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पांच सालों में हथियारों के आयात में टॉप पर रहा भारत

२० फ़रवरी २०१७

स्वीडिश शोध संस्थान सिपरी ने कहा है कि बीते 5 सालों में भारत के नेतृत्व में एशिया और सऊदी अरब की अगुआई में मध्यपूर्व में हथियारों का सबसे अधिक आयात हुआ. आधे से अधिक निर्यात केवल दो देशों रूस और अमेरिका ने ही किया है.

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Russlands Luftfahrtmesse MAKS - SU-30
तस्वीर: picture-alliance/dpa

यह वह अवधि है जब शीतकाल के बाद से सबसे अधिक हथियारों का खरीद फरोख्त दर्ज की गयी है. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) ने पाया कि 2012 से 2016 के बीच कुल वैश्विक हथियार आयात का 13 फीसदी केवल भारत ने किया. 8 फीसदी के साथ दूसरे स्थान पर रहा सऊदी अरब, जहां इसके पहले के पांच सालों की तुलना में आयात तीन गुना बढ़ा.

इस स्वीडिश थिंकटैंक का मानना है कि भारत ने कुल आयात का करीब 68 प्रतिशत केवल रूस से लिया. सिपरी का अनुमान है कि देश में हथियार निर्माण की अच्छी सुविधाएं ना होने के कारण भारत आगे भी बहुत बड़ा आयातक बना रहेगा.

Infografik Die zehn größten Waffenimporteure und ihre wichtigsten Zulieferer ENGLISCH

वहीं सऊदी अरब ने सबसे ज्यादा हथियार आयात अमेरिका से किया. उसके आधे से अधिक हथियार अमेरिका से आए जबकि बाकी ब्रिटेन और स्पेन से. चीन, यूएई और अल्जीरिया भी अन्य बड़े आर्म्स इंपोर्टर हैं. पूरे मध्यपूर्व को देखें तो वहां इन पांच सालों में कुल वैश्विक आयात का 29 फीसदी हिस्सा पहुंचा.

एक्सपोर्ट करने वाले देशों को देखें तो पिछले पांच सालों में कुल निर्यात का 33 फीसदी अकेले अमेरिका ने किया. अमेरिका ने दुनिया के 100 से भी अधिक देशों को अपने हथियार बेचे. युद्धक विमान और मिसाइल डिफेंस सिस्टम्स की सबसे ज्यादा मांग रही. रूस ने करीब 50 देशों को अपने हथियार बेचे. वैश्विक निर्यात में इन पांच सालों में रूस का 23 प्रतिशत हिस्सा रहा.

6.2 फीसदी के साथ चीन तीसरा सबसे बड़ा निर्यातक रहा, और उसके बाद फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन को स्थान मिला. पूरे यूरोप में वैश्विक आयात का करीब 11 फीसदी हिस्सा आया. जो कि पिछले पांच सालों के मुकाबले काफी कम था. ऐसा यूरोपीय देशों के रक्षा बजट में की गई भारी कटौती के कारण देखने को मिला है. अफ्रीका में भी आयात में कमी देखने को मिली है. अफ्रीका का ज्यादातर आयात एक ही देश अल्जीयर्स को हुआ.

दुनिया भर में शांति स्थापना करने के उद्देश्य पर केंद्रित सिपरी की सालाना रिपोर्ट से पता चलता है कि निरस्त्रीकरण के वायदों के बावजूद विश्व के कई शक्तिशाली देशों की रुचि हथियारों की खरीद-फरोख्त में बढ़ती ही जा रही है.

आरपी/एके (डीपीए)