सेक्स: एक कालातीत वर्जना का इतिहास
सेक्स के टैबू पर विचार विमर्श समाज में मुक्ति का प्रतीक रहा है. इसके इर्दगिर्द कई विवादों की कहानियां बुनी हैं. जर्मनी के बॉन शहर में नैतिकता और मुक्तिवादिता के बीच सेक्स का इतिहास खूबसूरत प्रदर्शनी के तौर पर पेश हुआ है.
1960 के दशक के उन्माद भरे सालों में यौन नैतिकता को लेकर सबसे ज्यादा उथल पुथल हुई. इतने साल पहले ही जर्मनी की टीन मैगजीन "ब्रावो" में सेक्स से जुड़ी तमाम बातों पर खुलेआम चर्चा होती थी. 1968 की ब्लॉकबस्टर जर्मन फिल्म "सुअ जाखे शैत्शेन" में पहले टैबू माने जाने वाला मुद्दा फिल्म के केन्द्र में था.
1950 के दशक तक पश्चिम जर्मनी में भी महिलाओं की भूमिका मुख्यत: घरेलू दायरे में सीमित थी. वफादार पत्नी, ममतामयी मां और घर की देखरेख करना महिला का फर्ज था और पुरुष काम पर जाते. सड़कों या दूसरी सार्वजनिक जगहों पर स्त्री पुरुष के आपसी संबंधों पर चर्च और राज्य का गहरा असर था.
1951 की जर्मन फिल्म "द सिनर" पर खूब बखेड़ा हुआ. तत्कालीन जर्मन चांसलर के शब्दों में, "ऐसे कचरे को सेंसर कर देना चाहिए था." फिल्म के काफी छोटे लेकिन यादगार कामुक दृश्यों ने समाज में नैतिकता और यौनिकता के खुलेआम प्रदर्शन पर बहस को हवा दी.
जब 1961 में शेरिंग कंपनी ने गर्भ निरोधक गोलियां उपलब्ध करानी शुरु कीं, तब चर्च के उपदेशकों ने इसे "युवाओं का नैतिक पतन" कहा. कुछ पत्रिकाओं ने ऐसी गोलियां लेने वाली सेक्स की लती महिलाओं की कहानियां प्रकाशित कीं. असल में गर्भनिरोध ने औरतों को स्वाबलंबी बनाने में मदद दी.
60 के दशक के अंत में पश्चिम जर्मनी में हुए छात्र आंदोलन से राजनैतिक व्यवस्था ही नहीं और भी कई चीजें टूटीं. इस दौरान एक लोकप्रिय नारा चला, कि "जो एक ही औरत के साथ दो बार सोता है, वो व्यवस्था का हिस्सा है." इसी दौरान "कम्यून 1" बना जिसने यौन उन्मुक्ति की नई राह दिखाई.
समाज में व्याप्त राजनैतिक उथल पुथल से परिवारों के आंतरिक समीकरण भी बदले. माता पिता को उनके नाम से बुलाने की परंपरा शुरु हुई. 1969 में स्कूलों में बायोलॉजी विषय में सेक्स शिक्षा का "एटलस" शामिल किया गया. पूरी क्लास को सरकारी धन से बनी सेक्स एडुकेशन फिल्म "हेल्गा" दिखाई जाती.
यही वक्त था जब धीरे धीरे "बेयाटे उजे" का नाम कामुक खिलौनों और दूसरी चीजों का पर्याय बन गया. 1948 में शुरु हुए इसी नाम के कैलेंडर से शुरुआत हुई, जिसमें महिलाओं को गर्भ निरोध के तरीके समझाए गए थे. आगे चलकर उससे जुड़ी तमाम चीजें बेचकर इस ब्रांड ने काफी बड़ी संपदा बना ली.
2014 की यूरोविजन कॉन्टेस्ट विजेता कोंचीटा वुर्स्ट का कहना है कि उनके सीने में दो दिल धड़कते हैं, एक टॉम का और दूसरा कोंचीटा का. ऑस्ट्रिया की वुर्स्ट एक मिसाल बन गयीं हैं और अब दाढ़ी वाली लड़की को गाते देखकर भी लोग बहुत विचलित नहीं होते.
ड्रैग क्वीन और टीवी होस्ट लिलो वांडर्स ने जर्मनी के बॉन शहर में "शामलोस" यानि बेशर्म नाम की प्रदर्शनी आयोजित की. 14 फरवरी 2016 तक चलने वाली इस प्रदर्शनी में लगातार बदलती यौन नैतिकता को केंद्र में रखकर पूर्वी, पश्चिमी और संयुक्त जर्मनी तीनों के पक्ष पेश किए हैं.