सेक्सवर्करों, एचआईवी पीड़ितों को सस्ता अनाज
१३ जून २०१६पश्चिम बंगाल में वर्ष 2011 में पहली बार सत्ता संभालने वाली ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस सरकार ने राज्य के माओवादी असर वाले जंगलमहल इलाके के लोगों के अलावा चाय बागान मजदूरों और गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए दो रुपए किलो की दर से चावल और गेहूं मुहैया कराने की योजना शुरू की थी.
अब बीते महीने विधानसभा चुनावों में भारी कामयाबी के बाद मुख्यमंत्री के तौर पर अपनी दूसरी पारी शुरू करने वाली ममता बनर्जी की सरकार में खाद्य व आपूर्ति मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक बताते हैं, "सरकार ने अब राज्य की यौनकमिर्यों और एचआईवी पीड़ितों को भी दो रुपए किलो चावल मुहैया कराने का फैसला किया है. देश में अपने किस्म की यह पहली योजना मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के दिमाग की उपज है".
मल्लिक बताते हैं कि देश में पहली बार किसी राज्य सरकार ने ऐसा फैसला किया है. इसके तहत गरीब कुष्ठ मरीजों और विभिन्न सरकारी सुधार गृहों में रहने वाले मूक व बधिर लोगों को भी शामिल किया जाएगा. सरकार के इस फैसले का मकसद सेक्सवर्करों और एचआईवी पीड़ितों के जीवन की राह कुछ हद तक आसान करना है.
शिनाख्त के लिए सर्वेक्षण
मंत्री का कहना है कि पहले चरण में ऐसे एक लाख लोगों की शिनाख्त की जाएगी जिन्हें यह सुविधा दी जा सके. इसके लिए इसी सप्ताह राज्य में एक सर्वेक्षण शुरू किया जाएगा. वह बताते हैं, "सर्वेक्षण के जरिए ऐसे लोगों की शिनाख्त का काम छह महीने में पूरा हो जाएगा और अगले साल जनवरी से यह योजना शुरू हो जाएगी."
उक्त सर्वेक्षण महानगर के रेडलाइट इलाके सोनागाछी से शुरू किया जाएगा. इसी तरह एचआईवी पीड़ितों की पहचान के लिए सरकारी अस्पतालों में खाद्य विभाग के एक अधिकारी की नियुक्ति की जाएगी. वहां से मिले आंकड़ों को पुष्टि के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय के पास भेजा जाएगा. इन लोगों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए चावल की आपूर्ति होगी.
ममता बनर्जी ने अपने पहले कार्यकाल में राज्य के लगभग सात लाख लोगों को दो रुपए किलो चावल व गेहूं देने की जो योजना शुरू की थी, जिससे उनको काफी वाह-वाही मिली. हाल में हुए विधानसभा चुनावों में भी उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस को इसका राजनीतिक लाभ मिला मालूम होता है.
सेक्सवर्करों का बुरा हाल
कोलकाता में स्थित सोनागाछी के रेडलाइट इलाके को एशिया की सबसे बड़ी बदनाम बस्ती कहा जाता है. अब तक सरकार की ओर से उनको किसी तरह की कोई सुविधा नहीं दी जाती है. ज्यादातर सेक्सवर्करों के पास न तो वोटर कार्ड है और न ही राशनकार्ड. हर बार चुनाव के मौके पर तमाम दलों के राजनेता उनके हित में तरह-तरह के वादे तो करते हैं. लेकिन चुनाव बाद तमाम वादे हवा हो जाते हैं.
यहां सेक्सवर्कर अपने संगठन दुर्बार महिला समन्वय समिति के बैनर तले समय-समय पर अपने अधिकारों के लिए प्रदर्शन भी करती रहीं हैं. लेकिन सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी. इस इलाके के सेक्सवर्करों के बच्चों को इस नारकीय माहौल से दूर रख कर उनकी पढ़ाई-लिखाई की दिशा में अब तक किसी भी सरकार ने कोई ठोस पहल नहीं की है. कुछ गैर-सरकारी संगठन इनके लिए आवासीय परिसर जरूर चलाते हैं, लेकिन वह ऊंट के मुंह में जीरे के बराबर ही है. अब ममता बनर्जी की इस पहल से यहां रहने वाली हजारों सेक्सवर्करों को काफी उम्मीदें हैं.
खुश हैं सेक्सवर्कर
सरकार की इस नई योजना से सोनागाछी इलाके की सेक्सवर्कर खुश तो हैं. लेकिन उनका कहना है कि पहले भी तमाम नेताओं ने दुनिया भर के वादे किए थे. लेकिन उनमें से किसी को अमली जामा नहीं पहनाया जा सका. जब तक यह योजना लागू नहीं हो जाए तब तक वे इस पर कुछ और नहीं कहना चाहतीं. सेक्सवर्करों के हित में काम करने वाली दुर्बार महिला समन्वय समिति की भारती दे कहती हैं, "यह एक अच्छी पहल है. इससे सेक्सवर्करों को काफी सहूलियत होगी." उनका कहना है कि अब सर्वेक्षण शुरू होने और सबके राशनकार्ड बनने के बाद ही इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी की जा सकती है.
उन्होंने खुशी जताते हुए इतना कहा कि "किसी सरकार ने पहली बार सेक्सवर्करों के हितों के बारे में सोचने की जहमत तो उठाई है. अब तक हमारी आवाज नक्कारखाने में तूती की आवाज बन कर रह जाती थी." समिति को उम्मीद है कि सरकार अब सेक्सवर्करों की दूसरी समस्याओं पर भी ध्यान देगी और खासकर इलाके के बच्चों की पढ़ाई-लिखाई का कोई पुख्ता इंतजाम होगा.