रखें मृत्युदंड बहाल या है बेकार?
२५ सितम्बर २०१५छत्तीसगढ़ से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए भारत के सर्वोच्च न्यायालय में यह सवाल उठा है कि क्या फांसी की जगह आजीवन कारावास की सजा मिलने का प्रावधान होना चाहिए? पिछले काफी समय से दुनिया के कई देशों में मृत्युदंड को खत्म करने की मांग उठती आई है. हाल ही में जब 2006 के मुंबई धमाकों के दोषी पाए गए याकूब मेमन को फांसी दी गई तब भारत में भी यह मुद्दा जोर शोर से उठा था.
भारतीय विधि आयोग ने 31 अगस्त को जारी अपनी रिपोर्ट में कहा है कि मृत्युदंड से कोई निवारण नहीं होता है. आयोग ने अपवाद के तौर पर आतंकवाद एवं युद्ध छेड़ने जैसे अपराधों के अलावा बाकी सभी मामलों के लिए मौत की सजा को समाप्त करने की सिफारिश की है. सुप्रीम कोर्ट के कहने पर ही विधि आयोग ने भारत में मौत की सजा के मुद्दे पर स्टडी की है.
विधि आयोग की इन सिफारिश का संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने स्वागत किया. यूएन के कानून विशेषज्ञ क्रिस्टॉफ हेइंस ने कहा, "मैं भारतीय प्रशासन को इन सुझावों को लागू करने और आगे चलकर हर तरह के अपराध के लिए इसे पूरी तरह खत्म करने के लिए प्रोत्साहित करता हूं."
सुप्रीम कोर्ट ने भारत में पिछले कई सालों से कम से कम मामलों में मौत की सजाएं सुनाई हैं. लेकिन मृत्युदंड को पूरी तरह खत्म करने से बचा है. सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस ठाकुर और जस्टिस गौड़ा की बेंच के प्रयासों के कारण इस बहस के आगे बढ़ने की पूरी संभावना दिखती है. मृत्युदंड को खत्म करने की बहस में राजीव गांधी के हत्यारों की मौत की सजा को बदलकर आजीवन कारावास की सजा सुनाना एक महत्वपूर्ण उदाहरण बन कर उभरेगा.