं नहीं कह सकता. लेकिन हर हाल में हमें नए साधनों के साथ इस बात की चिंता करनी होगी कि पिछले दशकों में युवा पीढ़ी ने जो अनुभव किया है कि शांति स्वाभाविक चीज है, वह भविष्य में भी स्वाभाविक बात रहे.

Deutschland Deutsche Welle Review 2014 DW-Interview mit Frank Walter Steinmeier
इंटरव्यू के दौरान विदेश मंत्री श्टाइनमायरतस्वीर: DW

क्या जर्मन विदेश नीति ने अपने सारे उपकरणों की नुमाइश कर दी है?

मैं नहीं जानता. स्वाभाविक रूप से औजारों के बक्से में ऐसी चीजें भी हैं, जो फिलहाल मैं एकदम नहीं चाहता. मेरा मतलब है कि जो इस यूक्रेन संकट में सैनिक समाधानों से खेलते हैं, वे न सिर्फ गलत हैं बल्कि मैं इसे गैर जिम्मेदाराना भी मानता हूं. और यह औजारों के बक्से का वह हिस्सा है, जिसे मैं इस समय नहीं दिखाना चाहता हूं.

हम इसे थोड़ा व्यापक बनाते हैं. जर्मन विदेश नीति का लक्ष्य क्या है?

जर्मन विदेश नीति का लक्ष्य है कि हमारे ऊपर जिम्मेदारी का एक हिस्सा है, जिसे हम वहन भी कर सकते हैं. और वर्तमान बहस के मद्देनजर, जो मैं यहां पूरी दुनिया के राजकीय मेहमानों के साथ ही नहीं करता हूं, बल्कि जिसे हम अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में भी देखते हैं, कि जर्मनी से उम्मीदें साल दर साल बढ़ रही हैं. इसकी वजह यह है कि हम दूसरों के मुकाबले आर्थिक रूप से अपेक्षाकृत मजबूत हैं. इसका इस बात से लेना देना है कि हमने अपने संकट पर काबू पाया है, अपने मुल्क में, इसे देखा गया है और इसका इस बात से लेना देना है कि जर्मनी अपेक्षाकृत संतुलित विदेश नीति का पक्षधर है, जो बड़े हंगामे में भरोसा नहीं करता बल्कि संकट का समाधान खुले विश्लेषण के साथ करने और उन्हें खाने में रखने और खुद को बंद गली में ले जाने के बदले समाधान ढूंढने में विश्वास रखता है.

यानि बाहर से हमसे उम्मीद की जा रही है, और हस्तक्षेप की. और यदि जर्मनों से पूछा जाए तो दो तिहाई चाहते हैं कि अधिक बर्दाश्त किया जाए.

हां, हमने हाल ही में यह टेस्ट किया है. हमने अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों से पूछा कि आप जर्मनी और जर्मन विदेश नीति से क्या चाहते हैं? सचमुच उनकी बहुत सारी उम्मीदें हैं, मसलन जर्मनी को यूरोप में ज्यादा नेतृत्व देना चाहिए. या उसे अपनी आवाज जोर से उठानी चाहिए. या उसे विश्व के मौजूदा संकटों में अधिक सक्रिय होना चाहिए. और यह एक और सर्वे के विपरीत है जिसे हमने कराया है, कि जर्मन और जर्मन जनमत की विदेश नीति से क्या अपेक्षाएं हैं? तब एक अलग सी दूसरी तस्वीर उभरती है. करीब 40 फीसदी कहते हैं, हां ज्यादा सक्रियता संभव है, शायद जरूरी भी. लेकिन 60 फीसदी का बहुमत कहता है: बेहतर हो कि 'नहीं' और जहां तक संभव है बाहर रहो.

इसके साथ आप कैसे पेश आते हैं? क्या अपनी ही जनता के खिलाफ विदेश नीति की जा सकती है?
कतई नहीं. लेकिन इसी में मैं समझता हूं कि एक शैक्षणिक जिम्मेदारी भी है, जिसका हमें सामना करना होगा. यह उससे अलग नहीं है जो राजनीति के दूसरे हिस्सों में भी होता है. लोगों को समझाने की कोशिश की जाए और दिखाने की कि एक ओर यह वह है जो हमसे उम्मीद की जा रही है, जो हम जरूरत पड़ने पर कर भी सकते हैं और उन लोगों को जो कहते हैं कि हमें दूर रहना चाहिए यह समझाने की कोशिश की जाए कि हम एक ऐसे देश हैं, जो बहुत से दूसरे देशों के मुकाबले दुनिया में बहुत जुड़ा हुआ है और वह सिर्फ अर्थव्यवस्था के जरिए नहीं, बल्कि मुलाकातों और उन लोगों के जरिए भी, जो यहां जर्मनी में कुछ समय के लिए हैं या जर्मनी की ओर बहने वाले डाटा के जरिए जुड़े हुए हैं. हम संभवतः विश्व में नहीं, तो यूरोप में सबसे ज्यादा जुड़े हुए देश हैं. और इसमें यह विचार कि हम किसी द्वीप पर रहते हैं, और हमारा दूसरों से कुछ लेना देना नहीं है, यह ऐसा विचार है जो हकीकत से बहुत दूर है. और इसमें राजनीति की स्पष्टीकरण की जिम्मेदारी निहित है, जिससे हम मना नहीं कर सकते.

Laurent Fabius, Frank-Walter Steinmeier, Radek Sikorski
लॉरां फाबिउस, फ्रांक वाल्टर श्टाइनमायर और रादेक सिकोर्स्कीतस्वीर: DW/R. Romaniec

क्या यह कहने का मौका है कि हम सब कुछ यूरोपीय परिपेक्ष्य में कर रहे हैं?

हम यह करने की कोशिश कर रहे हैं और यदि आप एक मिसाल देखें जब मैं मैदान पर चल रहे विवाद का समाधान खोजने की कोशिश में फाबिउस तथा सिकोर्स्की के साथ कीव गया तो यह यूरोपीय हित में की गई कार्यवाही थी. हम यूरोपीय परिषद की बैठक के लिए जा रहे थे और वहां मिल जुल कर इस बहस में नया असर डालना चाहते थे. बिना यह जाने कि अंत में यह असली सौदेबाजी वाला प्रवास साबित होगा. हम यूरोप में योगदान की कोशिश कर रहे हैं, यूरोपीय समाधानों में यूरोप के खिलाफ नहीं, बल्कि यूरोप के हित में काम करने की. और मैं समझता हूं कि इसका फायदा होता है.

आपने घोषणा की है कि आप जर्मन विदेश नीति की समीक्षा कराना चाहते हैं और इस साहसिक सवाल के साथ भी कि जर्मन विदेश नीति में क्या गलत है? इस जांच की कामयाबी क्या होगी?

पहले तो समीक्षा की प्रक्रिया, जैसा हम इसे कह रहे हैं, सचमुच गंभीर नहीं होगी, यदि मैं आपको अभी ही उत्तर दे सकता. लेकिन हमने स्वाभाविक रूप से सार्वजनिक सभा की शुरुआत से पहले लिखित जवाब मंगाया है और जो मैं देख रहा हूं वह सचमुच जर्मनी और जर्मन विदेश नीति के लिए बोझ है. इन टिप्पणियों के जरिए कि हमें यूरोप को नेतृत्व देना है, या दुनिया में नेतृत्व की भूमिका निभानी है, या हमें अपनी राजनीतिक भूमिका को आर्थिक भूमिका के बराबर लाना है कि हमें विवादों में ज्यादा सक्रिय होना है, सैनिक रूप से भी. यह सब जर्मनी इस तरह नहीं कर पाएगा, लेकिन हमें खुद अपनी जिम्मेदारी के पैमाने को नई तरह से समझना होगा. और मैं सार्वजनिक भागीदारी के साथ तय होने वाली जर्मन विदेश नीति चाहता हूं, जर्मन जनता के बीच भी. हमें देखना होगा कि इसमें कितनी दूर जा पाते हैं.

हम भी देखेंगे. शुक्रिया, इस बातचीत के लिए.

बहुत बहुत शुक्रिया.

इंटरव्यू: डागमार एंगेल/एमजे

संपादन: अनवर जे अशरफ